नाशपाती वाली लड़की
सरोजिनी पाण्डेय
मूल कहानी: ला बैम्बीना वेन्डुटा कान् ल पेरेआइ ट्रे कास्टेली; चयन एवं पुनर्कथन: इतालो कैल्विनो
अंग्रेज़ी में अनूदित: जॉर्ज मार्टिन (द लिटिल गर्ल सोल्ड विद द पेयर्स); पुस्तक का नाम: इटालियन फ़ोकटेल्स;
हिन्दी में अनुवाद: ‘नाशपाती वाली लड़की’ सरोजिनी पाण्डेय
एक किसान था, जिसके पास केवल एक नाशपाती का पेड़ था। मौसम आने पर हर साल जो फल उससे उतरते उसमें से किसान को चार टोकरे नाशपाती राजा के पास पहुँचानी पड़ती थी। एक साल फ़सल ख़राब हो गई पेड़ से कुल साढ़े तीन टोकरे ही नाशपाती उतरी। अब बेचारा किसान क्या करे? राजा के पास तो चार टोकरे ही भेजने थे। जब तीन टोकरे नाशपाती से भर गए तब उसने अपनी सबसे छोटी बेटी को चौथे टोकरे में डाल दिया और ऊपर से नाशपाती और पत्तियाँ वग़ैरा भरकर कर गिनती पूरी कर दी।
चारों टोकरे राजा के भंडार घर में पहुँचा दिए गए। बच्ची टोकरी में ही छुपी रही। जब उसे खाने को कुछ और न मिला तो उसने नाशपतियों को ही कुतरना शुरू कर दिया। कुछ दिन बाद नौकरों ने देखा कि नाशपतियाँ तेज़ी से कम होती जा रही हैं और इधर-उधर बीज और छिलके भी दिखाई पड़ रहे हैं। उन लोगों ने सोचा कि हो न हो कोई चूहा या छछूंदर टोकरोंं में घुस आया है और वही फलों को कुतर रहा है, टोकरों को उलट कर देखना चाहिए और जब टोकरे उलट-पलट कर देखे गए तो एक टोकरे में से किसान की छुपी हुई छोटी बेटी निकल पड़ी।
“तुम यहाँ क्या कर रही हो? बाहर हमारे पास आओ और राजा जी की रसोई में काम करना शुरू कर दो!” नौकरों ने उससे कहा।
उन्होंने उसका नाम भी रख दिया ‘माधुरी’ क्योंकि वह देखने में प्यारी, सुंदर और मीठी-मीठी बातें करने वाली थी! माधुरी बड़ी चतुर और होशियार लड़की थी, छोटी उम्र की होने पर भी उसने महल के सारे काम बहुत जल्दी सीख लिए, यहाँ तक कि महल की दूसरी नौकरानियों से भी अच्छा काम वह सीख गई।
राजा का एक बेटा माधुरी की ही उम्र का था, वह माधुरी के साथ खेलता था। धीरे-धीरे माधुरी उसे बहुत ही अच्छी और प्यारी लगने लगी।
समय के साथ-साथ माधुरी और राजकुमार दोनों बड़े हो रहे थे। राजकुमार और माधुरी के बीच मधुर संबंधों को देखकर महल की और नौकरानी के मन में माधुरी के लिए जलन पैदा होने लगी। कुछ दिनों तक तो उन लोगों ने अपने पर क़ाबू रखा लेकिन फिर खुलेआम माधुरी के बारे में झूठी सच्ची कहानियाँ गढ़ने लगीं। धीरे-धीरे महल में यह बात फैलने लगी कि माधुर ‘भूतनी का ख़ज़ाना’ चुरा कर ला सकती है! उड़ते उड़ते यह बात राजा जी के कानों में भी जा पड़ी और माधुरी के नाम राजा जी का बुलावा आ पहुँचा।
“क्या यह सच है कि तुम भूतनी का ख़ज़ाना चुरा कर ला सकती हो?” महाराज ने कड़क कर पूछा।
“नहीं, नहीं महाराज! मैंने ऐसा कुछ कभी कहा ही नहीं है।”
“अब ऐसा कैसे हो सकता है कि मैंने ग़लत सुना हो; ज़रूर तुमने ख़ज़ाना चुराकर लाने की बात कही है। तुम तुरंत महल से निकल जाओ और तब तक वापस मत आना जब तक ख़ज़ाना मिल ना जाए!” और इस प्रकार बेचारी माधुरी को महल से निकाल दिया गया!
