अनोखा हरा पाखी

01-03-2024

अनोखा हरा पाखी

सरोजिनी पाण्डेय (अंक: 248, मार्च प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

मूल कहानी:  ल'युसेल बेल-वरडी; चयन एवं पुनर्कथन: इतालो कैल्विनो
अंग्रेज़ी में अनूदित: जॉर्ज मार्टिन (द फाइन ग्रीनबर्ड); पुस्तक का नाम: इटालियन फ़ोकटेल्स

 

एक समय की बात है, किसी राज्य में एक राजा राज करता था जो बड़े शक्की स्वभाव का था। वह अक़्सर भेष बदलकर अपनी प्रजा के घरों के आसपास इसलिए चक्कर लगता कि वह सुन सके कि प्रजा उसके बारे में क्या सोचती है। समय कठिन था, तो राजा को यह संदेह रहता था कि कहीं उसके विरुद्ध तख़्ता पलटने के लिए कोई योजना तो नहीं बनाई जा रही है! 

एक दिन जब वह एक साधारण-से परिवार के घर के पास से गुज़रा तो देखा कि तीन युवती बहनें अपने बरामदे में बैठी दिल की बातें कर रही हैं। वह छुप कर सुनने लगा। 

सबसे बड़ी बहन कह रही थी, “यदि मेरा ब्याह न राजा के ख़ानसामें से हो जाता तो मैं एक दिन में इतनी रोटियाँ बनवा देती कि सारे महल के लोग एक साल तक खाते रह जाते। उस सजीले ख़ानसामें पर सचमुच मेरा दिल आ गया है।”

मँझली ने कहा, “अगर राजा के नौजवान, छैल-छबीले कलवार (शराब बनाने वाला) से मैं ब्याह दी जाऊँ तो ऐसी शराब बना दूँ कि एक गिलास पीकर ही सारा दरबार मस्त हो जाए।” अब सबसे छोटी बहन की बारी थी। वह अभी तक चुपचाप बैठी थी। दोनों बड़ी बहनों ने उसे छेड़ते हुए पूछा, “तू भी तो बता तू किसी से ब्याह रचाना चाहती है?” अब छुटकी, जो तीनों में सबसे मोहिनी थी, धीरे से बोली, “मैं तो सीधे राजा से ही ब्याह करना चाहूँगी और अगर ऐसा हो जाए तो मैं उस परिवार को दो लाल गालों, सुनहरे बालों वाले बेटे और लाल गालों सुनहरे बालों वाली एक बेटी दूँ जिसके माथे पर तारे की बिंदिया चमकती हो।” इस पर दोनों बहन बड़ी बहनें खिलखिला कर हँस पड़ीं, “अरे वाह छुटकी, तूने तो कुछ भी माँगा ही नहीं!” यह सब राजा ने सुन लिया था। अगले ही दिन उन तीनों को उसने दरबार में बुला भेजा। लड़कियाँ घबरा गईं क्योंकि उन दिनों हर किसी को शक की निगाहों से देखा जाता था। किसी के साथ कुछ भी हो सकता था। तीनों डर से काँपती हुई दरबार में पहुँचीं। 

उन्हें देख राजा ने कहा, “डरो मत, बस मुझे यह बताओ कि कल शाम अपने बरामदे में बैठी तुम तीनों क्या-क्या बातें कर रहीं थीं?” यह सुनकर बहनें अचकचा गईं। 

“कुछ भी नहीं महाराज, हम तो कुछ भी नहीं कह रहे थे!” 

“क्या तुम लोग अपनी शादी की बातें नहीं कर रही थीं?” राजा ने याद दिलाया। 

वे कुछ देर तक बग़लें झाँकती रहीं। अंत में बड़की ने मुँह खोला ही और रसोईये से ब्याह की इच्छा बता दी। 

अब राजा ने कहा, “ठीक है, तुम्हारी इच्छा पूरी की जाएगी।” और बड़की की इच्छा पूरी कर दी गई। 

मँझली ने भी कलवार से शादी करने की अपनी इच्छा स्वीकार कर ली। 

“तुम्हारी इच्छा भी पूरी की जाएगी!”

