दरवाज़े पर लगी फूल की बेल

01-05-2024

दरवाज़े पर लगी फूल की बेल

सरोजिनी पाण्डेय (अंक: 252, मई प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

देखी थी रोज़ उसको
साँझ की बेला में 
सर झुकाए एकाकी 
जाती गिरजाघर को 
सोचती थी, 
सदा क्यों रहती है अनमनी? 
एक दिन जान गई मैं उसकी कहानी
 
दो प्रेमी हृदय मिलकर
बना रहे थे घर 
देखते थे सपने
रहेंगे हिलमिल कर एक दिन
 
एक दिन जब हो जाएगा
हमारा अपना घर 
होंगी संतानें
गूँजेंगी किलकारियाँ, 
मिलने आया करेंगे 
ढेरों हमारे जन
 
सपने सब टूट गए
टूट कर बिखर गए
छोड़कर प्रिय का हाथ 
एक चला गया ईश्वर के पास, 
 
घरौंदा तो बनना था
आश्रय जो लेना था! 
घर बन भी गया 
बसना था, बस गया
  
घर के द्वार पर रोपी गई
फूलों की एक लतर
पहचानते हैं उसको लोग
‘ब्लीडिंग हार्ट’ कहकर
 
लता जब फूलती है, 
फूलों से सजती है, 
एक एक फूल कहता है, 
टूटे दिल की कहानी
उजले ‘हृदय’ से टपके, 
’लाल लहू’ की बूँद की ज़ुबानी॥

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