सात सिर वाला राक्षस

15-03-2023

सात सिर वाला राक्षस

सरोजिनी पाण्डेय (अंक: 225, मार्च द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

मूल कहानी: इल् ड्रागो डाले सेट्ट टेस्टे; चयन एवं पुनर्कथन: इतालो कैल्विनो
अँग्रेज़ी में अनूदित: जॉर्ज मार्टिन (द ड्रैगन विथ सेवन हेड्स); पुस्तक का नाम: इटालियन फ़ोकटेल्स
हिन्दी में अनुवाद: सरोजिनी पाण्डेय

प्रिय पाठक, इस अंक की लोककथा में आप ऐसे राक्षस के बारे में पढ़ेंगे जिसके सात सिर हैं। दुष्ट प्रकृति के लोगों को अति मानवीय समझना मानव की सहज वृत्ति है। इस राक्षस की तुलना आप रावण या रक्तबीज से कर सकते हैं, जो यह सिद्ध करता है कि कल्पनाएँ काल और स्थान की सीमा नहीं मानतीं, मानव बुद्ध की कल्पना सार्वभौमिक है। है न यह बात रोचक! इस लोककथा की एक विशेषता यह भी है कि इसमें दृश्यों का वर्णन इस ढंग से किया गया है मानो आप कोई नाटक देख रहे हों, तो आनंद लीजिए इस कल्पना की उड़ान वाली लोककथा का: 

 

बहुत पुरानी बात है, किसी गाँव में एक मछुआरा रहता था। उसकी शादी हुए तो काफ़ी अरसा हो गया था परन्तु उसकी कोई संतान न थी। एक दिन मछुआरा अपना जाल लेकर पास की झील में मछलियाँ पकड़ने गया तो उसके जाल में एक बहुत बड़ी, सुंदर, चमकीली मछली फँसी। जब मछुआरे ने जाल पानी से बाहर खींचा तो मछली मनुष्य की बोली में मछुआरे से अपने को छोड़ दिए जाने का निवेदन करने लगी। उसने बताया कि यदि मछुआरा उसे प्राण-दान दे देगा तो वह उसे ऐसे तालाब का पता बताएगी, जहाँ वह बहुत कम मेहनत से ढेरों मछलियाँ पकड़ सकता है। मछली को इस तरह मनुष्य की बोली बोलते देखकर मछुआरा हैरान रह गया था। उसने तुरंत मछली को वापस झील में फेंक दिया। पानी में गिरते ही मछली ने तालाब के बारे में बताया और फिर ग़ायब हो गई। अब मछुआरा मछली के बताए ताल पर गया। वहाँ सचमुच उसे पलक झपकते ढेरों मछलियाँ मिल गईं। 

घर जाने पर जब उसकी पत्नी ने मछुआरे को इतनी जल्दी, इतनी अधिक मछलियों के साथ देखा तो फूली न समाई और इतनी जल्दी इतनी अधिक मछलियाँ पकड़ लेने के बारे में सारा हाल पूछने लगी। मछुआरे ने सारी बात विस्तार से उसे सुना दी। पूरा हाल सुनकर मछुआरिन बिफर गई, “आज तुमने इतनी बढ़िया मछली को छोड़ दिया! अगर तुम उसे पकड़ कर लाए होते तो हम कितनी स्वादिष्ट मछली का स्वाद ले रहे होते!”

अगले दिन मछुआरा फिर से उसी झील पर गया, इस आशा से कि शायद वही मछली फिर फँस जाए और वह अपनी पत्नी को ख़ुश कर सके। भाग्य अच्छा था और सचमुच फिर वही कल वाली मछली उसके जाल में फँस गई। फिर उसने अपने छोड़ दिए जाने की विनती की, फिर मछुआरे का दिल पसीज गया और उसने मछली को वापस पानी में फेंक दिया, मछली के बताए ताल पर गया और मछलियों का भारी बोझ लेकर घर लौटा। 

आज उसकी पत्नी ने सारी बातें जानीं तो वह हत्थे से ही उखड़ गई; कूल्हे पर दोनों हाथ टिकाकर मछुआरे को धमकाते हुए बोली, “किस गधे से मेरा पाला पड़ा है, हे राम! हमारा तो भाग्य फूटा है, नहीं तो भला हाथ आई ऐसी मछली भी कोई दो बार वापस छोड़ता है। अगर कल भी वह मिली और तुमने उसे छोड़ा तो तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा, बताए देती हूँ।”