और उसका ब्याह भी हो गया। 

अब तीसरी से राजा ने पूछा, “अब तो तुम्हारी बारी है!” सर से पैर तक लाज से लाल होते हुए छुटकी ने कल शाम की कही बात स्वीकार कर ली। 

“यदि तुम्हारी इच्छा पूरी हो जाए तो क्या तुम भी अपनी बात पूरी करोगी?” 

छुटकी ने ज़मीन की ओर देखते हुए कहा, “अपनी शक्ति भर, हाँ!”

“तब तो तुम मेरी पत्नी बनोगी। फिर देखना यह होगा कि तुम तीनों में अपने वादे की सबसे पक्की कौन है!” और तीनों बहनों के ब्याह उनकी इच्छा अनुसार हो गए। 

लेकिन अब धीरे-धीरे दोनों बड़ी बहनों के मन में, छोटी बहन के बड़े रुत्बे के कारण, ईर्ष्या की आग धधक उठी। ऊपर से यह समाचार जान कि छोटी बहन गर्भवती भी हो गई है, जलन और बढ़ गई। 

इसी बीच राजा को दुश्मनों से राज्य की रक्षा के लिए युद्ध में जाना पड़ गया। जाते हुए उसने अपनी पत्नी को उसका वादा याद दिलाया और युद्ध के लिए विदा ली। गर्भवती छुटकी की निगरानी उसकी बड़ी बहनों के सुपुर्द कर दी गई। 

जब राजा युद्ध में फँसा हुआ था, उन्हीं दिनों रानी ने लाल गालों-सुनहरे बालों वाले एक पुत्र को जन्म दिया। आप सोच सकते हैं अब बड़की और मँझली को कैसा लगा होगा! 

वे बच्चे को उठा ले गईं और उसकी जगह एक बंदर का बच्चा रख दिया। राजा का बेटा एक बूढ़ी, कुटनी मीना को दे दिया गया कि वह उसे नदी में डूबने के लिए फेंक आए । कुटनी बच्चे को कंबल में लपेट, टोकरी में रख नदी पर ले गई और पुल पर चढ़कर टोकरी नदी में उछाल दी। टोकरी पानी में बह चली। जल्दी ही उसे एक केवट ने देखा और टोकरी का पीछा अपनी नाव से किया। उसमें एक सुंदर, नवजात शिशु को देखकर वह उसे अपने घर ले गया और पालने के लिए अपनी पत्नी को दे दिया। उधर राजा के पास युद्ध के मैदान में ही ख़बर भेज दी गई कि रानी ने लाल गालों-सुनहरे बालों वाले बच्चे को नहीं बल्कि एक बंदर को जन्म दिया है, अब उसका क्या किया जाए? राजा ने तुरंत दूत भेज कर कहलाया, “चाहे बेटा नहीं बंदर ही सही रानी ने जना है, उनकी देखभाल में कोई कमी नहीं रहनी चाहिए।”

युद्ध समाप्त हुआ राजा अपनी राजधानी लौटे। पत्नी के प्रति उसका प्यार ख़त्म तो नहीं हुआ था परन्तु वह पहले सी बात न रही। रानी ने अपना वादा जो पूरा नहीं किया था! 

भाग्य की लीला, रानी फिर से गर्भवती हुई राजा को आशा बँधी कि इस बार सब शुभ होगा। 

उधर केवट के घर में राजकुमार पल रहा था। एक दिन नाव वाले ने ध्यान से देखने पर पाया कि बच्चे के बालों के बीच में सोने की लटें हैं। उसने अपनी घरवाली से कहा, “इसके बाल तो देखो यह एक लट तो बिल्कुल सोने की लगती है।”

पत्नी ने भी ध्यान से देखा और हाँ में हाँ मिलाई, “सोने जैसी नहीं, यह तो बिल्कुल सोने की ही है!” 

