सावधान-एक मिलन
सरोजिनी पाण्डेय
वसंत ऋतु की किशोरी धरती
रंग बिरंगे फूल पत्तियों की
घाघरा-चोली पहन,
कोयल की कूक
और भ्रमर का संगीत सुन,
तितली के पंखों पर उड़ती
धीरे-धीरे किशोरी से बनती है युवती,
आकाश का सूर्य
शीत पर विजय पाता,
अपने चढ़ते यौवन के ताप—
प्रखर प्रताप से कुछ-कुछ मदमाता
धरती पर दृष्टि पड़ते ही
सम्मोहित हो उठता है,
उसको ब्याह लेने को
प्रेमोपहार स्वरूप,
‘अमलतास’ के स्वर्णमय आभूषण
और
‘गुलमोहर’ की लाल चुनर भेजता है
धरती की स्वीकृति जब उसको मिल जाती है
‘पलाश’ के ‘ज्वाला से लगते’ फूलों की
हवन-अग्नि वनों में दिख जाती है,
इस पावन-पावक के फेरे लगा दोनों
विवाह की पवित्र ग्रंथि बँध जाते हैं
सलेटी बादलों की झीनी चदरिया तले
दूल्हा और दुलहन मिलकर एक हो जाते हैं,
वर्षा ऋतु के कजरारे मेघ
इस नैसर्गिक मिलन पर मानो,
आशीषों का घनघोर नेह-नीर बरसाते हैं,
दोनों की तृषा जब तृप्त हो जाती है
धरती की कुक्षि-तब
उर्वर हो आती है
हम पृथ्वीवासी इस मिलन से ही जीवन पाते हैं,
धरती की उपज से ही
प्राणों की रक्षा कर पाते है!
धरती यदि ‘दूषित’ हुई
सूर्य ने मुँह फेर लिया,
वनों ने ‘न’ गहने-कपड़ों का उपहार दिया?
सोचो तो! सारा तारतम्य बिगड़ जाएगा,
धरती को भला कौन उर्वरा बनाएगा?
बंध्या होती धरती क्या हमें धार पाएगी,?
एक दिन मानव जाति नष्ट हो जाएगी!!!
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