सेवार का सेहरा

15-06-2024

सेवार का सेहरा

सरोजिनी पाण्डेय (अंक: 255, जून द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

मूल कहानी: ल'उएमो वेरडे डे'एलगी; चयन एवं पुनर्कथन: इतालो कैल्विनो
अंग्रेज़ी में अनूदित: जॉर्ज मार्टिन (द मैन रीथ्ड इन सी-वीड); पुस्तक का नाम: इटालियन फ़ोकटेल्स; 
हिन्दी में अनुवाद: ‘सेवार का सेहरा’ सरोजिनी पाण्डेय

 

प्रिय पाठक, आज आपके लिए जो कथा लेकर आई हूँ, आप उसकी चित्रात्मकता पर ध्यान दीजिएगा। देखकर और पढ़कर मिलने वाले मनोरंजन में यह अंतर है कि देखते आप वही हैं जो आपको दिखाया जाता है, जो आपकी आँखों के सामने है जबकि पढ़ते समय आप अपनी कल्पना शक्ति से आनंद की सीमा बढ़ा सकते हैं, जितनी अधिक आपकी कल्पना शक्ति होगी उतने ही अधिक आकर्षक और विविधता पूर्ण दृश्यावलियों का निर्माण आपके मस्तिष्क में होता है।

इस कहानी में ऑक्टोपस के मारे जाने और राजकुमारी के विवाह की शोभायात्रा के समय के दृश्यों में आप अपनी कल्पना से दृश्यों को अपनी आँखों के सामने देख सकते हैं, तो करिए अपनी कल्पना शक्ति का प्रयोग और आनंद लीजिए इस छोटी सी कथा का:

किसी नगर के राजा ने कई बार शहर के चौराहे पर मुनादी करवायी कि उसकी जबरन उठा ली गई बेटी का पता जो कोई लगाएगा उसे भारी इनाम दिया जाएगा। हर गली, हर चौराहे, बाग़-बग़ीचे में कई-कई बार मुनादी करवाने के बाद भी कोई नतीजा नहीं निकला। राजकुमारी का अपहरण रातों-रात हुआ था। अब तक राजा के सैनिक दूर-दूर तक उसकी तलाश भी कर चुके थे, किसी को पता न था कि राजकुमारी को धरती खा गई या आकाश निगल गया। एक दिन एकाएक मुनादी सुनने के बाद एक जहाज़ी कैप्टन को ख़्याल आया कि अगर राजकुमारी का पता सारी धरती खोज लिए जाने के बाद भी नहीं मिला है, तो कहीं ऐसा ना हो कि वह समुद्र में हो? उसे समुद्र में भी खोजा जाना चाहिए। उसने राजकुमारी की तलाश करने के लिए एक जहाज़ तैयार कर लिया। लेकिन जब जहाज़ पर काम करने वाले सहायकों की नियुक्ति का समय आया तो कोई भी जहाज़ी उसके साथ जहाज़ पर आने को तैयार न हुआ। सभी को यह डर था कि यह खोज बहुत लंबी चलेगी और जोखिम भरी होगी। 

कई दिनों तक कप्तान ने राह देखी पर कोई आगे बढ़कर नहीं आया बंदरगाह पर एक निठल्ला ख़लासी था, जिसका नाम था बलबीर, लेकिन अपने पियक्कड़ और फक्कड़ स्वभाव के कारण वह बेवड़ा बलबीर कहलाता था। उसकी नशे की आदत और फक्कड़ स्वभाव के कारण बेचारे को कोई काम पर लेना ही नहीं चाहता था। निराश कप्तान एक दिन बलबीर के पास गया और बोला, “सुनो बलबीर क्या तुम मेरे साथ मेरे जहाज़ पर चलोगे?” 

“बिल्कुल चलूँगा।”

“तो फिर अभी चलो!”

इस तरह बलबीर उस जहाज़ का पहला कर्मी बन गया। उसको देखकर दूसरे जहाज़ कर्मियों की भी हिम्मत बढ़ी और धीरे-धीरे दल पूरा हो गया। जहाज़ चल पड़ा, राजकुमारी की खोज में। 

एक बार जहाज़ पर काम मिल जाने के बाद बेवड़ा बलवीर कुछ काम नहीं करता था, बस अपनी जेबों में हाथ डाले जहाज़ के डेक पर खड़ा रहता और उन शराब खानों के सपने देखता रहता जो पीछे शहर में छूटते जा रहे थे। जहाज़ के दूसरे कर्मी उसको कोसते रहते थे क्योंकि काम न करने पर भी बलबीर भोजन तो पूरा करता था! और जहाज़ पर रसद कम थी, यात्रा का कोई अंत दिखाई नहीं देता था। कुछ दिनों में जहाज़ का कप्तान भी बेवड़े बलबीर से छुटकारा पाने का विचार करने लगा। 

