गोपाल गड़रिया
सरोजिनी पाण्डेयमूल कहानी: ल् पोकरियो ए कोर्ट; चयन एवं पुनर्कथन: इतालो कैल्विनो
अँग्रेज़ी में अनूदित: जॉर्ज मार्टिन (द शेफर्ड एट कोर्ट); पुस्तक का नाम: इटालियन फ़ोकटेल्स
हिन्दी में अनुवाद: सरोजिनी पाण्डेय
प्रिय पाठक, लोक कथाओं की एक विशेषता मैंने पाई कि इनमें समस्याएँ तो लौकिक होती हैं परन्तु उसके निवारण के उपाय मनुष्य ‘अलौकिक’ शक्तियों से पाना चाहता है। इन अलौकिक शक्तियों से संकेत बुद्धि की ओर ही होता होगा, ऐसा मेरा मानना है। मेरी इस बात को ध्यान में रखते हुए आप इस कथा का आनंद लें:
एक समय की बात है, किसी गाँव में एक गड़रिया परिवार रहता था, जिनका भेड़-बकरियाँ पालने का धंधा था। भेड़ों को जंगल-चरागाह में ले जाकर चराने का काम परिवार के सबसे छोटे लड़के, गोपाल, का था। एक दिन वह अपना रेवड़ लेकर पहाड़ी पर गया। वहाँ चरते-चरते एक भेड़ पहाड़ी पर से फिसल कर खड्ड में गिर गई। गोपाल में उसको बहुत खोजा, आवाज़ लगाई, परन्तु भेड़ वापस ना आयी, तो न आयी। बेचारा थक-हार कर शाम को अपने घर लौटा और डरते हुए अपने पिता को एक भेड़ के खोने जाने की बात बतायी। पिता तो आग बबूला हो गए, बहुत भला-बुरा कहने के बाद उन्होंने गोपाल को घर से निकाल भी दिया। भूखा-प्यासा बेचारा गोपाल ठंड में ठिठुर रहा था। रोते-बिलखते वह पहाड़ी की ओर चला गया, वहाँ एक गुफा में एक चिकनी चट्टान थी। गोपाल ने आसपास से सूखी घास और पत्तियाँ बटोरीं, उन्हें चट्टान पर बिछाकर, घास में दुबक कर सोने की कोशिश करने लगा। वह लेट तो गया, परन्तु भूखे पेट गोपाल की आँखों में नींद कहाँ? फिर आधी रात में किसी के आने की आहट हुई, गोपाल उठ खड़ा हुआ। उसके सामने एक लंबा-तगड़ा आदमी खड़ा था। उसने कड़क कर गोपाल से पूछा, “इतनी रात को तुम यहाँ क्या कर रहे हो? मेरे पलंग पर सोने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई?”
काँपते हुए गोपाल ने भेड़ गुम हो जाने और पिता द्वारा घर से निकाल दिए जाने की बात उसे बता दी, और उससे रात भर वही रख लेने की प्रार्थना की। आदमी दयालु था। वह जब चट्टान पर बैठा तो सूखी घास और पत्तों के नर्म बिस्तर से उसे आराम मिला। वह बोला, “तुम बहुत चतुर हो, मेरे पलंग पर घास बिछाकर तुमने उसे नरम बना दिया, मुझे यह ख़्याल कभी नहीं आया था। चलो ठीक है, अब तुम यहीं मेरे साथ रहो।”और वह गोपाल के साथ ही लेट गया।
गोपाल अपने को सिकोड़ता जा रहा था कि कहीं साथ में सो रहे आदमी को असुविधा ना हो, वह आराम से सो सके। वह इस तरह दम साधे पड़ा था कि मानो गहरी नींद में सो रहा हो, लेकिन न तो वह नींद में था न उसके साथ सोया हुआ आदमी ही, परन्तु आदमी, गोपाल को सोया हुआ जानकर होंठों ही होंठों में कुछ बुदबुदा रहा था। चारों ओर गहरा सन्नाटा था, ऐसे में दम साधे पड़े गोपाल को बुदबुदाहट की आवाज़ साफ़ समझ में आ रही थी। गोपाल को सोया जान वह कह रहा था, “इस समझदार नवयुवक को मैं क्या नाम दूँ? जिसने घास बिछाकर मेरे लिए नरम और गर्म बिस्तर बनाया है, जो इतना आदर करने वाला है कि मुझे जगह देने के लिए एक कोने में सिकुड़ा पड़ा सो रहा है! क्या मैं उसे वह रूमाल दे दूँ जो सबको भरपेट भोजन कराता है? या उसे वह डिबिया दे दूँ जो हर बार खुलने पर एक अशर्फ़ी देती है? नहीं तो वह बाँसुरी ही दे दूँ जो सबको अपनी धुन पर नचाती है!”