अगले दिन बेचारा मछुआरा भोर होते न होते झील पर पहुँच गया और जाल फेंका और कुछ समय बाद खींचा। आज भी वही सुंदर, बड़ी-सी मछली उसके जाल में खींची चली आई। लेकिन आज मछली की सारी प्रार्थना बेकार गई। मछुआरे ने मछली की तरफ़ से कान बंद कर लिए और घर की ओर चल दिया। 

मछुआरिन ने इस मछली को, एक नाद में पानी भरकर, उसमें रख दिया। पत्नी और पति मुग्ध होकर उसे निहारने लगे, साथ ही यह भी सोचने लगे कि इससे कौन सा व्यंजन सबसे स्वादिष्ट बनेगा। तभी मछली ने अपना सिर पानी के ऊपर निकाला और बोली, “अब मेरा मरना तो तय है ही, मरने से पहले मैं तुम लोगों को अपनी आख़िरी इच्छा बताना चाहती हूँ। क्या तुम उसे सुनोगे और मानोगे?” 

मछुआरे और मछुआरे ने मछली की बात मानना स्वीकार कर लिया। तब मछली बोली, “जब मैं मर जाऊँ, पक जाऊँ, आधी-आधी काटी जाऊँ, तब मछुआरिन मेरा मांस खा ले, मेरा झोल घोड़ी पी ले, कुतिया मेरा सिर खा ले, मेरी तीन बड़ी हड्डियाँ बग़ीचे में गाड़ दी जाएँ और मेरा पित्ताशय रसोई की धरन (बीम) से लटका दिया जाए। तुम्हारी संतानें होंगी, जब किसी भी बच्चे पर कोई संकट आएगा, तो मेरे पित्ताशय से ख़ून टपकेगा।”

मछुआरे ने मछली को पकाने, खाने के बाद जैसा मछली ने कहा था वैसा ही किया। 

समय बीतता रहा। मछुआरों का भाग्य और भगवान की लीला! एक ही रात में मछुआरिन ने तीन बेटे जने, घोड़ी ने तीन बछड़े दिए, और कुत्तिया के तीन पिल्ले हुए। तीनों ‘त्रिज’ (ट्रिपलिंग) अपनी-अपनी जाति में, इतने एक समान दिखाई देते थे कि उन्हेंअलग-अलग पहचानना मुश्किल था। मछुआरे ने बेटों, बछेड़ों और पिल्लों को अलग-अलग तावीज़ बनवा कर गले में डाल दिए कि पहचानना आसान रहे। जो तीन हड्डियाँ बग़ीचे में गाड़ी गई थीं, वे शानदार तलवारें बनकर उग आईं। 

धीरे-धीरे बेटे बड़े होने लगे जब बच्चे बड़े हो गए तब मछेरे ने तीनों बेटों को एक-एक घोड़ा, एक-एक कुत्ता और एक-एक तलवार बाँट दी गई। अपनी ओर से तीन बंदूकें ख़रीद कर तीनों को भेंट कर दीं। इस तरह दिन आराम से गुज़रते रहे। 

जब सबसे बड़ा बेटा जवान हुआ तो उसे मछुआरे की ज़िन्दगी से ऊब होने लगी। वह कुछ नया करने की इच्छा लेकर घर से निकल पड़ा। वह अपने घोड़े पर सवार हुआ, अपनी तलवार कमर में, बंदूक कंधे पर लटकायी, कुत्ते को साथ लिया और अपने छोटे दोनों भाइयों से बोला, “रसोई की छत से लटकी पित्त की थैली का ध्यान रखना, अगर उससे लहू टपके तो मेरी खोज करना, या तो मैं मर चुका हूँँगा या मुसीबत में रहूँगा। अच्छा, तो मैं चलता हूँ। तुम अपना और माता-पिता का ध्यान रखना।” ऐसा कह कर उसने घोड़े को ऐड़ लगाई और चल पड़ा। 

दिनों-दिन अनजान राहों पर चलने के बाद वह एक नगर के प्रवेश द्वार पर पहुँचा, जहाँ उदासी छाई थी। ऐसा लगता था मानो सारा शहर सन्नाटा खा गया है। हर ओर मुर्दनी छाई थी। वह एक सराय में खाना खाने की मंशा से गया। वहाँ उसने शहर की उदासी का कारण जानना चाहा। सराय के मालिक ने बताया, “हर दिन हमारे शहर में एक सात सिरों वाला राक्षस आता है। वह ठीक बारह बजे दिन में पुल के ऊपर दिखाई देता है। हर दिन उसे खाने के लिए एक स्त्री का भोग चाहिए। यदि ऐसा ना हो तो वह शहर में घुस आता है, और राह में पड़ने वाले हर छोटे-बड़े, स्त्री-पुरुष को खा जाता है। रोज़ एक घर का नाम लॉटरी में निकाला जाता है और वहाँ से एक स्त्री को जाना होता है। आज हमारे राजा की बेटी की बारी है, इसीलिए आज शहर में कुछ ज़्यादा ही उदासी है। बेचारे राजा ने तो मुनादी भी करवा दी है कि जो युवक राजकुमारी को बचा पाएगा, वह राज्य भी पाएगा और राजकुमारी को ब्याहा जाएगा।” 

