मेरी दृष्टि—सिलिकॉन घाटी
सरोजिनी पाण्डेयकैसी यह कैलिफ़ोर्निया की धरती,
जो भारत के युवाओं को ललचाती है,
विश्व भर से वैज्ञानिक प्रतिभायें
यहाँ खिंची चली आती हैं,
कैसी है यह धरती कैसे हैं ये नगर?
जहाँ गोरी-काली, भूरी-पीली
सभी रंग की त्वचाएँ आ जाती हैं नज़र!
हल्की भूरी पहाड़ियाँ
रेत के ढूहों जैसी लगती हैं,
ये कभी भूरी, सुनहरी, कभी हरी
और कभी रँगीली भी लगती है,
पहाड़ी ढलानों पर बादाम-अंगूर के बग़ीचे दिखाई देते हैं,
तलहटी की घाटी में छोटे-बड़े नगर बसे लगते हैं,
हरे-भरे गोल्फ़ के मैदान
इसकी पहचान बनाते हैं,
बांज-देवदार प्रजाति के वृक्ष
छोटे-बड़े अरण्य भी बनाते हैं,
ऐसे ही छोटे-से जंगल में बने
एक घर में, मैं आजकल रहती हूँ,
जिज्ञासु-उत्सुक आँखों से
यहाँ की प्रकृति निरखती हूँ,
पतझड़ का मौसम है
वृक्ष अधिकांश ठूँठ-से लगते हैं
धरती पर गिरे सूखे पत्ते और बांज
के फल पैरों के नीचे पड़ते हैं
चर्र-मर्र करते हुए वे मेरे
पैरों का आघात सहते हैं,
हरिणों के छोटे-बड़े परिवार
आस-पास रहते हैं,
बड़ी-बड़ी आँखों, प्रश्नवाचक दृष्टि से वे मुझे तकते हैं
रुक कर कभी मैं हाथ हिलाती,
कभी सीटी-बजाती हूँ,
मुँह उठाए, कान हिलाते हुए उनको
सावधान-चौकन्ना पाती हूँ,
ऐसे ही किसी मृग ने सीता को लुभाया होगा?
यहाँ तो सारे मृग धूसर ही दिखते हैं
पर सीता ने तो उन्हें स्वर्णमय पाया होगा!
मोटी-मोटी गिलहरियाँ
पेड़ों से सरपट उतर आती हैं,
दोनों हाथों से बांज के फल थाम
कठोर छिलके अपने पैने दाँतों से उतार,
कोमल गूदा बड़े आनंद से खाती हैं,
यहाँ की गिलहरियों ने शायद राम की कृपा नहीं पाई?
उनकी पीठ पर कभी लकीरें,
नहीं देती दिखाई!
कभी-कभी आकाश में अकेला पक्षी बोलता है
शायद अपने शावकों या साथी को टेरता है,
सुबहें गुलाबी, दिन उजियारे,
शामें सुनहरी होती हैं,
विहगों के वृन्द गान बिन वे सारी सूनी लगती हैं!
पंच तत्वों के विधान से परिदृश्य नित है बदलता,
क्या यहाँ के विहगों को उनका ज्ञान नहीं होता?
क्यों सुबह-शाम वे गान नहीं करते?
ईश्वर की कृपाओं का बखान वे नहीं करते?
दिन ढले झींगुर-झिल्ली झंकार नहीं करते,
रात के सन्नाटे को स्वर प्रदान नहीं करते?
भोर का सूरज घाटी से रेलगाड़ी की आवाज़ सुनता है,
धुलाई-सफ़ाई करने वाली मशीनों का
निर्जीव स्वर दिन भर गूँजता है,
मानव निर्मित मशीनें ही यहाँँ बस बोलती हैं!
प्रकृति रह कर मौन वही सब सुनती है,
‘कलयुग’ के इस दौर में यहाँ मशीनों का बोलबाला है,
और यही ‘मशीनी’वर्चस्व युवाओं को लुभाने वाला है॥
1 टिप्पणियाँ
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बहुत गहरा निरीक्षण भारत और अमेरिका का अन्तर बताती सुन्दर कविता.
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