उस आदमी की धीमी-धीमी बुदबुदाहट सुनते हुए गोपाल को कब गहरी नींद आ गई उसे पता भी न चला।
भोर में जब उसकी नींद खुली तो उसे लगा मानो वह सपने से जागा है। लेकिन उसने देखा कि उसके बग़ल में घास के बिस्तर पर एक रुमाल, एक डिबिया और एक बाँसुरी रखी है। गुफा में कोई और नहीं था। गोपाल ने तो उस आदमी का चेहरा भी नहीं देखा था, रात में अँधेरा जो था! गोपाल ने रुमाल, डिबिया और बाँसुरी उठाई और चल पड़ा। रास्ते में उसने रुमाल बिछाकर भोजन माँगा और भरपेट खाया।
कुछ समय चलते रहने के बाद वह एक बड़े शहर में पहुँचा। उस शहर में उसे मालूम हुआ कि वहाँ के राजा ने अपनी इकलौती बेटी के लिए योग्य वर चुनने के लिए कई तरह की प्रतियोगिताएँ कराने की घोषणा की है। जो युवक इन प्रतियोगिताओं में विजयी होगा, उसे दुलहन के साथ-साथ राज्य और राजकोष भी मिलने वाला था।
गोपाल ने अब जादू की डिबिया की परीक्षा करनी चाही, उसने डिबिया खोली तो सचमुच उसमें एक अशर्फ़ी रखी थी! उसे निकालकर गोपाल ने अपनी जेब के हवाले किया और डिब्बी बंद कर दी। कुछ देर बाद डिबिया खोलने पर उसमें से फिर अशर्फ़ी निकली। बस फिर क्या था! गोपाल ने बहुत सारी अशर्फ़ियाँ निकाल-निकाल कर जमा की़ं और इस धन से घोड़ा, जीन, बंदूक, नौकर-चाकर सवारी आदि रईसाना असबाब ख़रीद लिए। इन सब से लैस होकर, स्वयं को पुर्तगाल का राजकुमार बताकर प्रतियोगिता में भाग लेने लगा।
अब जैसा कि हर कथा में होता है, नायक ही तो जीतता है, तो गोपाल ने सबसे ज़्यादा खेल जीते। राजा को अपनी मुनादी के हिसाब से उसे अपना दामाद और राज्य का उत्तराधिकारी घोषित करना पड़ा।
जब वह राजमहल में पहुँचा तो उसके तौर-तरीक़े, चाल-ढाल तो महल के आचार शिष्टाचार के अनुसार तो थे नहीं, आख़िर था तो वह गँवई-गाँव का रहने वाला, एक साधारण, भेड़-बकरियाँ पालने वाला गड़रिया ही! कभी वह पर्दे में हाथ पोंछ लेता, कभी अपने कपड़ों में अपनी नाक, कभी किसी को चिकोटी काट लेता तो कभी सीटी बजाने लगता! राजा को संदेह हुआ कि दाल में कुछ काला है! उसने अपना एक दूत पुर्तगाल रवाना किया। दूत ने वापस आकर बताया कि पुर्तगाल का राजकुमार तो कई सालों से तपेदिक से बीमार है और वह कहीं आता-जाता नहीं। फिर क्या था, राजा ने गोपाल को तुरंत जेल में डलवा दिया।
जेल महल के नीचे के तहख़ाने में थी। वहाँ पहले से ही उन्नीस क़ैदी बंद थे। जब गोपाल तहख़ाने में पहुँचा तब उन क़ैदियों ने गोपाल का ख़ूब मज़ाक उड़ाया कि इन महाशय की हिम्मत तो देखो, चले थे राजा का दामाद बनने और अब आए हैं क़ैदख़ाने में।
गोपाल बेचारा क्या करता? चुपचाप सिर झुकाए सब सहता रहा। रात में जब क़ैदियों के लिए खिचड़ी का देग आया तो उसने दौड़ कर देग उलट दिया और सारी खिचड़ी गिरा दी। क़ैदी चिल्ला पड़े, “यह तुमने क्या किया? तुम एकदम पागल हो! अब हम सब खाएँगे क्या? तुम्हें इसका मज़ा चखाना ही पड़ेगा।”और वे सब गोपाल को पीटने के लिए दौड़े।