मछुआरे नौजवान ने कहा, “राजकुमारी को छुड़ाने और शहर को बचाने का कोई न कोई उपाय तो होगा! मेरे हाथ में मज़बूत तलवार है, मेरा समझदार कुत्ता मेरे साथ है। मैं राजा से मिलना चाहता हूँँ।” 

राजा के पास पहुँचते ही युवक ने राजकुमारी के साथ पुल पर जाने की अनुमति माँगी और राक्षस का क़त्ल करने की आज्ञा भी।

“जोशीले नौजवान, याद रखो तुमसे पहले भी कइयों ने उसे मारने की कोशिश की और प्राणों से हाथ धोए। फिर भी तुम्हें लगता है कि तुम राक्षस को हरा सकते हो तो जाओ और अपनी जान दाँव पर लगाओ। अगर तुम जीत गए तो मैं अपनी बेटी की शादी तुमसे कर दूँगा और मेरे मरने के बाद मेरे राज्य के स्वामी भी तुम होगे,” राजा ने कहा। 

निडर युवक ने अपना घोड़ा और कुत्ता साथ लिया और सीधे पुल पर चला गया। 

बारह बजे के आसपास सिर से पैर तक काले कपड़ों में लिपटी राजकुमारी ने अपनी सेविकाओं की सेना के साथ पुल पर पैर रखा पुल के बीच में पहुँचकर सारी सेविकाएँ रोती बिलखती हुई चली गईं। बेचारी राजकुमारी पुल पर अकेली रह गई। उसने चारों ओर नज़र दौड़ाई तो एक युवक को अपने कुत्ते के साथ उस पुल पर बैठे देखा। वह उसके पास जाकर बोली, “श्रीमान आप यहाँ क्या कर रहे हैं? क्या आपको मालूम नहीं है कि सात सिर वाला राक्षस किसी भी पल मुझे निगलने के लिए आने वाला है? अगर आप यहीं बैठे रह गए तो वह आपको भी खा जाएगा।”

“मैं सब कुछ जानता हूँँ, मैं आप को बचाने और आपसे शादी करने आया हूँँ,” युवक बोला। 

“अभागे युवक,” राजकुमारी फिर बोली, “यहाँ से तुम भाग जाओ तुम्हें मालूम नहीं है कि वह कितना नीच राक्षस है। तुम उसको मार नहीं पाओगे। वह हम दोनों को ही खा जाएगा!”

इस भोली और सुंदरी राजकुमारी को देखते ही युवक उस पर मोहित हो गया था, “तुम्हारे प्यार की ख़ातिर राजकुमारी, मैं अपनी जान भी दाँव पर लगा दूँगा, फिर जो भी होना होगा वह होता रहेगा। देखा जाएगा।”

अभी इन दोनों की बातचीत ख़त्म भी ना हुई थी कि महल के घड़ियाल ने दोपहर के बारह बजने की टंकार लगाई। धरती काँपी, फटी और तेज़ धुएँ और आग की लपटों के बीच एक सात सिर वाला राक्षस बाहर निकला। सात मुँह बाए वह राजकुमारी की ओर बढ़ा। उसकी भूख तब और बढ़ गई जब उसने भोजन के लिए दो प्राणी देखे। उसे देखते ही मछुआरे का बेटा बिजली की कौंध की तरह उस पर झपटा, साथ ही अपने कुत्ते को भी उसने राक्षस की ओर सुस्कार दिया। अपनी मज़बूत तलवार के एक ही झटके से उसने राक्षस के छह सिर एक के बाद एक काट गिराए। जब राक्षस के छह सिर पुल पर लुढ़कने लगे तब राक्षस ने कहा, “दो पल के लिए रुक जाओ।”

नौजवान ने रुक कर पूछा, “कहो क्या बात है?” 

लेकिन यह क्या! पलक झपकते ही राक्षस में अपना बचा हुआ एक सिर, ज़मीन पर पड़े, अपने कटे हुए सिरों के पास ले जाकर रगड़ा और एक बार फिर सातों सिरों के साथ नौजवान पर झपटा। 

जवान समझ गया कि जब तक सातों सिर एक साथ नहीं कटेंगे, तब तक यह राक्षस मरने वाला नहीं है। वह अपने प्राणों को हथेली पर ले, सारी ताक़त से दैत्य पर टूट पड़ा और एक-एक करके सातों सिर ज़मीन पर लुढ़का दिए। अब उसने जेब से एक चाकू निकाला और राक्षस के हर मुँह में से जीभ काट ली। फिर उसने राजकुमारी से पूछा, “राजकुमारी जी क्या आपके पास एक रुमाल है?” 