उन लोगों ने बालों की वह लट काटी और सुनार के पास ले गए। सुनार ने लट को काँटे पर तोला और सोने का एक सिक्का उन्हें देकर बाल रख लिए। अब हर दो-चार दिन पर केवट और उसकी पत्नी बच्चे के बालों की वह सुनहरी लट काटते और सुनार को बेच देते। धीरे-धीरे वे धनवान हो गए। 

इधर राजा को अपनी गर्भवती-पत्नी को छोड़कर फिर लड़ाई पर जाना पड़ा। उस के ख़ानदानी भाइयों ही ने यह लड़ाई छेड़ी थी। रानी को एक बार फिर राजा ने उसका वादा याद दिलाया और सीमाएँ सँभालने चल पड़ा। 

इस बार भी रानी ने लाल गालों-सुनहरे बालों वाला बेटा जना। ईर्ष्यालु बहनों ने इस बार एक पिल्ला रानी को दिखा दिया और बच्चे को फिर उसी बुढ़िया को दे दिया। उसने बच्चे को पिछली बार की तरह नदी में उछाल कर फेंक दिया। संयोग ऐसा कि इस बार फिर टोकरी उसी मल्लाह ने देखी। सुनहरे बालों वाले शिशु को देखकर वह बहुत ख़ुश हो गया। उसे लगा कि अब उसकी आमदनी दूनी हो जाएगी। 

युद्ध क्षेत्र में राजा के पास उसकी बड़ी सालियों ने ख़बर भेज दी, “महाराज, रानी ने इस बार एक पिल्ले को जन्म दिया है। आपकी क्या आज्ञा है?” राजा का उत्तर आया, “कुत्ता चाहे कुतिया, रानी ने जो भी जना हो उसकी और मेरी पत्नी की देखभाल में कोई कसर नहीं रहनी चाहिए।”

बड़े उदास मन से राजा युद्ध के मैदान से वापस आया। उसकी पत्नी-प्रेम सच्चा था, उसे पूरी आशा थी कि तीसरी बार सब कुछ कुशल और शुभ होगा। 

अब इसे भाग्य का खेल ही कहेंगे कि जब रानी तीसरी बार गर्भवती हुई तब राजा को फिर युद्ध भूमि में जाना पड़ा। युद्ध किए बिना चल नहीं सकता था, जाने से पहले वह अपनी पत्नी के पास गया और गंभीरता से बोला, “मुझे विदा दो प्रिये, तुम मुझे लाल गालों-सुनहरे बालों वाले दो बेटे ना दे पाईं। इस बार अपना वादा याद रखने की कोशिश करना कि माथे पर सितारे की बिंदिया वाली बिटिया दे सको।”

प्रसव का समय आया। लाल गालों-सुनहरे बालों और माथे पर सितारे जैसी चमकती बिंदिया वाली बिटिया ने जन्म लिया। उधर बुढ़िया कंबल और टोकरी लिए तैयार बैठी थी। वह तुरंत ही इस उसे नदी में फेंक आई। बड़ी बहनों ने एक छोटा बाघ का बच्चा रानी के बग़ल में लिटा दिया। राजा को ख़बर भेजी और पूछा। कि अब आगे क्या करना है? 

इस बार राजा का जवाब आया, चाहे जो करो बस इतना ज़रूर करो कि अब मैं महल में अपनी पत्नी को कभी ना देखूँ। 

फिर क्या था, बड़की और मँझली छुटकी को घसीट कर तहख़ाने की कोठरी में ले गईं, उसे कोठरी में धकेल कर दरवाज़े को दीवार बनाकर बंद कर दिया गया, बस सिर के लायक़ एक छेद उसमें छोड़ दिया गया, जहाँ से बस हवा आती। रोज़ बहनों के मुक्के, एक सूखी रोटी और एक गिलास पानी उसे दिया जाने लगा। रनिवास में उसके कमरे को भी बंद कर दिया गया। महल में बेचारी रानी का नाम और निशान भी ना रहा। 

लड़ाई रुकी। राजा घर लौटा। न तो उसने रानी के बारे में कुछ पूछा और ना ही उसे किसी ने बताया। 

महल को मानो उदासी ने घेर लिया। 

♦    ♦    ♦

उधर तीनों बच्चे मल्लाह के घर में पल रहे थे। बच्चों के साथ-साथ मल्लाह की धन-सम्पत्ति भी दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ रही थी। अब मल्लाह को इन सुंदर, प्यारे बच्चों के भविष्य की चिंता हुई। उसने एक सुंदर महल इन के लिए बनवाने की बात सोची। राजा के महल के पास ही एक बड़ी ज़मीन में सुंदर बाग़ बनवाया और बीच में महल जैसा ही एक सुंदर भवन भी। महल में सभी सुख-सुविधाएँ थीं और बग़ीचे में दुनिया की सभी अजूबा चीज़ें इकट्ठी की गईं। 