अब मरता क्या न करता! माधुरी चल पड़ी भूतनी के ख़जाने की खोज में। रात होते-होते तक वह चलती रही। रास्ते में उसे सेब का एक पेड़ मिला, वह रुकी नहीं, आगे बढ़ गई। आगे बढ़ने पर उसे आड़ू का एक पेड़ मिला, वह यहाँ भी नहीं रुकी आगे चलती गई। जब आधी रात होने को आई, तब उसे एक नाशपाती का पेड़ मिला। वह झटपट पेड़ पर चढ़ गई और एक डाल पड़कर सो गई।
जब सुबह हुई तो उसने देखा कि पेड़ के नीचे एक बुड्ढी अम्मा खड़ी है। उसने ऊपर चढ़ी माधुरी की ओर देखकर पूछा, “बेटी ऊपर चढ़ी तुम क्या कर रही हो?” माधुरी नीचे उतर आई और अपनी सारी मुसीबत बुड्ढी अम्मा को सुना दी। सब सुनकर थोड़ी देर के लिए अम्मा कहीं ग़ायब हो गई और जब लौटी तो उसके पास जो सामान था उसे माधुरी को देते हुए कहा, “यह एक बोतल तेल है, तीन घी चुपड़ी रोटियाँ और यह हैं खजूर के तीन बड़े पत्ते। यह सब तुम्हारे काम आएँगे। अब तुम जाओ!”
सब सामान लेकर माधुरी आगे चल पड़ी। चलते-चलते वह एक तंदूर के पास से गुज़री जहाँ तीन औरतें अपने सिर से बाल नोंच कर, उन्हें हाथों पकड़ कर तंदूर की राख साफ़ कर रही थीं। माधुरी ने जब यह देखा तो अपने सामान में से खजूर के तीनों बड़े-बड़े पत्ते निकले और एक-एक तीन स्त्रियों को दे दिये। वे तीनों ख़ुशी-ख़ुशी खजूर के पत्तों को झाड़ू की तरह इस्तेमाल करके राख साफ़ करने लगी और माधुरी को आशीर्वाद भी दिया। माधुरी ख़ुशी-ख़ुशी अपनी राह चल पड़ी।
कुछ आगे बढ़ने पर उसे तीन ख़ूँख़ार भोटिया कुत्ते मिले जो आपस में लड़ रहे थे और राह पर आने-जाने वाले पर झपट कर उन्हें काट रहे थे। माधुरी को अम्मा की दी हुई तीन रोटियों की याद आई। उसने रोटियाँ भूखे कुत्तों के आगे फेंक दीं। वे तीनों रोटियों पर झपट पड़े और माधुरी राह पर आगे बढ़ गई।
कई मील चलने के बाद उसे एक नदी मिली, जिसके पानी का रंग ख़ून जैसा लाल और डरावना था। माधुरी की समझ में नहीं आया कि उसे कैसे पार करें। तभी उसे बचपन से मिली सीख याद आई, “सबसे मीठा बोलना चाहिए और सबको अपनी तारीफ़ अच्छी लगती है।” वह कुछ देर रुक कर सोचती रही और फिर हिम्मत करके बोली:
“जल्दी में हूँ, सुंदर नदिया, पानी तेरा मीठा-लाल,
अभी नहीं पी पाऊँगी यह, इसका मुझको बड़ा मलाल।”
ऐसी बात सुनकर नदी बहुत ख़ुश हुई उसने माधुरी को अपने बीच में से रास्ता दिया और माधुरी उस पर चल पड़ी। दूसरी तरफ़ पहुँचकर वह जब आगे बढ़ी तो उसे एक बहुत सुंदर, भव्य महल दिखाई पड़ा, ऐसा महल शायद संसार में कहीं और न हो लेकिन यह क्या! महल में जाने वाले फाटक चर्र-चूँ-चर्र-चूँ करते हुए इतनी तेज़ी से फटाक-फटाक खुल और बंद हो रहे थे कि उनसे होकर कोई भीतर नहीं जा सकता था। अब माधुरी ने अपने पास से तेल की बोतल निकाली और दरवाज़े की चूलों में अच्छी तरह तेल लगा दिया। ऐसा करते ही दरवाज़े के पल्ले आराम से खुलने और बंद होने लगे। माधुरी बड़ी आसानी से भीतर चली गई।
भीतर पहुँच कर उसने इधर-उधर नज़र दौड़ायी। थोड़ी तलाश के बाद उसे एक छोटी सी मेज़ पर ख़जाने की संदूकची दिखायी पड़ गई। वह उसे उठाकर चलने ही वाली थी कि संदूकची से आवाज़ आने लगी:
“द्वार-द्वार इस लड़की को मार!”