राजकुमारी ने अपना क़ीमती, रेशमी रुमाल तुरंत नौजवान को दे दिया। वीर नौजवान ने राक्षस की सातों जीभों को रुमाल में बाँध, अपनी जेब के हवाले किया और सराय की ओर चल पड़ा। उसे राज दरबार में जाने की तैयारी जो करनी थी! 

अब संयोग देखिए कि पुल के पास ही एक लकड़ी की टाल थी, जो एक दुष्ट लकड़हारे की थी। उसने अपनी झोपड़ी में से दैत्य के मारे जाने की सारी घटना देखी थी। लेकिन जब उसने नौजवान को ख़ाली हाथ जाते देखा तो उसने सोचा कि इस नौजवान को तो बेवुक़ूफ़ बनाया जा सकता है, यह राक्षस के सिर तो यहीं छोड़े जा रहा है! वह तुरंत एक कुल्हाड़ी और एक बोरी लेकर पुल पर पहुँचा। कुल्हाड़ी पर राक्षस का ज़मीन पर पड़ा ख़ून लगाया और बोरी में सातों सिर भरे, बिना समय गँवाए वह राज दरबार में पहुँच गया, “महाराज आपकी जय हो!” वह राजा से बोला, “आपके सामने सात सिर वाले राक्षस का वध करने वाला विनती कर रहा है। मैंने अपनी इसी कुल्हाड़ी से उसके सिर काटे हैं। अब अपना वचन निभाने की बारी आपकी है।”

राजा उस नाटे कुरूप, लकड़हारे को देखकर चकित रह गए। उन्हें लकड़हारे की बातों पर भरोसा नहीं था। उन्हें लग रहा था कि हो न हो, जो नौजवान राक्षस को मारने गया था उसी ने यह काम किया हो और फिर किसी दुर्घटना का शिकार हुआ हो! इस दुष्ट और चालाक लकड़हारे ने आख़िरी समय पर पहुँचकर यह नाटक रच लिया हो! लेकिन हुआ चाहे जो भी हो राजा की मुनादी तो झूठी हो नहीं सकती थी! राजा को उत्तर देना ही था। वह बोले, “अगर सचमुच ऐसा ही है तो फिर मैं अपनी बेटी का हाथ तुम्हें अवश्य दूँगा।” 

जब राजकुमारी को इस बात की सूचना मिली तो वह भी दौड़ती, भागती दरबार में पहुँच गई। लकड़हारे पर नज़र पड़ते ही चीख पड़ी, “झूठा है यह! जिस ने राक्षस को मारा वह अभी आता होगा दरबार में!”

लेकिन लकड़हारा अपनी बात पर अड़ा रहा क्योंकि राक्षस के सिर तो उसके पास मौजूद थे। राजा विवश था, लकड़हारा तो राक्षस के सिर दिखा रहा था। दरबार में बहस छिड़ गई थी। अब राजा ने अपनी बेटी को शांत कराया और कहा कि वह लकड़हारे से शादी करने के लिए अपना मन तैयार कर ले। हाँ, उसने इतना अवश्य कहा कि शादी तुरंत नहीं बल्कि तीन दिनों तक उत्सव मनाने के बाद होगी। 

इधर दरबार में यह सब चल रहा था कि राक्षस को मारने वाला नौजवान महल के द्वार पर आया। लेकिन दरबानों ने उसे किसी भी दशा में भीतर नहीं जाने दिया, वहाँ राजकुमारी की शादी और उसकी आगे की ज़िन्दगी के बारे में फ़ैसले हो रहे थे। कुछ देर बाद ही उसे तीन दिनों के उत्सव और उसके बाद राजकुमारी की शादी की घोषणा सुनाई पड़ी। अब उसका बहस करना बेकार था। वह मन मारकर सराय वापस आ गया। 