समय के साथ दोनों लड़के सुंदर युवक और लड़की मनमोहन सुंदर युवती बनी, बच्चे सयाने हो गए। मल्लाह और उसकी पत्नी स्वर्ग सिधार गए। तीनों भाई-बहन इस एश्वर्यपूर्ण महल में सुख से रहने लगे। वे तीनों अपना सिर हमेशा ढके रखते, लड़के पगड़ी से और लड़की चुनरी के आँचल से। कोई उनके सोने के बालों को देख ना पाता था। 

बड़की और मँझली बहनें अक़्सर राजा के महल की खिड़कियों से उस महल और उसमें रहने वाले इन तीनों को देखतीं, इस बात से बेख़बर कि वे उनकी मौसी थीं। 

एक दिन उन दोनों ने देखा कि तीनों पड़ोसी छत पर खुले सर बैठे थे और एक दूसरे के बाल भी काट रहे थे। सुबह की खुली धूप में उन तीनों के बाल ऐसे चमक रहे थे कि आँखें चुँधिया जाएँ। अचानक दोनों मौसियों को लगा कि हो ना हो वह उसकी छोटी बहन के बच्चे ही हों, जिन्हें उन्होंने नदी में फिंकवा दिया था। अब यह दोनों उस महल पर कड़ी नज़र रखने लगीं। उन्होंने देखा कि वे तीनों अक़्सर अपने बाल काटते हैं और बाल कुछ ही दिनों में फिर लंबे हो जाते हैं। अब तो दोनों मौसियां अपने पाप की ग्लानि के कारण मानों हर दम ही अंगारों पर लोटने लगीं। 

उन्हीं दिनों राजा ने भी पड़ोस में बने नए महल की ओर ध्यान देना शुरू किया। उन तीनों को देखकर राजा के दिल से आह निकलती क्योंकि उन के जैसी संतानों की इच्छा उसके मन में थी जो पूरी ना हो सकी। बस उनके बाल ही राजा नहीं देख पाते थे क्योंकि वह तीनों हमेशा अपना सिर जो ढके रखते थे! 

एक दिन वह उनसे बात करने लगा, “आप लोगों का बग़ीचा कितना सुंदर है!” 

“महाराज,” लड़की ने कहा, “हमारे बग़ीचे में दुनिया की बहुत सारी सुंदर चीज़ है, यदि आप हमें इज़्ज़त बख्शें तो इस बग़ीचे में जब चाहे तब जाकर घूम सकते हैं।”

“ज़रूर, क्यों नहीं, हम पड़ोसी हैं, आप तीनों कभी हमारे साथ भोजन कीजिए न।” 

“हमारे आने से तो सभी दरबारियों को असुविधा होगी, राजा साहब।”

“ऐसा बिल्कुल नहीं है,” राजा बोला, “आप लोगों के आने से हमें बहुत ख़ुशी मिलेगी।” 

“अगर ऐसा है तो हम सब ज़रूर आएँगे।” 

जब इस दावत की बात दोनों बहनों को पता लगी तो वे उस बुड्ढी़, कुटनी स्त्री के पास फिर पहुँचीं जिसको उन्होंने रानी की नवजात संतानों को नदी में डुबो देने के लिए दिया था। उससे पूछा, “मीना, सच-सच बताना तुमने रानी के बच्चों का वास्तव में क्या किया था?” 

“मैंने उनको टोकरी समेत नदी में फेंक दिया था। लेकिन टोकरी हल्की थी और पानी पर तैरने लगी। उसके बाद मैं वापस चली आई मुझे मालूम नहीं कि वह कितनी देर बाद डूबी, डूबी भी या नहीं!”

