लालच अंजीर का
सरोजिनी पाण्डेयमूल कहानी: ला फ़िग्लिया डेल् रि शे नोन् येरा मेइ स्ट्फ़ा डि फ़ूशि; चयन एवं पुनर्कथन: इतालो कैल्विनो
अंग्रेज़ी में अनूदित: जॉर्ज मार्टिन द किंग्स डॉटर हू कुड नेवर गेट इनफ़ फि़ग्स); पुस्तक का नाम: इटालियन फ़ोकटेल्स
हिन्दी में अनुवाद: सरोजिनी पाण्डेय
किसी समय की बात है, एक राजकन्या को अंजीर बहुत अच्छे लगते थे, इतने अच्छे कि वह चाहे जितने भी अंजीर के फल खा ले, उसे संतोष नहीं होता था। और अधिक खाने की चाह बनी ही रहती थी। उसके इस लालच से परेशान पिता ने अपने राज में मुनादी करवा दी कि जो कोई राजकुमारी को भरपेट अंजीर खिला देगा, उससे ही उसका ब्याह कर दिया जाएगा।
राजकुमारी से विवाह करने की इच्छा रखने वाले कई युवक टोकरी भर अंजीर लेकर अपना भाग्य आज़माने पहुँचे। परन्तु राजकुमारी हर बार सारे अंजीर खाकर कह देती, “और चाहिए!”
उसी शहर में तीन भाई खेतिहर किसान भी रहते थे। खेत को अगली फ़सल के लिए तैयार करने का मौसम चल रहा था। एक दिन सबसे बड़े भाई ने कहा, “मैं खेत में काम करते-करते ऊब चुका हूँ, मैं तो राजकुमारी को जी-भर कर अंजीर खिला, उससे ब्याह कर, आराम से ज़िन्दगी जीना चाहता हूँँ!”
वह एक बड़ी सी टोकरी लेकर निकल गया और जगह-जगह से खोज कर टोकरी भर अंजीर इकट्ठा कर लाया। महल की ओर जाते समय उसे रास्ते में एक भूखा भिखारी मिला। उसने बड़े भाई से कहा, “मैं भूखा हूँँ, मुझे एक अंजीर दे दो।”
बड़ा भाई बोला, “मैं तुम्हें एक भी अंजीर नहीं दे सकता। मुझे राजकुमारी को भरपेट अंजीर खिलाने हैं और उससे ब्याह कर सुख से जीना है।” यह कह कर वह आगे बढ़ गया।
जब वह महल पहुँच गया तो उसे राजकुमारी के सामने पहुँचा दिया गया। जैसे ही टोकरी राजकुमारी के सामने रखी गई उसने सारे अंजीर खा लिए और बोली, “और चाहिए!” बेचारा बड़ा भाई अपना-सा मुँह लेकर घर वापस आ गया।
जब वह घर पहुँचा तो मँझले भाई ने कहा, “मुझे भी खेती में हाड़-तोड़ मेहनत करना अच्छा नहीं लगता। कल मैं अपना भाग्य आज़माने जाऊँगा।”
अगले दिन उसने बड़े भाई के टोकरे से बड़ा टोकरा लिया, शहर के बाग़ों-जंगल में भटक-भटक कर अंजीर इकट्ठे किए और राजमहल की ओर चल पड़ा। राह में उसे भी एक भूखा भिखारी मिला। उसने एक अंजीर माँगी, “बहुत भूखा हूँँ, एक अंजीर दे दो। बड़ा पुण्य होगा।”
मँझला भाई बोला, “तुम्हें दे दूँगा तो राजकुमारी के लिए कहीं कम न हो जाएँ! मुझसे अब खेतों में काम नहीं होता, मैं आराम की ज़िन्दगी जीना चाहता हूँँ।” और वह महल की ओर चल पड़ा। महल में जब अंजीर का टोकरा राजकुमारी के सामने रखा गया तो वह पलक झपकते ही सारे अंजीर खा गई, अरे, वह तो समय रहते मँझले भाई ने टोकरा खींच लिया नहीं तो राजकुमारी उसे भी खा ही जाती।