दरवाज़े से भी तुरंत आवाज़ आयी:
“हम इसे नहीं मारेंगे! न जाने कितने वर्षों बाद हमें चिकना करके इसने हमारा दर्द मिटाया है।”
माधुरी हाथ में संदूकची उठाए वापस राजा के महल की ओर चल पड़ी।
चलते-चलते वह पहुँच गई लाल नदी के किनारे। यहाँ फिर संदूकची से आवाज़ आयी:
“नदी नदी इस लड़की को मार!”
“मैं इसे नहीं मार सकती, इसने मुझे सुंदर नदिया जो कहा है!” नदी बोली और तभी नदी में से राह बनी और माधुरी चल पड़ी मंज़िल की ओर।
अब वह शिकारी भोटिया कुत्तों की जगह पहुँच गई थी। संदूकची ने फिर से शोर मचाया:
“मेरे कुत्तो आओ आओ
इस लड़की को चीर के खाओ!”
लेकिन कुत्ते यह कहकर रास्ते से हट गए:
“हमने जिसकी रोटी खायी,
उसको कैसे मारें भाई?”
अब माधुरी दौड़ती भागती तंदूर की भट्टी के पास आ पहुँची। संदूकची ने फिर से कड़क आवाज़ लगाई:
“भट्ठी-भट्ठी इसको रोको,
जल्दी इस लड़की फूँको!”
लेकिन भट्टी के सामने वे तीनों औरतें आकर खड़ी हो गईंं, जिन्हेंं माधुरी ने सफ़ाई करने के लिए खजूर के पत्ते दिए थे। वे बोलीं, “इसने हमें खजूर के पत्तों का झाड़ू देकर हमारे बालों को बचाया है, इसे हम जलने नहीं देंगे।”
अब माधुरी राजा के महल के पास पहुँचने वाली थी। तो, उसे यह जानने की इच्छा हुई कि आख़िर इस भूतनी के ख़जाने की संदूकची है क्या? वह अभी बच्ची ही थी ना!!
जैसे ही माधुरी ने संदूकची खोली, एक सुनहरी मुर्गी और उसके साथ सुनहरे चूज़ों की पलटन बाहर आ गई। चूज़े इधर-उधर फुदकने लगे। बेचारी माधुरी दौड़ती-भागती उन्हें पकड़ने की कोशिश करती रही। वह सेब के पेड़ के पास से होकर गुज़री, चूज़े वहाँ ना थे वह और दौड़ी, आड़ू के पेड़ के नीचे भी ना तो मुर्गी थी ना चू़ज़े ही। वह उन्हें खोजती-भटकती रही! जब वह नाशपाती के पेड़ के नीचे पहुँची तो वहाँ वही अम्मा खड़ी थी, मुर्गी और चूज़े उनके चारों ओर घूमते, दाना चुग रहे थे। अम्मा के हाथ में एक छोटी छड़ी थी, ज्योंही उन्होंने छड़ी घुमायी, चूज़ों के साथ-साथ मुर्गी भी माधुरी के हाथ की संदूकची में आ समायी।
अब माधुरी चल पड़ी ख़ुशी-ख़ुशी महल की ओर। महल के बाहर ही उसे राजा का बेटा मिल गया। उसके हाथ में संदूकची देख कर वह बहुत ख़ुश हो गया। उसने माधुरी से कहा, “जब मेरे पिताजी तुमसे इनाम माँगने को कहें, तब तुम उनसे भंडार घर में रखा कोयले का संदूक माँग लेना।”
माधुरी के आने की ख़बर पाकर राजा, दरबारी और नौकर-चाकर सब बाहर निकल आए। माधुरी ने भूतनी के ख़जाने की संदूकची राजा जी को पकड़ा दी, जिसमें सुनहरी मुर्गी और सुनहरे चूज़े थे। राजा साहब की ख़ुशी का ठिकाना ना रहा, उन्होंने कहा, “माधुरी, जो चाहो माँग लो, तुम्हारी इच्छा ज़रूर पूरी की जाएगी।”
“मुझे तो बस भंडार घर में रखा कोयले का बक्सा भर चाहिए महाराज, “माधुरी ने विनम्रता से कहा।
नौकर तुरंत ही भंडार घर से कोयले का बक्सा ले आए और माधुरी के आगे बक्सा खोल दिया गया। अरे यह क्या! उसमें से तो राजकुमार उछलकर बाहर आ गया। अब तो राजा और भी ख़ुश हो गया, राजकुमार माधुरी से शादी जो करना चाहता था!
बस यह कहानी यहीं ख़त्म,
फिर मिलेंगे,
तब एक कहानी और सुनेंगे हम!