“अभागी औरत, वह तीनों बच्चे ज़िन्दा है और राजा ने उन्हें देख भी लिया है अगर उन्हें पता चल गया कि वे कौन हैं, तो हमारी ख़ैर नहीं। उन्हें महल में आने से किसी तरह रोको और फिर उनका खेल हमेशा के लिए ख़त्म करो।” 

“ऐसा ही करूँगी,” बुढ़िया ने जवाब दिया। एक भिखारिन का भेष बनाकर मीना उन बच्चों के बग़ीचे के द्वार पर जा खड़ी हुई। इसी समय लड़की बाहर बग़ीचे में आई और चारों ओर नज़र दौड़ा कर बोली, “हमारे बग़ीचे में भला क्या कमी है? दुनिया की हर सुंदर चीज़ यहाँ मौजूद है।”

यह सुनकर बुढ़िया मीना बाहर से ही बोली, “क्या बात करती हो बेटी, तुम्हें मालूम भी नहीं है कि यहाँ किस चीज़ की कमी है।” 

“वह कौन सी चीज़ है, माँ?” लड़की ने पूछा। 

“नाचते पानी के फव्वारे!”

“वह कहाँ मिलेंगे?” लड़की ने पूछा, लेकिन तब तक वृद्धा ग़ायब हो चुकी थी। लड़की के आँसू निकल आए, “कितनी नादान हूँ मैं, सोचती थी यहाँ सब कुछ है। कहाँ हैं वे नाचते पानी के फव्वारे? किसको मालूम कि वह कितने सुंदर हैं?” और वह सुबक-सुबक कर रोने लगी। 

जब दोनों भाई घर लौटे तो बहन को रोता देख दोनों ने पूछा, “क्या बात है? रो क्यों रही हो?” 

“मुझे तो बस रोने दो। तुम्हें मालूम भी है? मैं बग़िया में घूम-घूम कर ख़ुश थी कि हमारे पास सब कुछ है, तभी एक बुढ़िया आई और उसने बताया दुनिया की सबसे सुंदर चीज़ नाचते पानी का फव्वारा है, जो हमारे बाग़ में है ही नहीं।”

“बस इतनी सी बात है?” बड़े भाई ने पूछा, “मैं ख़ुद जाऊँगा और नाचते पानी का फव्वारा खोज कर लाऊँगा। अब रोना बंद करो!” 

भाई ने अपनी एक अँगूठी उतारी और बहन को देते हुए बोला, “अगर इसके नगीने का रंग बदल जाए तो समझ लेना कि मैं इस दुनिया में नहीं हूँ।” ऐसा कहकर उसने घोड़े को एड़ लगाई और चल पड़ा। बहुत देर चलने के बाद लड़के को एक संन्यासी मिला। उसने पूछा, “बेटा इधर से कहाँ चले?” 

“मुझे नाचते पानी के फौव्वारे की तलाश है।”

“आह बच्चे!” संन्यासी बोला, “तुम मौत के मुँह में जा रहे हो, शायद तुम्हें वहाँ के ख़तरों का पता ही नहीं है।”

“ख़तरा चाहे कितना भी बड़ा हो, फव्वारा तो मुझे पाना ही है।”

“तब मेरी बात ध्यान से सुनो,” संन्यासी बताने लगा, “सामने यह पहाड़ देख रहे हो, इसी पर चढ़ जाओ। ऊपर पहुँचने पर एक बड़े मैदान में तुम्हें एक महल दिखाई देगा। मुख्य द्वार पर तुम्हें चार दैत्य हाथ में तलवार है लिए पहरे पर खड़े दिखाई देंगे। ध्यान रखना, अगर उनकी आँखें बंद हों तो हरगिज़ आगे न बढ़ाना, जब आँखें खुली हों तभी भीतर घुसने की कोशिश करना। अंदर जाने पर अगर द्वार के पट खुले हों तो प्रतीक्षा करना। हाँ, यदि दरवाज़े बंद हो तो खोल कर भीतर चले जाना। वहाँ तुम्हें चार सिंह दिखलाई पड़ेंगे। यहाँ भी वही बात ध्यान रखने की होगी, आँखें बंद होने पर रुके रहना होगा, खुली आँखों के समय ही भीतर जाना होगा। वहीं तुम्हें नाचते पानी के फ़व्वारे मिलेंगे।”