उसने उन्हें शांत कराते हुए कहा, “शांत रहो, मैं तुम सबको राजसी खाना खिलाऊँगा।” गोपाल ने अपना रुमाल निकाला और उसे ज़मीन पर बिछा दिया फिर बोला, “हम बीसों के लिए राजसी भोजन चाहिए!” और रूमाल से तरह-तरह के व्यंजन निकलने लगे। सारे क़ैदी स्वादिष्ट खाने पर टूट पड़े। सब पर गोपाल की धाक जम गई। अब जेलर को रोज़ खाने के देग उल्टे हुए मिलते और क़ैदी स्वस्थ और मस्त! तो दो दिन बाद जेलर ने यह ख़बर राजा तक भिजवाई। राजा सारा माजरा जानने के लिए ख़ुद तहख़ाने के जेलख़ाने में पहुँचे। उन्होंने इस बात की सफ़ाई माँगी कि खाना कौन बर्बाद कर रहा है? और क्यों? गोपाल में आगे बढ़कर अपनी करनी स्वीकार कर ली। उसने कहा, “महाराज, मैं इन सब क़ैदियों को आप की थाली के भोजन से भी अधिक अच्छा खाना खिला रहा हूँ। यदि आप चाहें तो मैं आपको भी अपने साथ खाना खिला सकता हूँँ। मुझे पूरा भरोसा है कि आपको खाना अच्छा लगेगा।”
राजा ने दावत स्वीकार कर ली। अब गोपाल ने अपना रुमाल निकाला, उसकी तह खोली और राजाजी के सामने अपने दोनों हाथों में लेकर बोला, “राजा जी के लायक़ दावत, इक्कीसों के लिए!” और एक-एक कर सुगंधित, स्वादिष्ट, ताज़े पकवान बाहर आने लगे। ख़ुश होकर राजाजी भी क़ैदियों के साथ बैठ गए और जी भर कर खाना खाया। जब खाना खा चुके तो गोपाल से बोले “यह रुमाल मुझे दे दो और मुँह माँगी क़ीमत ले लो।”
“बिल्कुल बेच दूँगा सरकार, बस मेरी एक ही माँग है, मुझे एक रात मेरी सगाई वाली पत्नी के साथ बिताने का मौक़ा दिया जाय,” गोपाल ने कहा।
“बिल्कुल क़ैदी,” राजा ने जवाब दिया, “लेकिन मेरी भी शर्त है, तुम पलंग की एक तरफ़ एकदम चुपचाप सोओगे, राजकुमारी के साथ बात नहीं करोगे, खिड़कियाँ खुली रहेंगी, दिया जलता रहेगा और आठ पहरेदार भी कमरे में रहेंगे। अगर मंज़ूर है तो बोलो!”
“क्यों नहीं हुज़ूर! मुझे सब कुछ है मंज़ूर!” गोपाल ने जवाब दिया।
तो इस तरह राजा जादुई रुमाल पा गया और गोपाल को अपनी सगाई वाली लड़की के साथ रात बिताने का मौक़ा मिल गया, हालाँकि न तो उसकी राजकुमारी के साथ कोई बात हुई, न ही उसे छूने का मौक़ा मिला। गोपाल पलंग में एक तरफ़ दुबका बस लेटा ही रहा। सुबह होते ही उसे फिर से तहख़ाने की जेल में भेज दिया गया।
इस बार जेल की कोठरी में पहुँचा तो उसकी ख़ूब खिल्ली उड़ाई गई।
सारे क़ैदी बोले, “अब हमें फिर वही पतली खिचड़ी खाने को मिलेगी। नालायक़ तूने राजा के साथ बड़ा अच्छा सौदा किया। अब हम भूखे मरेंगे।”
लेकिन इन बातों का गोपाल गड़रिये के ऊपर कोई असर नहीं पड़ा। वह बोला, “फ़िक्र की कोई बात नहीं, अब हम पैसे देकर बाहर से बढ़िया खाना मँगवाया करेंगे।”
“यहाँ किसी के पास फूटी कौड़ी नहीं है,” सारे क़ैदी एक साथ बोल उठे।
“दिल छोटा न करो साथियो!” कहते हुए गोपाल में अपनी डिबिया से एक अशर्फ़ी निकाल ली। पहरेदारों को रिश्वत दे, पास की सराय से खाना आ गया और फिर जेल की खिचड़ी-दलिए के बरतन पलटे जाते रहे।
जेलर ने फिर शिकायत राजा तक पहुँचाई। राजा फिर तलाशी लेने आए। इस बार उन्होंने डिबिया ख़रीद लेने की बात कही, “यह डिबिया तुम मुझे दे दो, बदले में जो चाहे ले लो।”
“क्यों नहीं हुज़ूर, “गोपाल बोला, “इस बार भी मेरी माँग वही रहेगी, पहले जैसी एक रात अपनी मुँहबोली बीवी के साथ।”
एक बार फिर पिछली सारी शर्तों के साथ गोपाल को राजकुमारी के साथ एक रात बिताने का मौक़ा मिल गया।
जब वह वापस तहख़ाने में लाया गया तो फिर उस पर लानत और तानों की बौछार होने लगी, “अब फिर वही खिचड़ी, वही पतली दाल, गोपाल भैया ने तो कर दिया कमाल!”