एक दिन समुद्र में कुछ दूरी पर एक अकेली बड़ी चट्टान दिखाई दी। कप्तान ने बलबीर से कहा, “बलबीर इस डोंगी में बैठो और उस चट्टान का चक्कर लगाकर उसकी जाँच करो, राजकुमारी की तलाश करनी है न। हम यहीं आसपास ही रहेंगे और शाम तक तुम्हें ले जाएंएँगे।”

बेवड़ा बलबीर डोंगी में बैठकर चट्टान की ओर चल पड़ा। उसकी डोंगी जाते ही जहाज़ तेज गति से चलता हुआ दूर निकल गया। बलबीर बीच समुद्र में फँस गया। और कोई चारा न था, बलबीर डोंगी को खे कर वह चट्टान तक ले गया। वहाँ उसने डोंगी तट पर बाँध दी और घूमने लगा। उसने एक गुफा खोज ली और उसके अंदर चला गया। गुफा में एक सुंदर युवती बैठी थी जो और कोई नहीं बल्कि खोई हुई राजकुमारी ही थी। 

राजकुमारी ने बलबीर से पूछा, “तुमने मुझे खोजा कैसे?” 

“मैं ऑक्टोपस पकड़ने के लिए इधर आया था,” बेवड़े ने शेख़ी बघारी। 

“मुझे यहाँ एक ऑक्टोपस ही पकड़ कर लाया है और क़ैद कर लिया है,” राजकुमारी ने बताया, “तुम उसके आने से पहले भाग जाओ, क्योंकि वह बहुत भयंकर है। लेकिन यह भी जान लो कि वह दिन भर में तीन घंटे के लिए लाल मुलेट मछली बन जाता है, जिसे पकड़ना बहुत आसान है। साथ ही यह भी याद रखो कि लाल मुलेट को अगर पकड़ते ही मार न डाला गया तो वह जल पाखी बनकर उड़ जाएगा।”

अब बलबीर ने अपनी डोंगी छुपा दी और ख़ुद भी छिपकर ऑक्टोपस की राह देखने लगा। जब समुद्र में से वह भयंकर ऑक्टोपस निकला तो बलबीर उसे देखकर हैरान रह गया। उसकी भुजाएँ इतनी लंबी थीं कि उस चट्टानी द्वीप को हर ओर से घेर लें। उसकी भुजाओं के चूषक शिकार की गंध पाकर फड़कने लगे थे। ऑक्टोपस शिकार की तलाश करता, इसके पहले ही उसका लाल मुलेट मछली बनने का समय आ गया। छोटी लाल मछली बनकर वह समुद्र में डूब गया। बलबीर ने जल्दी से अपनी डोंगी से मछली पकड़ने का जाल निकाला और समुद्र में डाल दिया। उसने कई बार जाल फेंका और निकाला, बिच्छू मछली, पम्फ्रेट, ईल, ग्रनार्ड और कई तरह की मछलियाँ जाल में फँसती रहीं तब जाकर कहीं आख़िरी खेप में लाल मुलेट फँसी। वह जाल में छटपटा रही थी। बलबीर ने जैसे ही उसे मारने के लिए अपने चप्पू से वार किया तो उसने देखा कि उसके वार ने एक जलपाखी को घायल कर दिया है, उसका एक पंख टूट गया था। पंख टूटते ही जलपाखी फिर ऑक्टोपस बन गया। उसकी बाँहों से ख़ून के फ़व्वारा फूट रहे थे। बलबीर ने बिना देर लगाए अपनी पतवार से कूट-कूट कर उस ऑक्टोपस को मार डाला। राजकुमारी ने ख़ुश होकर अपनी हीरे की अँगूठी उतारी और बलबीर की उँगली में पहना दी, वह आज़ाद हो गई थी, और बलबीर उसका रक्षक बना था। 

“आओ मैं तुम्हें तुम्हारे घर ले चलता हूँँ,” बलबीर ने राजकुमारी को अपनी नाव दिखाते हुए कहा। 

नाव छोटी थी और समुद्र बहुत बड़ा! बहुत समय तक नाव खेने के बाद उन्हें कुछ दूरी पर एक जहाज़ दिखाई पड़ा राजकुमारी की साड़ी के टुकड़े को पतवार में बाँधकर बलबीर ने एक झंडा बनाया और उसे हिला-हिला कर जहाज़ को बचाने का संकेत दिया। संकेत पाकर जहाज़ पास आया और डोंगी के साथ ही उन दोनों को जहाज़ पर ले लिया। यह वही जहाज़ था, जिसका कप्तान बलबीर को समुद्र में छोड़कर भाग गया था। अब जब उसने बलबीर को राजपुत्री के साथ देखा तो बोल उठा, “अरे बलबीर, यह तुम हो? हम तो तुम्हें समुद्र में खोया जानकर तुम्हारी ही तलाश में इधर-उधर भटक रहे थे। तुमने तो कमाल कर दिया! तुम राजकुमारी के साथ वापस आ गए हो तो अब तो बड़ा जश्न होना चाहिए।” बलबीर जिसको पिछले कई महीनों से एक घूँट भी शराब की नहीं मिली थी जश्न का नाम सुनकर ही वह लट्टू हो गया। उसे लगा उसका शराब पीने का सपना इस जश्न में सच होगा। 