क्रोध और निराशा से वह व्याकुल हो रहा था। लकड़हारे की जालसाज़ी उजागर करने के उपाय सोचने के अलावा उसके पास और कोई चारा न था। उसे सबके सामने यह सिद्ध करना था कि राक्षस का वध उसने किया है ना कि लकड़हारे ने। बहुत सोचने विचारने के बाद शाम के समय उसने अपने प्रिय कुत्ते को जगाया और उसे समझाया, “ध्यान देकर सुनना मेरे प्यारे पिल्लू, तुम राजमहल जाओ। वहाँ राजकुमारी के साथ खेलना, बस केवल राजकुमारी के साथ और किसी के साथ नहीं। और जब भोजन परोसा जाए तो मेज़ पर बिछा मेज़पोश खींचकर, सब बरतन-खाना गिरा देना और बिना किसी की पकड़ में आए वहाँ से भाग जाना।”

इतना समझा-बुझाकर उसने कुत्ते को रवाना कर दिया। कुत्ता राजमहल पहुँचा राजकुमारी तो उसे देखते ही ख़ुश हो गई कि यह उसके प्राण की रक्षा करने वाले का प्रिय कुत्ता है। वह उसे पुचकारने, दुलारने लगी। 

थोड़ी ही देर में दावत में चलने का समय हुआ। भोजन कक्ष सजा था, नगर के संभ्रांत लोग आमंत्रित थे। नाटा लकड़हारा भी ज़रदोजी़, मख़मल के कपड़ों और राजसी ठाट के साथ वहाँ मौजूद था। जब उसने कुत्ते को राजकुमारी के साथ देखा तो मन ही मन घबरा गया। उसने तुरंत उसे बाहर निकालने का हुक्म दिया। अभी भोजन परोसा जाना शुरू ही हुआ था, जब कुत्ते को भगाने सेवक लपके तो वह राजकुमारी की गोद छोड़कर खाने की मेज़ की तरफ़ दौड़ा। मेज़पोश इतनी ज़ोर से खींचा कि सभी बरतन उलट-पुलट हो गए, कुछ तो झनझन आकर ज़मीन पर भी गिर पड़े और कुत्ता तेज़ी से यह जा, वह जा। कोई कुत्ते को पकड़ पाना तो दूर यह भी न देख पाया कि वह आख़िर गया किधर!! भोजन कक्ष में इतनी अव्यवस्था फैल गई कि उस दिन की दावत स्थगित करनी पड़ी। 

अब अगले दिन के उत्सव का समय आया। आज भी नौजवान ने अपने कुत्ते को पुकारा और उससे कहा, “मेरे प्यारे पिल्लू, फिर राजमहल जाओ, कल जो किया था वैसा ही करके आओ!” 

कुत्ते को महल में देखते ही राजकुमारी फिर उत्साहित हो गई। परन्तु ठिगना लकड़हारा तुरंत कुत्ते को बाहर खदेड़ देना चाहता था। राजकुमारी ने उस कुत्ते को फिर अपनी गोद में बैठा लिया। आज भी जब भोजन परोसा जाने लगा तब कुत्ता मेज़पोश खींचकर, दावत का सारा सामान बिगाड़ कर रफ़ूचक्कर हो गया। उसकी फ़ुर्ती के आगे किसी की भी ना चली। 

तीसरी और आख़िरी दावत के दिन फिर नौजवान ने कुत्ते को समझाया, “पिल्लू, दो दिन तो तुमने कमाल कर दिया। अब आज भी महल जाओ और वैसा ही करो जैसा पहले किया था। लेकिन आज तुम पहरेदारों को अपना पीछा करने देना।” और आज भी कुत्ते ने ठीक वैसा ही किया जैसे उसे समझाया गया था। कुत्ते का पीछा करते हुए सिपाही सराय में नौजवान की कोठरी तक पहुँच गए। उसे पकड़ा और ले जाकर राजा के सामने पेश कर दिया। राजा तुरंत उस जवान को पहचान गए, “अरे तुम तो वही हो ना जिसने मेरी बेटी को राक्षस से बचाने की आज्ञा चाही थी!” 

“हाँ महाराज, मैं वही हूँ और मैंने राजकुमारी की रक्षा भी की है,”वह बोला। 

जब लकड़हारे ने यह सुना तो चीख कर बोला, “यह झूठ बोल रहा है, राक्षस को तो मैंने मारा है, अपने इन्हीं दोनों हाथों से। इसका सबूत देने के लिए ही मैं राक्षस के सातों सिर काट कर ले आया था।” ऐसा कह कर उसने सेवकों से सारे सिर दरबार में ले आने को कहा और उन्हें राजा के क़दमों में रखवा दिया। 

धीरज खोए बिना नौजवान ने राजा से कहा, “मैं मानता हूँ कि वह सातों सिर लाए हैं। वे इतने भारी थे कि मैं ख़ाली उनकी जीभ काट कर ले आया था। आप देखें कि उन मुँहों में जीभ है कि नहीं?”

