गुनी गिटकू और चंट-चुड़ैल
सरोजिनी पाण्डेय
मूल कहानी: इल् बैम्बीनो नेल साको; चयन एवं पुनर्कथन: इतालो कैल्विनो
अंग्रेज़ी में अनूदित: जॉर्ज मार्टिन (पेटी पीट वर्सेस विच बी विच); पुस्तक का नाम: इटालियन फ़ोकटेल्स;
हिन्दी में अनुवाद: ‘गुनी गिटकू और चंट-चुड़ैल’ सरोजिनी पाण्डेय
गिटकू एक समझदार बालक था, और लम्बाई बस इतनी ही कि स्कूल जा सके, इसलिए नाम पड़ गया था ‘गुनी गिटकू’। स्कूल के रास्ते के किनारे एक नाशपाती का पेड़ था, गुनी गिटकू स्कूल से आते-जाते अक्सर उस पेड़ पर चढ़ जाता और जी भरकर नाशपाती तोड़-तोड़ कर खाता था।
एक दिन की बात है जब गुनी गिटकू पेड़ पर चढ़ा नाशपाती खा रहा था, तभी पेड़ के नीचे चंट-चुड़ैल, जो बहुत चालक और दुष्ट थी, आकर ठहरी और बोली:
“गुनी गिटकू एक नाशपाती दे दो
अपने नन्हे हाथ से,
सच कहती हूँ मन ललचाया,
मुँह भर आया लार से!”
गुनी गिटकू ने कुछ पल सोचा, इस चुड़ैल के मुँह में लार नाशपाती के लिए नहीं, मेरे लिए भर रही है। वह पेड़ से उतरा तो नहीं, हाँ, एक नाशपाती तोड़कर चंट-चुड़ैल के पास फेंक दी। नाशपाती ज़मीन पर उस जगह गिरी, जहाँ गोबर का एक ‘चोथ’ (गाय, भैंस आदि पशु एक बार में जितना गोबर करते हैं उसे ‘चोथ’ कहा जाता है) पड़ा था। इस पर चंट-चुड़ैल बोली:
“गुनी गिटक एक नाशपाती दे दो
अपने नन्हे हाथ से,
सच कहती हूँ मन ललचाया,
मुँह भर आया लार से!
गुनी गिटकू पेड़ से नीचे नहीं आया, दूसरी नाशपाती तोड़ी और चुड़ैल की ओर फेंक दी। इस बार नाशपाती ऐसी जगह गिरी जहाँ कुछ देर पहले ही एक घोड़ा ‘सु सु’ की तलैया सी बना गया था!
चंट-चुड़ैल ने फिर नाशपाती के लिए चिरौरी-विनती की। इस बार गुनी गिटकू ने सोचा कि उसे अपने हाथ से ही नाशपाती दे दे और स्कूल चला जाए। वह हाथ में नाशपाती लेकर पेड़ से उतरा और चंट-चुड़ैल की ओर नाशपाती बढ़ा दी। चंट-चुड़ैल ने फ़ुर्ती से अपना थैला खोला, नाशपाती के बजाय उसने गुनी गिटकू को थैले में डाल, थैले का मुँह बाँधा और उसे कंधे पर डाल चल पड़ी। थोड़ा ही आगे जाने पर उसे सुसु की हाजत लगी। उसने थैला ज़मीन पर रखा और झाड़ियों के पीछे चली गई। तभी गुनी गिटकू ने अपने नन्हे-नन्हे, चूहे जैसे तेज़, दाँतों से उस डोरी को काट दिया, जिससे थैला बँधा था। कूद कर वह बाहर निकाला, पास पड़ा एक पत्थर उठाया और थैले में भर दिया और ख़ुद हो गया नौ दो ग्यारह।
चंट-चुड़ैल झाड़ी के पीछे से वापस आई, थैले को उठाया और एक बार फिर थैले को पीठ पर लादकर चल पड़ी अपने घर की ओर। चलते-चलते रास्ते में बोली भी:
“ओ रे गुनी गिटकू ऽ ऽ ऽ,
बड़ा भारी है रे तू ऽ ऽ ऽ!”
