गुज़रते पल-छिन

01-11-2021

गुज़रते पल-छिन

सरोजिनी पाण्डेय (अंक: 192, नवम्बर प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

ये साँवले धुँधले से, नंगे शरीर
चिकनी त्वचा वाले बीतते हुए
'चोर क्षण' हाथों से यूँ ही फिसल जाएँगे
हम तुम जान भी न पाएँगे
कहाँ, कब सरक गए ये पल?
 
और फिर किसी दिन
बीते हुए, चिकने, हाथों से फिसल गए-से
इन पलों कीआत्मायें, तुम्हारे अनजाने में
धर कर 'भूत' रूप
करते हुए अट्टहास
आकर तुम्हारी यादों में
हमको–तुमको रह-रहकर डराएँगी
 
डरो मत!!!
 
हो जाओ सावधान
रहो सतत चौकस
पकड़ने की कोशिश करो
इन सरकते पलों को
जब तक ये उज्जवल हैं
जीवंत, हँसते-खिलखिलाते पल
जी लो भरपूर इन्हें
उकेर लो इन्हें स्मृति के पन्नों पर
जिससे डरना ना पड़े
इन बीते हुए पलों कीआत्माओं से
आएँ जब याद ये
बनकर के 'भूतकाल'
भर दें ये हृदय को परम संतोष से
यही रक्षा मंत्र है, 
बचने का 'भूतों की व्याधि’ से!

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