सिरों के मुँह में जीभ नहीं थी। अब नौजवान ने अपनी जेब से राजकुमारी के रुमाल में बँधी सात जुबानें निकालीं और राक्षस से लड़ाई की सारी बातें भी दरबार में विस्तार से सुनाईं। लेकिन लकड़हारा हार मानने को तैयार नहीं था उसने कहा हर मुँह में जीभ रखकर दिखाई जाए कि यह राक्षस की ही जीभ है। ऐसा ही किया गया और सात की सातों जीभें एकदम सही बैठ गईं। सातवीं जीभ रखते न रखते लकड़हारा अपनी जान बचाने भागा, पर वह तुरंत ही पकड़ लिया गया और क़ैदख़ाने में डाल दिया गया। 

राज दरबार में ख़ुशियाँ छा गईं। कार्यक्रम के अनुसार अब राजकुमारी का विवाह भी नौजवान के साथ हो गया। रात होते-होते सारी धूमधाम पूरी हो गई और सभी लोग सोने चले गए। 

सुबह-सवेरे जब नौजवान जागा और खिड़की खुली तो पास ही घना जंगल दिखाई दिया। चिड़ियों की चहचहाहट सुनाई दे रही थी नौजवान का मन चिड़ियों का शिकार करने को हो उठा। लेकिन राजकुमारी ने उसे बताया कि यह जंगल मंत्रित-जंत्रित है। वहाँ जो भी शिकार करने जाता है लौटकर नहीं आता। वह जोशीला नौजवान जितना ही उस जंगल के बारे में सुनता गया उसकी उत्सुकता और बढ़ती गई, वह ख़तरे से खेलने से डरता तो था ही नहीं। आख़िरकार उसने अपना घोड़ा, कुत्ता, तलवार और बंदूक उठाई और चल पड़ा। 

उसने कई चिड़ियों का शिकार किया। अचानक भयानक तूफ़ान आ गया। बिजली चमकने लगी, तेज़ हवाओं के साथ वर्षा भी होने लगी। अब शिकारी जवान ने इधर-उधर आश्रय की तलाश की। उसे एक गुफा मिल भी गई। जब वह भीतर घुसा तो उसने पत्थर की कई मूर्तियाँ देखीं, लेकिन वह इतना थका हुआ था कि उसने उधर ध्यान ही नहीं दिया। गुफा में बिखरी थोड़ी पत्तियाँ और सूखी घास इकट्ठी कर ली, जेब से चकमक पत्थर निकाला और अलाव जलाकर अपने को सुखाने लगा। साथ-साथ शिकार करके लाई गई चिड़ियों को खाने के लिए आग पर पकाना भी शुरू कर दिया। अभी थोड़ी ही देर हुई थी कि एक बुढ़िया जो उसी की तरह तूफ़ान की मारी थी गुफा के सामने आ खड़ी हुई। बेचारी सिर से पाँव तक भीगी थी, थरथर काँप रही थी, दाँत सर्दी के मारे बज रहे थे। उसने नौजवान से भीतर आ जाने का निवेदन किया। नौजवान ने बुढ़िया को बड़े प्यार से भीतर बुला लिया। जब चिड़ियाँ भुन गईं तो बूढ़ी स्त्री ने अपनी कमर की थैली से नमक की पुड़िया नौजवान को दी। थोड़े से चने के दाने घोड़े के लिए निकाले और तलवार पर लगाने के लिए तेल की शीशी भी निकालकर दे दी की तलवार पर लगा दिया जाए नहीं जिससे तलवार जंग ना खाए। जैसे ही सब ने खाना खाना शुरू किया सब के सब पत्थर की मूर्ति बन गए। 

उधर राज्य में जब कई दिन के इंतज़ार के बाद भी नौजवान नहीं लौटा तो राजा ने राजकीय शोक की घोषणा कर दी। सारे राज्य में मातम छा गया, दुकानें बाज़ार नाच-नाटक सब बंद हो गए! 

मछुआरे का बड़ा बेटा जब से घर से गया था, तबसे सभी लोग रसोई की शहतीर से बँधे पित्ताशय को रोज़ देखते थे। एक दिन सहसा उससे ख़ून टपकने लगा। सभी लोग घबरा गए मँझले बेटे ने कहा, “मेरा भाई या तो मर गया है या फिर बड़ी मुसीबत में फँस गया है! मैं पता लगाने जाता हूँ, अलविदा,” और वह अपने घोड़े पर सवार हो, अपना कुत्ता, तलवार और पिता की दी गई बंदूक लेकर घर से निकल पड़ा। रास्ते में जो भी मिलता उससे पूछता, “क्या तुमने कोई ऐसा आदमी देखा है जो हूबहू मेरे जैसा दिखता हो?” लोग हँसते हुए कहते, “मज़ाक़ मत करो तुम अभी कुछ दिनों पहले इधर से ही तो गए थे!” 