घर का दरवाज़ा बंद था, इसीलिए चंट-चुड़ैल ने अपनी बेटी को आवाज़ लगाई:
“मेरी प्यारी बिट्टो बिटिया,
आ दरवाज़ा खोल,
देग चढ़ा दे चूल्हे पर,
पकाऊँ गिटकू का झोल“
बिट्टो बिटिया ने दरवाज़ा खोल दिया और एक बड़े देग में पानी भरकर चूल्हे पर चढ़ा दिया। जब पानी उबलने लगा तब चंट-चुड़ैल ने अपना बंद थैला खोलकर उस देग में उलट दिया।
छपाक ऽ ऽ! के साथ पत्थर देग में गिरा, खौलता पानी इधर-उधर फैल गया, आग बुझ गई और चंट-चुड़ैल का पैर झुलस गया।
“अम्मा तेरी अक्कल क्या
हो गई बिल्कुल गोल!
पत्थर देग में डाल कर
लगी पकाने झोल?”
बिट्टू बिटिया चिल्ला रही थी और चंट-चुड़ैल भचक-भचक कर लँगड़ी जैसी नाच रही थी और कहती जाती थी:
“बिटिया, फिर से आग जला दे
मैं जल्दी से आती हूँ,
बढ़िया खाना हम खा पाएँ
कुछ ऐसा ले लाती हूँ!”
चुड़ैल ने कपड़े बदले, अपने सिर के काले बालों के ऊपर, सफ़ेद बालों की, चोटी वाली टोपी लगा ली और थैला लेकर फिर चल पड़ी।
इधर गुनी गिटकू स्कूल न जाकर फिर से नाशपाती के पेड़ पर चढ़ा बैठा था। अपने बदले रूप में लँगड़ा कर, भचक-भचक कर चलती हुई चंट-चुड़ैल फिर वहाँ आ गई। उसने सोचा कि कोई उसे पहचान नहीं पाएगा। पेड़ के नीचे आकर वह फिर बोली:
“गुनी गिटकू एक नाशपाती दे दो अपने नन्हे हाथ से,
सच कहती हूँ मन ललचाया, मुँह भर आया लार से!
लेकिन गुनी गिटकू तो गुनी था न! वह उसे पहचान गया था, पेड़ पर से ही बोला:
“चंट-चुड़ैल तुम मुझसे नाशपाती नहीं पाओगी
मुझको थैले में भरने में देर ना लगाओगी!”
तब चंट-चुड़ैल ने उसे समझाया:
“जो तुम मुझको समझ रहे हो
क़सम से वह नहीं हूँ,
अपने घर से बाहर
मैं पहली बार निकली हूँ,
गिटकू प्यारे, दे दो
नाशपाती अपने हाथ से,
दूँगी मैं दुआएँ तुमको,
अपने दिलो-जान से!”
चंट-चुड़ैल ने ऐसी-ही बातें इतनी बार दोहरायीं कि बेचारा गुनी गिटकू पेड़ से नीचे उतर आया और नाशपाती देने को अपना हाथ बढ़ाया ही था कि चंट-चुड़ैल ने उसे अपने थैली में भर लिया और चल पड़ी।
झाड़ियों के पास तक आते-आते उसे फिर से सुसु जाने की ज़रूरत महसूस हुई। थैला वहीं छोड़कर वह झाड़ियों की तरफ़ चली गई।
इस बार थैला बहुत कसकर बँधा था, बेचारे गुनी गिटकू की एक न चली। कुछ सोच कर, वह थैले के भीतर से ही बटेर की बोली बोलने लगा। गुनी गिटकू का भाग्य बहुत अच्छा था। इसी समय वहाँ से एक शिकारी, अपने शिकारी कुत्ते के साथ गुज़र रहा था। बटेर की बोली सुनकर कुत्ते ने थैली को नोंच डाला और काट कर खोल दिया। गुनी गिटकू थैले से बाहर कूद पड़ा और शिकारी को अपनी कहानी सुना कर अपनी जगह कुत्ते को थैली में बंद कर दिया। शिकारी गिटकू की जान बचाने के लिए इस बात पर राज़ी हो गया था।
जब चंट-चुड़ैल थैला लेकर चली तो उसमें बंद कुत्ता कसमसा कर भौंकने लगा। इस पर चुड़ैल बोली:
“गुनी गुनी गुटकू,
तुझे कोई नहीं बचाएगा,
चाहे जितना भौंक ले
तू भौंकता रह जाएगा!”
