अमरलोक
सरोजिनी पाण्डेयमूल कहानी: द लैण्ड व्हेयर वन नेवर डाइज़; चयन एवं पुनर्कथन: इतालो कैल्विनो
अंग्रेज़ी में अनूदित: जॉर्ज मार्टिन; पुस्तक का नाम: इटालियन फ़ोकटेल्स
हिन्दी में अनुवाद: सरोजिनी पाण्डेय
एक दिन एक नौजवान बोला, "मुझे यह बात बिल्कुल अच्छी नहीं लगती कि हर किसी को एक न एक दिन मरना ही पड़ता है। मैं ऐसी जगह की खोज करूँगा जहाँ कोई कभी नहीं मरता।"
वह अपने माता-पिता, सगे-संबंधियों सबसे विदा लेकर चल पड़ा अमरलोक की खोज में!
वह हर मिलने वाले से अमरलोक की राह पूछता, दिनों, महीनों चलता रहा पर उसे कोई ऐसा न मिला जो उसे सही राह दिखा पाता।
दिखाता भी कैसे?
चलते-चलते एक दिन, हाथगाड़ी धकेलता एक वृद्ध, जिसकी सफ़ेद दाढ़ी उसकी छाती तक लटक रही थी, उसे मिला। युवक ने उससे पूछा, "क्या तुम मुझे उस स्थान का रास्ता बता सकते हो जहाँ कोई कभी नहीं मरता?"
"क्या तुम मरना नहीं चाहते? तो मेरे साथ लगे रहो। जब तक मैं इस पूरे पहाड़ को पत्थर-पत्थर में तोड़कर, ढो नहीं डालता, तुम नहीं मरोगे।"
"इसे समतल करने में आपको कितना समय लगेगा?"
"कम से कम सौ साल "
"और इसके बाद मैं मर जाऊँगा?"
"शायद ऐसा ही हो।"
"नहीं यह जगह मेरे लिए नहीं है, मैं ऐसी जगह जाऊँगा, जहाँ कभी कोई नहीं मरता!"
बूढ़े को राम-राम कहकर युवक आगे बढ़ गया। कोसों-मीलों चलने के बाद उसे एक जंगल दिखाई पड़ा, जिसका अंत दिखलाई ही नहीं पड़ता था। अंदर घुसने पर जंगल में उसे एक बूढ़ा दिखाई दिया। उसकी सफ़ेद दाढ़ी नाभी तक लटक रही थी। उसके हाथ में एक लग्गी थी, जिसमें हंसुआ लगा था। वह पेड़ों की छोटी-छोटी टहनियों की छँटाई कर रहा था। जवान ने उससे भी पूछा, "बाबा क्या आप मुझे वह राह बता सकते हैं, जो अमर लोक को जाती है? मैं मरना नहीं चाहता।"
"तुम मेरे साथ ही रहो," बूढ़े ने कहा, "जब तक मैं सारे जंगल के पेड़ों की छँटाई ना कर लूँ, तुम नहीं मारोगे।"
"यह कितने वक़्त में हो पाएगा?"
"कौन जाने? शायद दो सौ साल लग जाएँ।"
"और उसके बाद, मुझे मरना ही होगा?"
"बिल्कुल दो-सौ साल क्या कम हैं?'
"तब तो मैं नहीं रुकूँगा। मैं ऐसी जगह जाना चाहता हूंँ, जहाँ कभी मरना नहीं होगा।"
वृद्ध को अलविदा कह कर युवक आगे बढ़ गया। कुछ महीनों की यात्रा के बाद वह सागर तट पर पहुँचा। वहाँ उसने देखा कि एक बूढ़ा बैठा हुआ एक बत्तख को पानी पीते देख रहा है, दाढ़ी उसकी सफ़ेद है और घुटनों तक झूल रही है।
"क्या आप मुझे ऐसी जगह का पता बता सकते हैं, जहाँ कोई कभी मरता नहीं?"
"यदि तुम मरने से डरते हो तो मेरे साथ आ बैठो, वह बत्तख देखते हो, जब तक यह समुद्र का सारा पानी पी नहीं लेती, तब तक तुम्हें मरने का कोई ख़तरा नहीं है।"
"ऐसा कब तक हो पाएगा ?"
"हो सकता है तीन सौ साल लग जाएँ"
"उसके बाद मैं मर जाउँगा?"
"तुम और क्या चाहते हो? आख़िर तुम कितना जीना चाहते हो?"
"नहीं-नहीं यह जगह मेरे लिए नहीं है। मैं ऐसी जगह जाना चाहता हूंँ, जहाँ मुझे कभी मरना ही ना पड़े।"
जवान अपनी खोज में फिर चल पड़ा।
आख़िरकार एक शाम वह एक भव्य महल के सामने आ खड़ा हुआ। द्वार खटखटाया, और एक बूढ़े ने द्वार खोल दिया। उस बूढ़े की दाढ़ी पैरों तक लटक रही थी।
"क्या चाहते हो युवक?"
"मैं ऐसी जगह की तलाश में हूंँ, जहाँ कोई नहीं मरता।"
"बहुत अच्छा हुआ, वह जगह तुम्हें मिल गई है। यह वही जगह है, जहाँ कोई कभी नहीं मरता। मैं शर्त लगा कर कहता हूंँ कि जब तक तुम मेरे साथ रहोगे, नहीं मरोगे।"
"हे भगवान! कितना चलकर मैं यहाँ आ पाया हूंँ! यह वही 'अमरलोक' है जिसकी खोज में मैं भटक रहा था। लेकिन मैं तुम पर बोझ तो नहीं बनूंँगा?"