इस बार गोपाल को अपनी बाँसुरी की याद आई। वह बोला, “मन की ख़ुशी के आगे खाने की क्या मजाल
हम सब तब तक नाचें, जब तक हो ना जाएँ बेहाल।”
सारे क़ैदी भौचक्के रह गए। सबके मुँह से निकला, “क्याssss? भूखे पेट नाच?”
अब गोपाल ने अपनी बाँसुरी निकाली और बजाने लगा। सारे क़ैदी गोपाल के इर्द-गिर्द नाचने लगे। उनकी हथकड़ियाँ और बेड़ियाँ ज़ोर-ज़ोर से बजने लगीं। बाँसुरी कभी धीमी, कभी तेज़ धुन निकालने लगी। सारे क़ैदी बेसुध होकर नाचते रहे। शोर सुनकर हाल जानने के लिए जेलर नीचे तहख़ाने में आया। उसकी जेब में पड़ी कोठरियों की चाबियाँ खनखनाने लगीं, वह भी क़ैदियों के साथ मिलकर नाचने लगा।
उधर महल में दरबार लगा था। जब बाँसुरी के तेज़ स्वर दरबार हॉल तक पहुँचे तो, सारे दरबारी, मंत्री और संतरी, सभी बदहवास होकर नाचने लगे। किसी की टोपी उड़ी, किसी की पगड़ी खुली, किसी का कुर्ता उड़ा-किसी की धोती खुली! सहसा पूरे महल में विचित्र हंगामा बरपा हो गया। न किसी को कपड़े की परवाह, न जूते की फ़िक्र, अपने पद का ध्यान, न तन का भान! सब लोग बाँसुरी की धुन पर ऐसे नाच रहे थे मानो किसी तान्त्रिक ने मंत्रों से बाँध दिया हो या फिर किसी प्रेत की आत्मा ने सब को वश में कर लिया हो। राजा स्वयं भी नाचता हुआ दूसरों के रुकने की गुहार लगा रहा था। अचानक गोपाल ने बाँसुरी बजाना रोक दिया। सभी लोग चक्कर खा-खाकर ज़मीन पर गिरने लगे। राजा किसी तरह दौड़ता हुआ तहख़ाने तक पहुँचा और कड़क कर बोला, “यह किसकी करतूत है?”
“यह काम मेरा है, महाराज!” विनम्रता से गोपाल बोला, “क्या आप फिर सौदा पक्का करना चाहेंगे?” और उसने फिर से बाँसुरी में फूँक मारी।
राजा के क़दम फिर थिरकने लगे,
“रुको, रुको, एकदम रुक जाओ!” राजा घबरा कर बोले, “यह बाँसुरी मुझे देने का क्या लोगे?”
गोपाल बोला, “इस बार आप मुझे क्या देंगे?”
राजा, “वही जो पहले सौदा हुआ था!”