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- अनूदित लोक कथा
-
- तेरह लुटेरे
- अधड़ा
- अनोखा हरा पाखी
- अभागी रानी का बदला
- अमरबेल के फूल
- अमरलोक
- ओछा राजा
- कप्तान और सेनाध्यक्ष
- काठ की कुसुम कुमारी
- कुबड़ा मोची टेबैगनीनो
- कुबड़ी टेढ़ी लंगड़ी
- केकड़ा राजकुमार
- क्वां क्वां को! पीठ से चिपको
- गंध-बूटी
- गिरिकोकोला
- गुनी गिटकू और चंट-चुड़ैल
- गुमशुदा ताज
- गोपाल गड़रिया
- ग्यारह बैल एक मेमना
- ग्वालिन-राजकुमारी
- चतुर और चालाक
- चतुर चंपाकली
- चतुर फुरगुद्दी
- चतुर राजकुमारी
- चलनी में पानी
- छुटकी का भाग्य
- जग में सबसे बड़ा रुपैया
- ज़िद के आगे भगवान भी हारे
- जादू की अँगूठी
- जूँ की खाल
- जैतून
- जो पहले ग़ुस्साया उसने अपना दाँव गँवाया
- तीन कुँवारियाँ
- तीन छतों वाला जहाज़
- तीन महल
- दर्दीली बाँसुरी
- दूध सी चिट्टी-लहू सी लाल
- दैत्य का बाल
- दो कुबड़े
- नाशपाती वाली लड़की
- निडर ननकू
- नेक दिल
- पंडुक सुन्दरी
- परम सुंदरी—रूपिता
- पाँसों का खिलाड़ी
- पिद्दी की करामात
- प्यारा हरियल
- प्रेत का पायजामा
- फनगन की ज्योतिष विद्या
- बहिश्त के अंगूर
- भाग्य चक्र
- भोले की तक़दीर
- महाबली बलवंत
- मूर्ख मैकू
- मूस और घूस
- मेंढकी दुलहनिया
- मोरों का राजा
- मौन व्रत
- राजकुमार-नीलकंठ
- राजा और गौरैया
- रुपहली नाक
- लम्बी दुम वाला चूहा
- लालच अंजीर का
- लालच बतरस का
- लालची लल्ली
- लूला डाकू
- वराह कुमार
- विनीता और दैत्य
- शाप मुक्ति
- शापित
- संत की सलाह
- सात सिर वाला राक्षस
- सुनहरी गेंद
- सुप्त सम्राज्ञी
- सूर्य कुमारी
- सेवक सत्यदेव
- सेवार का सेहरा
- स्वर्ग की सैर
- स्वर्णनगरी
- ज़मींदार की दाढ़ी
- ज़िद्दी घरवाली और जानवरों की बोली
- कविता
-
- अँजुरी का सूरज
- अटल आकाश
- अमर प्यास –मर्त्य-मानव
- एक जादुई शै
- एक मरणासन्न पादप की पीर
- एक सँकरा पुल
- करोना काल का साइड इफ़ेक्ट
- कहानी और मैं
- काव्य धारा
- क्या होता?
- गुज़रते पल-छिन
- जीवन की बाधाएँ
- झीलें—दो बिम्ब
- तट और तरंगें
- दरवाज़े पर लगी फूल की बेल
- दशहरे का मेला
- दीपावली की सफ़ाई
- पंचवटी के वन में हेमंत
- पशुता और मनुष्यता
- पारिजात की प्रतीक्षा
- पुरुष से प्रश्न
- बेला के फूल
- भाषा और भाव
- भोर . . .
- भोर का चाँद
- भ्रमर और गुलाब का पौधा
- मंद का आनन्द
- माँ की इतरदानी
- मेरी दृष्टि—सिलिकॉन घाटी
- मेरी माँ
- मेरी माँ की होली
- मेरी रचनात्मकता
- मेरे शब्द और मैं
- मैं धरा दारुका वन की
- मैं नारी हूँ
- ये तिरंगे मधुमालती के फूल
- ये मेरी चूड़ियाँ
- ये वन
- राधा की प्रार्थना
- वन में वास करत रघुराई
- वर्षा ऋतु में विरहिणी राधा
- विदाई की बेला
- व्हाट्सएप?
- शरद पूर्णिमा तब और अब
- श्री राम का गंगा दर्शन
- सदाबहार के फूल
- सागर के तट पर
- सावधान-एक मिलन
- सावन में शिव भक्तों को समर्पित
- सूरज का नेह
- सूरज की चिंता
- सूरज—तब और अब
- सांस्कृतिक कथा
- आप-बीती
- सांस्कृतिक आलेख
- यात्रा-संस्मरण
- ललित निबन्ध
- काम की बात
- यात्रा वृत्तांत
- स्मृति लेख
- लोक कथा
- लघुकथा
- कविता-ताँका
- सामाजिक आलेख
- ऐतिहासिक
- विडियो
-
- ऑडियो
-