जब मँझला भाई भी निराश लौट आया तो सबसे छोटे भाई ने महल जाना तय किया। वह भी एक टोकरी अंजीर लेकर चल पड़ा महल की ओर। आज भी राह में भूखा भिखारी बैठा था। उसने आवाज़ लगाई, “बहुत भूखा हूँँ, दया करो एक अंजीर ही खिला दो।”
छोटे भाई ने टोकरी उसके आगे रख दी और बोला, “एक क्यों, दो-तीन जितनी इच्छा हो खा लो।”
भूखे भिखारी ने एक अंजीर खाई और डकार ली, फिर एक डंडा छोटे भाई को देते हुए बोला, “जब महल में पहुँचो और राजकुमारी सारे अंजीर ख़त्म कर दे, तब इस डंडे से ज़मीन पर ठोंकना, टोकरी फिर भर जाएगी।”
राजमहल पहुँचकर छोटे भाई ने टोकरी राजकुमारी के आगे रखी। हमेशा की तरह राजकुमारी सारे अंजीर खा गई। ज्यों ही टोकरी ख़ाली हुई छोटे ने डंडे से धरती ठोंकी। टोकरी अंजीर से भर गई। तीन बार भर टोकरी अंजीर खाने के बाद राजकुमारी बोली, “पिताजी अब अंजीर खाना तो दूर की बात, मैं अंजीर की ओर देख भी नहीं सकती!”
बेटी की बात सुनकर राजा भौचक्का रह गया! अब अपनी मुनादी के अनुसार राजकुमारी का विवाह उसे खेतिहर किसान से कर देना चाहिए था!! कुछ देर सोचने के बाद राजा बोला, “बेशक तुम ने शर्त पूरी कर दी है, मैं चाहता हूँँ कि मेरी बेटी की शादी में समुद्र पार रहने वाली मेरी बहन ज़रूर शामिल हो। तुम समुद्र के उस पार जाकर उसे बुलावा दे आओ। उसके आने के बाद तुम्हारी शादी राजकुमारी से हो जाएगी।”
बेचारा छोटा भाई भी मन मार कर घर की ओर चल पड़ा। भला समुद्र पार कैसे जा पाएगा? आस पास न तो कोई नाव न कोई जहाज़! राजकुमारी की बुआ को कैसे बुला पाएगा?
मुँह लटका कर जब वह घर आ रहा था तो, राह में उसे वही भिखारी मिला जिसको उसने अंजीर खिलाए थे। छोटे को उदास देखकर उसने पूछा, “क्या बात है, क्या काम हुआ नहीं?” छोटे ने सारी बात कह सुनाई, “अब बताओ कि समुद्र के उस पार जाकर राजकुमारी की बुआ को कैसे लेकर आऊँ भला?”
उसकी बात सुनकर भिखारी ने अपना झोला टटोला और उसमें से एक भोंपू निकाला। भोंपू छोटे को देते हुए वह बोला, “कल सुबह बड़े तड़के उठकर समुद्र के किनारे जाना और यह भोंपू ज़ोर से बजाना। समुद्र के उस पार रहने वाली, राजकुमारी की बुआ, आवाज़ सुन लेगी और तुम्हारे पास अपने आप चली आएगी। फिर तुम उसे अपने साथ लेकर राजा के पास चले जाना।”
अगले दिन छोटे ने समुद्र के किनारे जाकर भोंपू बजाया और वही बैठकर प्रतीक्षा करने लगा। कुछ ही घंटों में राजकुमारी की बुआ समुद्र पार करके छोटे के सामने आ खड़ी हुई। जब उसे साथ लेकर छोटा महल में पहुँचा तो राजा बोला, “अरे वाह, बहादुर! तुम तो फिर जीत गए! बस अब एक काम और करो, राजकुमारी की अँगूठी, जो शादी के लिए बनवाई गई थी, वह समुद्र में कहीं गिर गई है। बस, उसे ढूँढ़ कर ले आओ और मेरी बेटी को ब्याह ले जाओ।”