मँझले को भरोसा होता गया कि वह सही रास्ते से जा रहा है और उसी राह पर वह बढ़ता रहा। जल्दी वह राजधानी में पहुँच गया। जैसे ही वह पहुँचा, लोगों ने उसे देखा तो शोर मच गया, “आ गया, आ गया, हमारा राजकुमार आ गया, सही सलामत आ गया!” और पलक झपकते ही उसे राजमहल पहुँचा दिया गया। सभी ने उसे पहला नौजवान ही समझा। राजा उसे जमकर डाँट लगाई कि अपनी नई-नई पत्नी को छोड़कर, उसकी बात न मान कर वह क्यों चला गया था! मँझले ने कोई विरोध नहीं किया वह सारी स्थिति चुप रहकर जानना चाहता था, उसने चुपचाप क्षमा माँग ली। इस प्रकार उसे अपने भाई की पूरी जानकारी मिल रही थी। 

जब रात हुई तब पति-पत्नी अपने शयनकक्ष में आए। मँझले ने पलंग के बीच में अपनी तलवार रख दी और उसकी एक तरफ़ लेट गया राजकुमारी को दूसरी और सोने के लिए कह दिया। राजकुमारी हैरान तो बहुत हुई पर उसने इतने समय बाद लौटे पति से कुछ ना पूछना ही उचित समझा और चुपचाप सो गई। 

अगले दिन सुबह उठकर खिड़की खोलकर देखने पर मँझले ने भी चिड़ियों के शिकार पर जाने की बात कही। राजकुमारी बोली, “क्या अभी आप मौत के मुँह से नहीं लौटे हैं? क्या मुझे फिर से आपसे बिछुड़ना होगा!” पर सब बेकार मँझला भी अपने घोड़े पर सवार हो, कुत्ता और अपने हथियार ले चल पड़ा जंगल में चिड़ियों का शिकार करने। 

जंगल में उसके साथ भी ठीक वैसा ही हुआ जैसा बड़े भाई के साथ हुआ था। वह भी गुफा में पत्थर की मूर्ति बन गया। 

इस बार उसके लौट कर आने की आशा किसी को न रही। राज्य में फिर से राजकीय शोक की घोषणा हो गई। मछुआरे के घर की रसोई में फिर से पित्ताशय से ख़ून टपकने लगा। सबसे छोटा बेटा बिना सोच-विचार किए तुरंत अपने घोड़े पर सवार हो, कुत्ते को साथ ले अपने हथियारों से लैस होकर घर से निकल पड़ा। उसने भी लोगों से वही पूछा, “क्या तुमने मेरे दो भाइयों को इधर से गुज़रते देखा है? वे बिल्कुल मेरे जैसे लगते हैं!”

लोगों ने कहा, “और कितनी बार तुम यही सब पूछोगे? जाओ अपना रास्ता नापो।”

तो छुटका भी उसी मार्ग पर चलकर राजधानी पहुँच गया। 

उसका तो स्वागत और ज़ोरदार हुआ कि वह इस बार तो पक्का मौत के मुँह से ही वापस आया है। महल में भी छुटके के साथ वैसा ही व्यवहार हुआ जैसा मंझले के साथ हुआ था। वह भी रात में अपने पलंग पर तलवार बीच में रखकर सोया। सुबह उठकर खिड़की खोल कर देखने पर वह भी सुंदर जंगल में जाकर चिड़ियों का शिकार करने को बेचैन हो गया, “मैं शिकार को जाता हूँँ,” वह बोला। 

राजकुमारी मानो दुख के सागर में डूब गई, “क्यों तुम अपने को ख़त्म करने पर तुले हो? क्या तुम्हें मेरी तनिक भी परवाह नहीं है? यह तकलीफ़ और कितनी बार मुझे दोगे?” पर इन सब बातों का कोई असर छुटके पर नहीं हुआ। वह जल्दी से जल्दी अपने भाइयों की खोज में जाना चाहता था। होनी ने उसे भी जंगल में गुफा के द्वार तक पहुँचा दिया। छोटा भाई बहुत समझदार था। गुफा में जब उसने पत्थर की ढेरों मूर्तियाँ देखीं तो उसका माथा ठनका। अलाव के उजाले में ध्यान से मूर्तियों को देखने लगा। जल्दी ही उसने अपने दोनों भाइयों की मूर्तियों को पहचान लिया और मन ही मन सोचा-यहाँ अवश्य कोई छल है, मुझे बहुत सावधान रहना चाहिए। 

उसने अभी चिड़ियों को भूनना शुरू ही किया था कि पानी में भीगी, थरथर काँपती बुढ़िया ने गुफा के अंदर झाँका और कहा, “सरदी बहुत लग रही है बेटा, क्या मैं थोड़ी आग ताप लूँ?” 