लड़के ने संन्यासी को शीश झुकाया, घोड़े पर सवार हुआ और पहाड़ पर चढ़ने लगा। 

ऊपर पहुँचने पर महल के मुख्य द्वार पर चार दैत्य सोते हुए दिखाई पड़े, “बिल्कुल ठीक, मैं रुका रहूँगा,” लड़के ने स्वयं से कहा। जैसे ही दैत्य ने आँखें खोली द्वार के पट बंद हो गए, वह उन्हें धकेल कर भीतर चला गया। उसने सिंहों की भी आँखें खुलना का इंतज़ार किया और तब आगे बढ़ा। सामने नाचते पानी का फ़व्वारा दिखलाई पड़ गया। उसने अपने साथ लाई गई मशक में फ़व्वारे का पानी भरा और वहाँ से निकल गया। 

अपने भाई को सही सलामत देखकर लड़की की ख़ुशी की सीमा न रही। उस बेचारी की जान तो अँगूठी के नगीने को ही निहारने में अटकी थी। जब भाई-बहन मिल चुके तब उन्होंने दो सुनहरी नाँदों में नाचते पानी के फ़व्वारे का पानी भरकर बग़ीचे में रख दिया। एक नाँद से दूसरी नाँद़ में पानी नाच-नाच कर गिरता रहता था। अब लड़की ख़ुश थी कि दुनिया की सारी सुंदर वस्तुएँ उसके बग़ीचे में हैं। एक दिन फिर राजा जब उधर आया तो उसने इन तीनों से महल में न आने का कारण पूछा, वह तो उनका इंतज़ार करता ही रह गया था। छोटी लड़की ने राजा को बता दिया कि उनकी बग़िया में नाचते पानी का फ़व्वारा नहीं था, इसलिए सबसे बड़ा भाई वही लेने चला गया था। यह नया अजूबा देखकर राजा ने उसकी ख़ूब तारीफ़ की और भोजन का निमंत्रण फिर दोहरा दिया, अगले दिन के लिए। 

अब बच्चों की मौसियों ने उसी कुटनी बुढ़िया को फिर से नए महल में भेजा। वहाँ नाचते पानी का फ़व्वारा देखकर तो मानो उसका ख़ून ही खौल उठा। इस बार उसने लड़की से कहा, “खाली नाचते पानी के फ़व्वारे से क्या होता है, अभी संगीत वाला पेड़ तो है ही नहीं!!”और ग़ायब हो गई। जब दोनों भाई घर आए तो फिर छोटी बहन ठुनकी, “भैया अगर तुम मुझसे प्यार करते हो तो बग़ीचे के लिए संगीत वाला पेड़ ले आओ!” 

इस बार छोटे भाई की बारी थी, “क्यों नहीं छोटी, मैं वह पेड़ तुम्हारे लिए ज़रूर लेकर आऊँगा।” छोटे भाई ने भी अपनी एक अँगूठी बहन को दी, घोड़े पर सवार हुआ और इस संन्यासी की खोज में चल पड़ा जिसने बड़े भाई को नाचते पानी के फ़व्वारे का पता बताया था। 

वह संन्यासी बोला, “गाने वाले पेड़ को पाना तो सच में टेढ़ी खीर है! सुनो, तुम्हें क्या करना है पहाड़ पर चढ़ो, दैत्यों से सावधान रहो, द्वार के पल्लों का ध्यान रखो, सिंहों की आँखों में देखो, जैसा सब तुम्हारे भाई ने किया था। इतने सबके बाद तुम एक ऐसे दरवाज़े पर पहुँचोगे जहाँ ऊपर की चौखट पर कैंची लगी होगी। अगर कैंची बंद हो तो भीतर न बढ़ना, जब खुली हो तो आगे बढ़ते जाना। कुछ आगे जाने पर तुम्हें एक बड़ा सा पेड़ मिलेगा जिसकी पत्तियाँ से संगीत निकलता है। पेड़ पर चढ़ जाना, ऊपर की एक शाखा तोड़ लेना और अपने बग़ीचे में ले जाकर लगा लेना। वहाँ उसकी जड़ें पनप जाएगी।”

