मेंढकी दुलहनिया

01-08-2024

मेंढकी दुलहनिया

सरोजिनी पाण्डेय (अंक: 258, अगस्त प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

मूल कहानी: इल् प्रिन्सिपी चे स्पोसो  उना राना; चयन एवं पुनर्कथन: इतालो कैल्विनो
अंग्रेज़ी में अनूदित: जॉर्ज मार्टिन (द प्रिंस हू मैरीड ए फ़्राग); पुस्तक का नाम: इटालियन फ़ोकटेल्स; 
हिन्दी में अनुवाद: ‘मेंढकी दुल्हनिया’ सरोजिनी पाण्डेय

 

एक बार की बात है, एक राजा था। उसके तीन बेटे थे और तीनों ही जवान हो गए थे, ब्याह करने की उम्र के। बेटों के लिए दुलहन खोजने और बाद में बेटों की बातें सुनने से बचने के लिए एक दिन राजा ने अपने तीनों बेटों को बुलाया और उन्हें एक-एक गोफन (स्लिंग) देते हुए कहा, “इस गोफन से निशाना लेकर तुम तीनों एक-एक पत्थर फेंको, जिसका पत्थर जहाँ गिरेगा उसको, वहीं आसपास से मिली लड़की से ब्याह करना होगा। तीनों राजकुमारों ने अपनी-अपनी गोफनी पकड़ी, उसमें कंकड़ रखा और उसे सिर के ऊपर घुमाते हुए पत्थर को फेंका। बड़े राजकुमार का पत्थर एक तंदूर वाले की छत पर गिरा, उसे नानबाई की बेटी से ब्याह करना होगा। दूसरे राजकुमार का कंकड़ एक जुलाहे के घर पर गिरा और सबसे छोटे का पत्थर एक खाई में। 

पत्थर फेंकने के बाद तीनों राजकुमार एक-एक अँगूठी लेकर अपनी मंगेतरों की खोज में चल पड़े। बड़े राजकुमार को नानबाई की बेटी मिली जो ताज़ी बनी हुई नान की तरह ताज़गी भरे चेहरे-मोहरे वाली लड़की थी। मँझले राजकुमार को रेशम जैसी चिकनी ख़ाल और ज़री के तार जैसे सुनहरे बालों वाली, जुलाहे की बेटी मिली और सबसे छोटे राजकुमार को बहुत खोजने पर भी खाई में एक छोटी मेंढकी के सिवाय कुछ ना मिला। 

पिता को अपनी मंगेतरों के बारे में सूचना देने के लिए तीनों उनके पास पहुँचे। सारी बात सुनने के बाद राजा ने कहा, “अब जिस राजकुमार की दुलहन सबसे गुणवती सिद्ध होगी, वही मेरे राज्य का उत्तराधिकारी होगा। अब मैं परीक्षा आरंभ करता हूँँ।” ऐसा कहकर राजा ने तीनों राजकुमारों को रूई की एक छोटी गठरी पकड़ा दी और तीन दिन बाद उसके सूत से बना हुआ कपड़ा लेकर आने को कहा। 

तीनों राजकुमार अपनी-अपनी भावी दुलहनों को रूई की गठरी देने पहुँचे और सबसे बढ़िया सूत कातकर, उसका कपड़ा बनाने को कहा। सबसे छोटा राजकुमार भी रूई की गाँठ लेकर खाई के किनारे पहुँचा और आवाज़ लगाई:

“मेंढकी ओ मेंढकी!”

 “कौन लगाता है पुकार?” 

“मैं हूँ, पिया तेरा होने वाला, 
 जो करता नहीं तुमसे प्यार!”