इस बार छोटा सीधा उस भिखारी के पास ही चला गया और अपनी मुश्किल सुनाई। भिखारी ने कहा, “चिंता मत करो, समुद्र के किनारे जाओ और वही जादुई भोंपू फिर बजाओ।” छोटे ने समुद्र के किनारे जाकर भोंपू बजाया। भोंपू की आवाज़ सुनकर एक मछली पानी में उछली, उसके मुँह में एक अँगूठी दबी थी, जिसका नगीना दूर से ही झिलमिला रहा था। उसे देखकर छोटा तैरता हुआ उसके पास पहुँच गया और अँगूठी लेकर वापस आ गया।
अब जब वह अँगूठी लेकर दरबार में पहुँचा तो उसे देखकर राजा ने कहा, “बहुत अच्छे! अब तो अँगूठी भी आ गई, अब शादी की तैयारी शुरू करते हैं। यह थैली लो इसमें तीन ख़रगोश हैं, जिनका मांस शादी के भोज के लिए पकाया जाएगा। यह तीनों अभी बहुत दुबले हैं, तुम यह थैला लेकर जंगल में चले जाओ और तीन दिन और तीन रात इनको जंगल में चराओ। तीन दिनों में ये जब मोटे-ताज़े हो जाएँ, तब इसी थैले में भरकर उन्हें यहाँ ले आना।”
अब भला ऐसा क्या किसी ने कभी सुना है कि सुबह ख़रगोश को छोड़ा जाए और शाम को वापस पकड़ लाया जाए! अब बेचारा छोटा क्या करे?
वह हिम्मत करके फिर उसी दयालु भिखारी के पास पहुँच गया, जिसने उसकी सहायता अब तक की थी। दयालु भिखारी बोला, “घबराओ मत, यही भोंपू तुम्हारी सहायता फिर करेगा। सुबह ख़रगोशों को चरने-खाने के लिए छोड़ देना और शाम को जब अँधेरा घिरने लगे, तब भोंपू बजाना। तीनों ख़रगोश तुम्हारे थैले में आ जाएँगे।”
छोटा ख़ुशी-ख़ुशी जंगल में चला गया। दिन भर ख़रगोश चरते रहे। शाम को जब वह ख़रगोशों को वापस बुलाने के बाद थैली में रख रहा था, तब राजा की बहन भेष बदलकर जंगल में आई और छोटे से पूछा, “इस जंगल में रात में तुम क्या कर रहे हो बेटा?”
“मैं तीन ख़रगोशों की रखवाली कर रहा हूँ, जी!”
“एक मुझे बेच दो!”
“ना, ना, मैं ऐसा हरगिज़ नहीं करूँगा।”
“अरे तुम बोलो तो कि क्या क़ीमत चाहिए?”
और छोटे को लालच आ गया उसने कहा, “सौ कलदार!”
राजकुमारी की बुआ ने सौ कलदार खनाखन गिन दिए और ख़रगोश को लेकर चल पड़ी।
थोड़ी देर इंतज़ार करने के बाद छोटे ने भोंपू बजा दिया।
उसकी आवाज़ सुनते ही ख़रगोश बुआ के हाथों से निकलकर दौड़ता हुआ आया और छोटे के थैले में घुस गया। रात आराम से गुज़र गई।
अगली शाम को जब ख़रगोश चरकर लौटे ही थे कि राजकुमारी स्वयं भेष बदलकर जंगल में गई और छोटे से ख़रगोश ख़रीदना चाहा। अब तक छोटे की हिम्मत बढ़ गई थी, उसने तीन सौ कलदार लेकर एक ख़रगोश राजकुमारी को बेच दिया और उसके महल तक पहुँचने से पहले भोंपू बजा कर ख़रगोश वापस बुलाकर थैली में बंद भी कर लिया।
तीसरी शाम को राजा स्वयं ही भेस बदलकर जंगल पहुँच गया और छोटे से पूछा, “तुम यहाँ इस जंगल में अँधेरे में क्या कर रहे हो?”