अब तक जहाज़ राजकुमारी के पिता के राज्य के तट पर पहुँचने ही वाला था। कप्तान ने बलबीर को ऐसी मेज़ पर पहुँचाया जहाँ अनेक प्रकार की मदिरा की ललचाने वाली बोतलें रखी थीं। एक क़तरे के लिए तरसते बेवड़े बलबीर को तो मानो मन माँगी मुराद मिली। उसने जो शराब पीनी शुरू की तो, तब तक पीता चला गया जब तक की नशे में धुत्त होकर फ़र्श पर नहीं गिर पड़ा और बेहोश हो गया। अब जहाज़ का कप्तान राजपुत्री के पास आया और बोला, “ख़बरदार राजकुमारी! अपने पिता को हरगिज़ यह ना बताना कि तुमको बेवड़े बलबीर ने छुड़ाया है। तुम्हें यही बताना है कि मैं जहाज़ का कप्तान हूँ, मैंने ही तुम्हें छुड़ाने के लिए, क़ैद से आज़ाद करा कर वापस लाने की आज्ञा बलबीर को दी थी।” 

राजकुमारी ने ना तो इंकार किया और न ही स्वीकार किया, बस इतना कहा, “मैं जानती हूँ कि मुझे अपने पिताजी से क्या कहना है।” 

पूरी तरह निश्चिंत हो जाने के लिए कप्तान ने बेहोश बलबीर को उसी रात उठवा कर समुद्र में फिंकवा दिया। सुबह होते-होते जहाज़ किनारे जा लगा। राजकुमारी के वापस मिल जाने की सूचना पूरे राज्य में फैल गई। गाजे-बाजे के साथ सैनिक और दरबारी राजकुमारी का स्वागत करने के लिए पहुँच गए थे। राज दरबार में संगीत लहरियाँ गूँज रही थीं। राजा साहब अपनी खोई हुई बेटी को से मिलने के लिए उतावले बैठे थे। 

राजकुमारी का ब्याह अगले कुछ ही दिनों में कप्तान के साथ कर देने की घोषणा हो गई। 

विवाह के शुभ दिन बंदरगाह के लोगों ने सर से पैर तक समुद्री सेवार से लिपटे एक आदमी को समुद्र के पानी में से बाहर आते हुए देखा। उसके कपड़ों की जेबों से पानी के साथ छोटी-छोटी मछलियाँ और घोंघे भी बह कर निकल रहे थे, यह और कोई नहीं हमारा बेवड़ा बलबीर ही था!! 

वह पानी से बाहर निकल कर धीरे-धीरे लड़खड़ाता हुआ सड़क की ओर चल पड़ा, सेवार से उसका सिर और माथा ढका हुआ था, शरीर पर सेवार ही सेवार लगी थी। इस समय विवाह के लिए मंडप में जाती राजकुमारी की शोभाया यात्रा उधर से ही निकल रही थी। इस विचित्र आदमी को देखते ही जुलूस थम गया। राजा ने कड़क कर पूछा, “यह कौन है? इसको तुरंत क़ैद करो।”

सैनिक आगे बढ़े, तभी बलबीर ने अपने हाथों को उठाकर रुकने का संकेत दिया उसकी उँगली में पड़ी अँगूठी का हीरा सूरज की रोशनी में जगमगाया। 

“मेरी बेटी की अँगूठी!” राजा अचरज से चिल्लाया। 

“हाँ, हाँ,” राजकुमारी भी बोली, “यही है वह वीर बलबीर, जिसने मुझे ऑक्टोपस की क़ैद से छुड़ाया!”

धीरे-धीरे आगे बढ़ कर बलबीर ने अपनी कहानी राजा को सुना दी। उसी समय कप्तान को क़ैद कर लिया गया। 

बलबीर का शरीर ऊपर से नीचे तक हरे सेवर से ढका था, सिर पर मानो सेवार का सेहरा सजा था वह दूल्हा लग रहा था और उसके साथ लाल कपड़ों में सजी दुलहन बैठी थी। दृश्य बड़ा अनोखा, बड़ा अद्भुत था:

“जुलूस चल पड़ा विवाह मंडप की ओर
और यही है इस कहानी का आख़िरी छोर!” 

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