“कोई बात नहीं, जो मुझे नहीं चाहते
करते बहुत प्यार जो मुझे पहचानते।

इस बातचीत के बाद मेंढकी खाई से बाहर आयी और एक पत्ते पर बैठ गयी। राजकुमार ने उसे रूई की गाँठ दे दी और तीन दिन बाद आने की बात कह कर चला गया। तीन दिन बाद तीनों राजकुमार कपड़ा लेने चल पड़े। नानबाई की बेटी ने अच्छा, बारीक़ सूत कातकर बढ़िया कपड़ा बनाया था। 

जुलाहे की बेटी तो यह काम बचपन से ही देखती आयी थी उसका सूत बहुत बारीक़, चिकन और चमकीला, और कपड़ा तो बिल्कुल रेशम जैसा ही लगता था। 

अब देखना था कि मेंढकी ने क्या किया? राजकुमार बुझे मन से खाई के किनारे गया और आवाज़ लगाई:

“मेंढकी ओ मेंढकी“

“कौन लगता है पुकार?” 

“मैं हूँ पिया तेरा होने वाला 
 जो करता नहीं तुझसे प्यार।”

“कोई बात नहीं, जो मुझे नहीं चाहते
 करते बहुत प्यार, जो मुझे पहचानते“

जब बातचीत हो गई तो मेंढकी उछल कर बाहर आयी और एक पत्ते पर बैठ गई। इसके मुँह में एक अखरोट दबा था। 

राजमहल में जब दोनों बड़े भाइयों ने पिता को रूई से बना हुआ कपड़ा दिया तो छोटा राजकुमार पिता के हाथों में एक अखरोट देते हुए शर्म से पानी-पानी हो रहा था, लेकिन देना तो था ही! 

राजा ने नानबाई की बेटी और जुलाहे की बेटी के कपड़े-सूत की परख जब कर ली, तब अखरोट को तोड़ा। दोनों भाई व्यंग्य भरी मुस्कराहट के साथ, बड़ी उत्सुकता से देख रहे थे। जैसे ही अखरोट टूटा उसमें से बहुत बारीक़ नर्म और चिकना कपड़ा निकलने लगा। कपड़ा इतना बढ़िया और महीन था कि उसके पहले किसी ने ऐसा कपड़ा कभी देखा तो क्या, सुना भी नहीं था। कपड़ा अखरोट से निकलते-निकलते राजा के हाथ से निकल कर उनके पैरों तक जा पहुँचा और कमरे में भरने लगा। तब राजा के मुँह से निकला, “अरे यह तो निकलना बंद ही नहीं हो रहा है!”और जैसे ही यह शब्द राजा के मुँह से निकले कि कपड़े का निकलना बंद हो गया। मेंढकी को राजा की परीक्षा में सबसे अधिक अंक मिले थे। लेकिन महारानी के पद के लिए एक मेंढकी की बात राजा के गले से नीचे नहीं उतर रही थी। 

उन्हीं दिनों राजा की शिकारी कुतिया ने तीन पिल्ले दिए थे। राजा ने तीनों कुमारों को एक-एक पिल्ला देकर कहा, “इन्हें ले जाकर अपनी-अपनी मंगेतरों को दे आओ। एक महीने बाद इन्हें वापस ले आना। जो लड़की अपने पिल्ले की सबसे अच्छी परवरिश करेगी उसी का पति राजा और वह महारानी बनेगी!”

तीनों राजकुमारों ने पिता के आदेश का पालन किया और एक महीने बाद अपनी मंगेतरों से पाले-पोसे कुत्ते लेकर आए। 

नानबाई की बेटी के पास का कुत्ता जी-भर रोटी और नान खा-खा कर मोटा तगड़ा रक्षक कुत्ता बन गया था। 

जुलाहे की बेटी के पास का पिल्ला बहुत नपा-तुला खाने को पाता था, वह दुबला-पतला, चौकन्ना, स्वस्थ शिकारी कुत्ता बन गया था। सबसे छोटा राजकुमार अपने दोनों हाथों में उठाए एक बॉक्स लेकर राजा के सामने आ गया। जब राजा ने बक्सा खोला तो उसमें से एक सजा-सँवरा, तेल-फुलेल लगाए, गले में रिबन पहने एक छोटा झबरा, प्यारा-सा कुत्ता निकला, जो बक्से से बाहर आते ही अपने पिछले पैरों पर खड़ा हुआ और फिर सधी चाल से राजा की तरफ़ बढ़ा। उसे देखते ही राजा के मुँह से बेसाख़्ता निकल पड़ा, “बेशक, मेरा सबसे छोटा बेटा राजा बनेगा! और उसकी दुलहन मेंढकी रानी!!”