“मैं यहाँ ख़रगोशों की रखवाली कर रहा हूंँ।”
“बड़े मोटे-ताज़े ख़रगोश हैं। एक मुझे बेच दो।”
तुरंत छोटे ने कहा, “क्यों नहीं, तीन हज़ार कलदार दो, एक ख़रगोश लो।”
और इस बार भी महल पहुँचने से पहले ख़रगोश भोंपू की आवाज़ से छोटे के थैले में वापस आ गया।
अगली सुबह छोटा तीनों तंदुरुस्त ख़रगोशों को लेकर दरबार में पहुँच गया। राजा साहब अभी भी अपनी बेटी का ब्याह एक किसान से कर देने का मन नहीं बना पाए थे, इसलिए उन्होंने एक कोशिश और करनी चाहिए, बोले, “तीनों ख़रगोश तो नौकरों के हवाले कर दो और इस थैले को ‘सच्चाई’ से भर दो, बस! फिर ब्याह तुरंत कर लो।”
हताश-निराश छोटा एक बार फिर उसी जादूगर भिखारी के पास पहुँच गया और अपनी रामकहानी कह सुनाई। इस बार भी उस दयालु भिखारी ने छोटे को निराश नहीं किया, कहा, “जंगल में जो कुछ तुम्हारे साथ हुआ वही ‘सच्चाई’ है, तुम कल राजदरबार में जाकर सारी बात भरी सभा में सुनाओ फिर देखो क्या होता है।”
यह सब सुनकर छोटा घर गया और आराम से सो गया।
अगली सुबह वह फिर राज दरबार में पहुँचा। उसे देखते ही राजा ने वही थैला मँगवाया जिसमें ख़रगोश रखे गए थे। उसका मुँह खोल कर राजा ने थैला पकड़ लिया। अब छोटे ने बताना शुरू किया कि कैसे वह तीन ख़रगोशों को जंगल में घास वग़ैरह खिलाकर मोटा करने के लिए ले गया। कैसे पहली रात को राजा की बहन, फिर राजकुमारी और सबसे बाद में राजा भेष बदलकर उसके पास आए और ख़रगोश माँगे . . . जैसे-जैसे छोटा कहानी सुनाता जाता था, वैसे-वैसे थैला फूलता जाता था। जब तीनों रातों की पूरी कहानी वह सुना चुका तो थैला पूरा फूल गया और उसका मुँह भी अपने आप बंद हो गया। सारे दरबारी यह सारी लीला भौचक्के होकर देखते जा रहे थे ‘सच्चाई’ तो यही थी न!!
अब राजा के पास कोई उपाय नहीं बचा। उसे अपने वचन के अनुसार अपनी अंजीर की लालची बेटी का ब्याह, खेतिहर किसानों में से सबसे छोटे भाई, के साथ करना ही पड़ा।
आगे क्या हुआ होगा यह तो मुझे मालूम नहीं है!! इसकी ख़बर आप लोगों को कभी मिली हो मुझे भी बताइएगा।
अगले अंक तक एक और कहानी का इंतज़ार करिएगा।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
-
- अँजुरी का सूरज
- अटल आकाश
- अमर प्यास –मर्त्य-मानव
- एक जादुई शै
- एक मरणासन्न पादप की पीर
- एक सँकरा पुल
- करोना काल का साइड इफ़ेक्ट
- कहानी और मैं
- काव्य धारा
- क्या होता?
- गुज़रते पल-छिन
- जीवन की बाधाएँ
- झीलें—दो बिम्ब
- तट और तरंगें
- तुम्हारे साथ
- दरवाज़े पर लगी फूल की बेल
- दशहरे का मेला
- दीपावली की सफ़ाई
- पंचवटी के वन में हेमंत
- पशुता और मनुष्यता
- पारिजात की प्रतीक्षा
- पुराना दोस्त
- पुरुष से प्रश्न
- बेला के फूल
- भाषा और भाव
- भोर . . .