वह घर पहुँची और बेटी को पुकारा:
“प्यारी बिट्टो-बिटिया
आ दरवाज़ा खोल
देग चढ़ा दे चूल्हे पर
पकेगा गिटकू का झोल!”
लेकिन जब वह थैला उबलते पानी के देग में पलटने चली तो ग़ुस्से से भरा शिकारी कुत्ता कूद कर बाहर आया। चंट-चुड़ैल की पिंडलियों को काट खाया और आँगन में दौड़ती मुर्गियों की पकड़-धकड़ करने लगा।
अब चंट-चुड़ैल की बिट्टो बिटिया चिल्लाई:
“हाय हाय ओ मेरी अम्मा
लगता है तू सठिया गई!
भूख लगी पकवान की
तो कुत्ता लेकर आ गई?”
इस पर चंट-चुड़ैल बोल उठी:
“बेटी तू चूल्हा गरमाना!
जो मैं लाऊँ उसे पकाना!”
उसने फिर कपड़े बदले, सर पर लाल बालों की टोपी लगाई, पैर के घाव पर पट्टी बाँधी और जा पहुँची नाशपाती के पेड़ के नीचे। हारा थका गिटकू डालियों के बीच में बैठा सुस्ता रहा था।
बातें करके, दलीलें देकर, मिन्नतें कर चंट-चुड़ैल ने एक बार फिर गुनी गिटकू कोअपने फँदे में फँसा लिया। इस बार वह रास्ते में कहीं नहीं रुकी और सीधे घर जा पहुँची।
बिट्टो बिटिया दरवाज़े पर खड़ी माँ की राह देख रही थी। चुड़ैल ने बेटी को हिदायत दी, “इस मुर्गियों के दड़बे में बंद कर दो। कल मैं जब तक मसाले लेने जाऊँ, तुम आलू के साथ इसे काट-कूट कर रखना।”
अगली सुबह चंट-चुड़ैल जब मसाले लेने चली गई, तब काटने की तख़्ती और चाकू लेकर बिट्टो बिटिया ने मुर्गी का दड़बा खोला और गिटकू से कहा:
“गुनी गिटकू आओ,
हम तुम थोड़ा खेलें
इस पटरी पर बारी-बारी
अपना सिर को रख लें!”
इस पर गुटकू जी बोले:
“खेल मुझे यह आता नहीं
पहले तुम समझाओ,
क्या? और कैसे? करना है,
करके मुझे दिखाओ”
इस पर बिट्टो बिटिया ने गिटकू को सिखाने के लिए अपना सिर काटने वाली पटरी पर रख दिया।
गुनी गिटकू ने बिना देर लगाए चाकू उठाया और चुड़ैल की बेटी का सिर काट, कर ले जाकर चूल्हे पर चढ़ी कढ़ाई में तलने के लिए डाल दिया।
चंट-चुड़ैल मसाले लेकर आई। घर में आते ही उसे कुछ पकाने की गंध आई तो वह बड़बड़ाई:
“प्यारी बिट्टू बिटिया मेरी,
क्या करती है?
चूल्हे पर चढ़ी कड़ाही में
तू क्या तलती है?”
“मुझे ऽ ऽ ऽ,” चूल्हे के ऊपर की चिमनी पर बैठा गुनी गिटकू बोल उठा!
अब चंट-चुड़ैल हैरानो, परेशान होकर पूछ बैठी, बोली:
“तू वहाँ आख़िर पहुँचा कैसे?”
“मैंने एक के ऊपर एक कई देग और पतीले रखे और यहाँ तक चढ़कर आ गया,” गिटकू ने बताया।
बस फिर क्या था चंट-चुड़ैल तुरंत पतीले और देग एक के ऊपर एक रखकर गिटकू तक पहुँचने के लिए सीढ़ी बनाने लगी। अभी वह आधी दूर ही पहुँची थी कि बरतन भड़भड़ा कर गिर पड़े और उनके साथ ही आग में गिरी चंट-चुड़ैल और हो गई जल-तल कर राख!! और गुनी गिटकू चला अपने घर को भाग!!
अब सोचो तो अक़्ल बड़ी या भैंस!!
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