“नहीं महाराज, इस बार मेरी शर्त दूसरी है,” गोपाल ने कहा, “यदि आपको मंज़ूर नहीं होगी तो मैं फिर से बाँसुरी बजाऊँगा,” गोपाल ने बताया।
“नहीं, नहीं, नहीं, अब बाँसुरी मत बजाओ। बस अपनी शर्त बताओ,” राजा बड़बड़ाया।
गोपाल बोला, “आज की रात मैं राजकुमारी से बात करके कुछ पूछना चाहता हूँ।”
“लेकिन आज मैं पहरेदारों की संख्या दुगनी कर दूँगा और रोशनी भी दुगनी होगी!” राजकुमारी के पिता ने कहा।
“ठीक है, जैसा आप चाहें।”
राजा ने बहुत सोच-विचार करने के बाद अपनी बेटी को बुलवाया और सारी बातें समझा कर बताईं। बेटी को सावधान रहने को कहा और अपनी क़सम देकर यह भी वादा करवाया कि वह गँवार गोपाल गड़रिये द्वारा पूछे गए हर सवाल का जवाब केवल और केवल ‘ना’ में ही देगी। राजकुमारी ने पिता को वचन दिया कि वह ऐसा ही करेगी।
रात हुई गोपाल राजकुमारी के शयनकक्ष में पहुँचा दिया गया, जो रोशनी से जगमगा रहा था। कमरा पहरेदारों से भरा था, खिड़कियाँ खुली थीं। गोपाल पलंग में एक किनारे की पट्टी पर कुछ देर के लिए लेट गया।
कुछ देर बाद बोला, “मेरी होने वाली दुलहन, इस ठंडी रात में खिड़कियाँ खोल कर सोना क्या तुम को अच्छा लग रहा है?”
“ना,” राजकुमारी ने कहा।
“क्या तुमने सुना नहीं, खुली खिड़कियाँ राजकुमारी को अच्छी नहीं लग रही हैं, उन्हें तुरंत बंद करो,” संतरियों से गोपाल बोला। आज्ञा का पालन किया गया।
पंद्रह मिनट के बाद गोपाल फिर राजकुमारी से बोला, “मेरी दुलहन, क्या तुम सोचती हो कि जब हम सोने जा रहे हों, तो ये संतरी हमारे कमरे में ही रहें?”
“नहीं,” इस बार भी राजकुमारी का उत्तर था।
“संतरिओ, क्या तुमने सुना? राजकुमारी कह रही हैं कि तुम लोग बाहर निकलो और सुबह तक नज़र न आओ।”
यह सुनकर सारे पहरेदार ख़ुशी-ख़ुशी बाहर सोने चले गए। सारी रात जाग कर पहरा देना भला किसे अच्छा लगता!
पंद्रह मिनट और बीत गए।
अब गोपाल ने फिर राजकुमारी से बात करने के लिए मुँह खोला, “राजकुमारी क्या तुम्हें इतनी जगमग रोशनी में नींद आ जाती है?”
राजकुमारी ने फिर वही उत्तर दिया, “नाsss“
अब गोपाल ने सारी रोशनियाँ गुल कर दीं और चुपचाप आकर पलंग पर एक तरफ़ सिकुड़ कर लेट गया।
कुछ समय बाद फिर बोला, “राजकुमारी, तुम जानती हो कि मैंने नियमानुसार तुम्हारे पिता द्वारा कराई गई सभी प्रतियोगिताएँ जीती। तुम्हारे पिता ने अपने वचन के अनुसार तुम्हारे साथ मेरी सगाई भी कर दी है, लेकिन हम अब भी हम एक पलंग पर ऐसे लेटे हैं, जैसे हमारे बीच में कँटीली झाड़ियाँ हों। क्या यह बात तुम्हें बहुत अच्छी लग रही है?”
राजकुमारी ने फिर केवल “ना” में ही उत्तर दिया।
राजकुमारी की “नाss” सुनते ही गोपाल ने राजकुमारी को अपनी बाँहों में लेकर चूम लिया।
सुबह हुई, राजा जी अपनी बेटी के कमरे में सारा हाल देखने और गोपाल को फिर से कारागार में डलवाने के लिए आए। राजकुमारी सिर झुका कर पिता से बोली, “पिता जी, मैंने आपकी आज्ञा का पालन किया है, हमें क्षमा कर दीजिए, गोपाल को मैंने अपना वर स्वीकार कर लिया है, आप तो पहले ही उसे अपना दामाद स्वीकार कर चुके हैं।”
अब राजा के पास कोई बहाना नहीं था। उन्होंने राजकुमारी और गोपाल की शादी के लिए उत्सव मनाने की घोषणा कर दी। गोपाल पहले तो राजा का दामाद बना फिर समय आने पर राजा भी बना।
इसके साथ ही भाग्यशाली गड़रिये गोपाल की कहानी ख़त्म,
अगली कहानी में किसी और को ढूँढ़ लेंगे हम!!!
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