- भोर का चाँद
- भ्रमर और गुलाब का पौधा
- मंद का आनन्द
- माँ की इतरदानी
- मेरी दृष्टि—सिलिकॉन घाटी
- मेरी माँ
- मेरी माँ की होली
- मेरी रचनात्मकता
- मेरे शब्द और मैं
- मैं धरा दारुका वन की
- मैं नारी हूँ
- ये तिरंगे मधुमालती के फूल
- ये मेरी चूड़ियाँ
- ये वन
- राधा की प्रार्थना
- वन में वास करत रघुराई
- वर्षा ऋतु में विरहिणी राधा
- विदाई की बेला
- व्हाट्सएप?
- शरद पूर्णिमा तब और अब
- श्री राम का गंगा दर्शन
- सदाबहार के फूल
- सागर के तट पर
- सावधान-एक मिलन
- सावन में शिव भक्तों को समर्पित
- सूरज का नेह
- सूरज की चिंता
- सूरज—तब और अब
- अनूदित लोक कथा
-
- तेरह लुटेरे
- अधड़ा
- अनोखा हरा पाखी
- अभागी रानी का बदला
- अमरबेल के फूल
- अमरलोक
- ओछा राजा
- कप्तान और सेनाध्यक्ष
- काठ की कुसुम कुमारी
- कुबड़ा मोची टेबैगनीनो
- कुबड़ी टेढ़ी लंगड़ी
- केकड़ा राजकुमार
- क्वां क्वां को! पीठ से चिपको
- गंध-बूटी
- गिरिकोकोला
- गुनी गिटकू और चंट-चुड़ैल
- गुमशुदा ताज
- गोपाल गड़रिया
- ग्यारह बैल एक मेमना
- ग्वालिन-राजकुमारी
- चतुर और चालाक
- चतुर चंपाकली
- चतुर फुरगुद्दी
- चतुर राजकुमारी
- चलनी में पानी
- छुटकी का भाग्य
- जग में सबसे बड़ा रुपैया
- ज़िद के आगे भगवान भी हारे
- जादू की अँगूठी
- जूँ की खाल
- जैतून
- जो पहले ग़ुस्साया उसने अपना दाँव गँवाया
- तीन कुँवारियाँ
- तीन छतों वाला जहाज़
- तीन महल
- दर्दीली बाँसुरी
- दूध सी चिट्टी-लहू सी लाल
- दैत्य का बाल
- दो कुबड़े
- नाशपाती वाली लड़की
- निडर ननकू
- नेक दिल
- पंडुक सुन्दरी
- परम सुंदरी—रूपिता
- पाँसों का खिलाड़ी
- पिद्दी की करामात
- प्यारा हरियल
- प्रेत का पायजामा
- फनगन की ज्योतिष विद्या
- बहिश्त के अंगूर
- भाग्य चक्र
- भोले की तक़दीर
- महाबली बलवंत
- मूर्ख मैकू
- मूस और घूस
- मेंढकी दुलहनिया
- मोरों का राजा
- मौन व्रत
- राजकुमार-नीलकंठ
- राजा और गौरैया
- रुपहली नाक
- लम्बी दुम वाला चूहा
- लालच अंजीर का
- लालच बतरस का
- लालची लल्ली
- लूला डाकू
- वराह कुमार
- विनीता और दैत्य
- शाप मुक्ति
- शापित
- संत की सलाह
- सात सिर वाला राक्षस
- सुनहरी गेंद
- सुप्त सम्राज्ञी
- सूर्य कुमारी
- सेवक सत्यदेव
- सेवार का सेहरा
- स्वर्ग की सैर
- स्वर्णनगरी
- ज़मींदार की दाढ़ी
- ज़िद्दी घरवाली और जानवरों की बोली
- सांस्कृतिक कथा
- आप-बीती
- सांस्कृतिक आलेख
- यात्रा-संस्मरण
- ललित निबन्ध
- काम की बात
- यात्रा वृत्तांत
- स्मृति लेख
- लोक कथा
- लघुकथा
- कविता-ताँका
- सामाजिक आलेख
- ऐतिहासिक
- विडियो
-
- ऑडियो
-