“नहीं, बिल्कुल नहीं, मैं तुम्हें अंदर नहीं आने दूँगा!” इस पर बुढ़िया मन ही मन कुछ बुदबुदाई फिर बोली, “बेटा तुम्हारे मन में तो कोई दया माया नहीं है, फिर भी मैं तुम्हारा खाना स्वादिष्ट बनाने के लिए नमक और घोड़े को थोड़े चने देना चाहती हूँ!” 

इस पर छुटका भाई आग बबूला हो गया और उछलकर बुढ़िया का गला दबाते हुए बोला, “दुष्ट बुढ़िया, तू मुझे भी ख़त्म करना चाहती है! मैं तुझे अभी मज़ा चखाता हूँ!” और बाएँ हाथ से बुढ़िया का गला दबाकर, दाएँ हाथ से तलवार निकाल कर उसके गले पर रखते हुए बोला, “दुष्ट बुढ़िया मेरे भाइयों को अभी लौटा नहीं तो मैं तेरा गला काटता हूँ। पहले तो बुढ़िया अपने को निर्दोष बताती रही पर जब उसे लगा कि यह नौजवान उसे मार ही देगा तब उसने अपनी करनी स्वीकार कर ली अपनी जेब से उसने एक मलहम की डिबिया निकाली और नौजवान को देने लगी पर वह उसे छोड़ना नहीं चाहता था। वह तलवार पर उसकी गर्दन पर रखे-रखे उसे मूर्तियों के पास ले गया और सब पर मरहम लगाने को कहा जैसे-जैसे मूर्तियों पर मरहम लगता जाता वे सजीव होती जातीं। थोड़ी ही देर में गुफा लोगों से भर गई जब सारी मूर्ति में प्राण वापस आ गए तो बड़े भाई ने बुढ़िया के हाथ से मलहम की शीशी ले ली और छोटे भाई ने बुढ़िया का सिर धड़ से अलग कर दिया। जंगल का जादू टूट गया था!! तीनों भाई गले मिले! जीवित हुए सभी लोगों ने छुटके की जयजयकार की और उसका एहसान जताया। 

तीनों भाई आपस में आपबीती सुनने-सुनाने लगे तो बड़का क्रोध और ईर्ष्या से जल उठा कि उसकी नवविवाहिता पत्नी के साथ उसके दोनों भाई भी रात बिता चुके हैं!! उसने अपनी तलवार निकाली और बिना सोचे समझे दोनों भाइयों के गले काट दिए। लेकिन जब उसने अपने सामने अपने जुड़वाँ भाइयों के शव देखें तब वह मानो दुख से पागल हो गया। उसने अपने गले पर भी तलवार रख ली, लेकिन जो दूसरे लोग गुफा से जीवित होकर लौट रहे थे उन्होंने उसे रोका और उस मलहम की याद दिलाई जो वे जादूगरनी से लेकर आ रहे थे। मलहम लगाते ही मंझला और छुटका भाई जीवित हो गए। अब बड़ा भी आनंदित हो गया और अपने दोनों छोटे भाइयों से क्षमा माँगने लगा। उन्होंने उसे क्षमा कर दिया और भाभी के पलंग पर बीच में तलवार रखकर सोने की बात भी बता दी। 

जब वे तीनों महल पहुँचे तो सब ओर ख़ुशियाँ छा गईं। रो-रोकर लगभग अंधी हो चुकी राजकुमारी अपने सामने एक जैसे तीन नौजवानों को देखकर घबरा गई, वह समझ नहीं पा रही थी कि उसका विवाह किसके साथ हुआ था! उसकी यह परेशानी देखकर सबसे बड़ा भाई सामने आया और अपने दोनों छोटे भाइयों से सबको मिलवाया। 

राजा ने दोनों छोटे भाइयों को अपना दरबारी बना लिया और तीनों के माता-पिता को भी राजधानी में ही बुला लिया। सब सुख से जीने लगे। 

“जो जो यह क़िस्सा सुने उन सब को आसीस। 
सब पर कृपा करते रहें ऊपर बैठे ईस।”

1 टिप्पणियाँ

  • सचमुच बहुत हीं सुंदर व रोचक कथा। और उससे भी सुंदर हिन्दी अनुवाद। ऐसा लग रहा है जैसे यह हिन्दी की हीं मूल कथा है।

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