"बिल्कुल नहीं! मैं यहाँ एकाकी हूँ, तुम्हारा साथ पाकर अतिप्रसन्न रहूंँगा।"
और . . . वह जवान उस वृद्ध के साथ एक राजा की तरह रहने लगा। दिन इतने आनंद से और इतने वेग से बीत रहे थे कि वह समय की गणना ही भूल गया।
अचानक एक दिन उसने वृद्ध से कहा, "इस जगह से अच्छी कोई दूसरी जगह नहीं है। फिर भी एक बार मैं अपने परिवार से कुछ देर के लिए मिलना चाहता हूंँ। अक़्सर सोचता हूंँ, उन लोगों के बारे में कि वे लोग कैसे होंगे।"
"किस परिवार की बात कर रहे हो? वे सब के सब तो कब के मर-खप चुके हैं।"
"फिर भी, मैं एक बार अपने जन्मस्थान जाना चाहता हूंँ, हो सकता है, मेरे संबंधियों के नाती-पोते-परपोते वहाँ मुझे मिल जाएँ!"
"यदि तुम जाना ही चाहते हो, तो मेरी बातें ध्यान से सुनो, अस्तबल में जाओ और मेरा सफ़ेद घोड़ा ले लो। वह वायु-वेग से चलता है। ध्यान रहे, जब एक बार उस पर सवार हो जाओगे तो उससे हरगिज़-हरगिज़ न उतरना! अगर उतरे तो उसी क्षण तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी।"
"चिंता न करें, मैं काठी से कभी नहीं उतरूँगा! आपको तो मालूम ही है कि मुझे मरने के विचार तक से घृणा है।"
वह अस्तबल में गया, सफ़ेद घोड़े पर काठी लगाई और सवार हो गया। और हवा की तरह यह जा – वह जा . . .
कुछ ही क्षणों में वह उस जगह जा पहुँचा जहाँ उसे एक बूढ़ा बत्तख के साथ दिखाई दिया था। जहाँ कभी सागर लहरा रहा था, वहाँ घास का लहलहाता मैदान था। किनारे पर हड्डियों का एक छोटा सा ढेर देखकर वह मन ही मन बोला, "बेचारा बुड्ढा!अच्छा हुआ, मैं यहाँ नहीं रुका, नहीं तो मैं भी हड्डियों का ढेर ही होता अब तक।"
वह आगे बढ़ा तो उस जगह पहुँचा, जहाँ कभी जंगल था और कोई बूढ़ा आदमी पेड़ों की छँटाई कर रहा था। वहाँ अब एक भी पेड़ नहीं था। ज़मीन रेगिस्तान बन चुकी थी। युवक ने सोचा, "यदि मैं यहाँ रुका होता तो उस वृद्धात्मा की तरह मैं भी न जाने कब का संसार से जा चुका होता।"
कुछ ही क्षणों में वह वहाँ जा पहुँचा जहाँ कभी ऊँचा पर्वत था, जिसे एक बूढ़ा पत्थर-पत्थर ढोकर समतल कर रहा था। वह धरती अब चिकनी और सपाट थी।
"यहाँ रुका होता तो भी मेरा कुछ भला ना होता।"
वह चलता रहा-चलता रहा-चलता रहा। अंत में अपने क़स्बे में जा ही पहुँचा। पर यह क्या!! यहाँ तो सब कुछ इतना बदल चुका था कि पहचानना कठिन था। उसके मकान की तो बात ही क्या, वह गली और मोहल्ला भी नदारद था! उसने अपने परिजनों का पता जानना चाहा, लेकिन वहाँ तो लोगों ने तो उसके परिवार का नाम तक कभी न सुना था, सब ख़त्म हो चुका था।
उसने तुरंत वापस लौटने का फ़ैसला कर लिया। घोड़े की रास मोड़ी और लौट पड़ा। अभी वह आधे रास्ते ही गया होगा कि देखा, एक बूढ़ा आदमी जूतों से भरी बैलगाड़ी हाँक रहा है, "बाबूजी,” गाड़ीवान ने कहा, "थोड़ी दया करिए। मेरी गाड़ी का पहिया कीचड़ में धँस गया है, ज़रा सा हाथ लगा दीजिएगा तो मेरे बैलों को सहारा मिल जाएगा।"
"मैं जल्दी में हूंँ, घोड़े से उतर नहीं सकता," युवक बोला।
"ग़रीब पर दया करो बाबू! मैं यहाँ अकेला हूंँ, ऊपर से रात भी होने वाली है। मैं दुखियारा हूँ।"
वृद्ध की दशा देख, युवक का दिल पसीज गया। वह घोड़े से उतर पड़ा। अभी उसका एक पैर रकाब में ही था कि गाड़ी वाले ने उसकी बाँह पकड़कर खींची और बोला, "आख़िर आज तुम मिल ही गए! जानते हो मैं कौन हूंँ? मैं मृत्यु हूंँ। इस गाड़ी में भरे ये पुराने-फटे जूते देख रहे हो? यह सब तुम्हारा पीछा करने में दौड़ते हुए फटे हैं! अब जाकर तुम मेरे हात्थे चढ़े हो, मुझसे कभी कोई नहीं भाग सकता!"
. . . और उस बेचारे युवक को भी मरना पड़ा जैसे सभी मरते हैं!!!
तो क़िस्सा ख़तम पैसा हज़म! फिर कभी मिलेंगे तो पढ़ेंगे, एक नई कहानी मेरी क़लम की ज़ुबानी।
3 टिप्पणियाँ
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कहानी बहुत ही अच्छी है। इसमें एक गहरी सीखे है। इसको पढ़कर मुझे एक दूसरी कहानी भी याद आई उसमें भी अंत में मृत्यु आदमी को पकड़ ही लेती है।
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कथा अच्छी अनुवाद और भी अच्छा
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बहुत ही सुन्दर अनुवाद
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