अगले ही दिन तीनों कुमारों की शादी के लिए निश्चित कर दिया गया। 

बड़े दोनों राजकुमार फूल मालाओं से सजी चार घोड़े की बग्गी में बैठाकर, अपनी-अपनी दुलहनों को महल में ले आए। 

छोटा राजकुमार भी मन मसोसते हुए अपनी दुलहन को विदा कराने खाई के किनारे जा खड़ा हुआ। उसकी मेंढकी दुलहनिया अंजीर के पत्तों से बनी एक छोटी सी गाड़ी में, जिसको खींचने के लिए चार घोंघे लगे थे, बैठी, अपने दूल्हे की राह देख रही थी। राजकुमार इस गाड़ी के आगे-आगे चला, पीछे-पीछे घोंघे अपनी चाल से गाड़ी खींचते चले। 

राजकुमार को बार-बार रुकना पड़ रहा था जिससे पीछे आती गाड़ी साथ आ जाए। कई बार रुकने और चलने से राजकुमार ऊब और झुँझला गया था। एक बार जब वह गाड़ी के आने की राह देखता बैठा था तो उसे बार-बार जम्हाई आने लगी। फिर उसे झपकी भी आ गई। जब उसकी नींद खुली तो उसने देखा कि उसके पास एक सुनहरी बग्गी‌ खड़ी है जिसमें दो सफ़ेद, सुंदर, पुष्ट घोड़े जुते हुए हैं, अंदर मख़मली आसन पर हरी चुनरी पहने, हीरे-पन्ने और मोती से बने गहनों से सजी सुंदर युवती बैठी है। राजकुमार ने हैरानी से पूछा, “तुम कौन हो?” 

“मैं हूँ तुम्हारी मेंढकी।”

राजकुमार को उसकी बात पर भरोसा नहीं हुआ। तब उस दुलहनिया ने पास ही रखी एक छोटी-सी बकसिया का ढक्कन खोला, उसमें कुछ अंजीर के पत्ते, मेंढक की खाल और चार घोंघे के खोल रखे थे। 

वह बोली, “मैं भी कभी राजकुमारी ही थी, मैं मेंढकों से बहुत घृणा करती थी और जहाँ भी मेंढक दिख जाएँ उन्हें सताती और मार डालने की कोशिश करती थी। अचानक एक दिन मुझे एक परी ने श्राप दिया कि मैं तब तक मेंढकी ही बनी रहूँगी, जब तक कोई राजा का बेटा मुझे उस रूप में ब्याह नहीं लेता।”

महल में पहुँचने पर जब राजा को सारी कहानी मालूम हुई तो उसकी ख़ुशी का ठिकाना ना रहा, लेकिन दोनों बड़े भाई छोटे के प्रति जलन से भर उठे क्योंकि राजा ने कहा, “सबसे योग्य पत्नी वाला बेटा राजा बनेगा!”

राजा के बाद सबसे छोटे राजकुमार को राजगद्दी मिली और उसकी “मेंढकी दुलहनिया” रानी बनी॥

‘बस, कहानी हुई ख़त्म पैसा सारा हुआ हज़म।’

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

अनूदित लोक कथा
कविता
सांस्कृतिक कथा
आप-बीती
सांस्कृतिक आलेख
यात्रा-संस्मरण
ललित निबन्ध
काम की बात
यात्रा वृत्तांत
स्मृति लेख
लोक कथा
लघुकथा
कविता-ताँका
सामाजिक आलेख
ऐतिहासिक
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में