छोटे भाई ने भी हर निशान के अनुकूल होने की प्रतीक्षा, धीरज और सावधानी से की और फिर गाने वाले पेड़ की शाखा लेकर लौटा। रास्ते भर शाखा के संगीत का आनंद लेता रहा। जब वह टहनी बग़िया में रोपी गई तो जल्दी ही पनप गई और सारे बग़ीचे को मधुर संगीत से भरने लगी। पड़ोस के तीनों युवा जब दो बार के निमंत्रण पर भी राजा के महल में भोजन करने ना आए तो वह उस तरफ़ से उदासीन हो गया। लेकिन जब उनके बग़ीचे में लगे पौधे का संगीत उसके कानों में पड़ा तो वह मुग्ध हो गया। उसने पड़ोसी युवाओं को एक बार फिर भोजन के लिए महल आने का बुलावा भेज दिया। 

जब यह समाचार राजा की दोनों सालियों को सुनाई दिया तब उन्होंने कुटनी बुढ़िया मीना को एक बार फिर बुलाया। वह फिर पड़ोस के महल में जा पहुँची और लड़की से बोली, “मेरी सलाह कितनी सही होती है यह तो तुमने देख ही लिया है न बेटी! अब अगर वह अनोखी हरी चिड़िया भी तुम्हारी बग़िया में आ जाए तो तुम्हारा बग़ीचा दुनिया का सबसे बेहतरीन बग़ीचा हो सकता है।”

लड़की भाइयों की दुलारी थी, वे जैसे ही घर आए वह फिर ज़िद में आई, “अब मेरे लिए भला वह हरी अनोखी चिड़िया कौन ले आएगा!” 

“मैं लाकर दूँगा,” कहकर बड़ा भाई तुरंत ही हरे पक्षी की तलाश में निकल पड़ा। 

वह सीधा संन्यासी के पास जा पहुँचा। बड़े लड़के की बात सुनकर संन्यासी विचार मग्न हो गया, “यह तो बहुत चिंता की बात है, आज तक जो भी उसे लेने गया, लौटकर नहीं आया। लेकिन भाग्य को भला कौन टाल सकता है! तुम इस पर्वत पर जाओ, वहाँ महल के साथ-साथ ही एक बग़ीचा है। जिसमें संगमरमर की तमाम मूर्तियाँ लगी हैं, यह सब उन्हीं वीरों की हैं जो हरे पक्षी को लेने आए थे। उस बाग़ में उड़ने, चहकने वाली तो सैकड़ों चिड़ियाँ हैं पर मनुष्य की तरह बोलने वाला अनोखा हरा पाखी केवल एक ही है। वह सचमुच अनोखा है। वह तुमसे बात करेगा पर तुम सावधान रहना जवाब एकदम मत देना वह चाहे कुछ भी कहता रहे।”

नौजवान लड़का बग़ीचे तक सुरक्षित पहुँच गया। वहाँ अनेक मूर्तियाँ सजी थीं। सहसा एक हरा पाखी आकर युवक के कंधे पर बैठ गया और बोला, “तो तुम भी आ ही गए? तुम सोचते हो मुझे पकड़ लोगे? यह तुम्हारी भूल है। प्यारे जवान, तुम्हारी मौसियों ने तुम्हें यहाँ मरने के लिए भेजा है। उन्होंने तुम्हारी माँ को ज़िन्दा दीवार के पीछे चुनवा दिया है।”

“मेरी माँ ज़िन्दा दीवार में चिनाई गई है?” नौजवान चिल्ला पड़ा और तुरंत पत्थर की मूर्ति बन गया। 

उधर बहन लगातार अँगूठी पर निगाह लगाए बैठी थी, नगीने का रंग बदलते ही वह घबरा कर बोली, “कोई उसे बचाओ! हमारा भाई मर रहा है!” 

यह जब छोटे भाई ने सुना तो वह तुरंत घोड़े पर सवार होकर भाई की मदद को चल पड़ा। 

वह भी पहाड़ के ऊपर महल के बग़ीचे तक पहुँच गया। उसे देखते ही अनोखा हरा पाखी बोला, “तुम्हारी ज़िन्दा माँ दीवार में चिनी हुई है।”

“क्या!? मेरी ज़िन्दा माँ दीवार में . . .”

और पलक झपकते ही वह भी सफ़ेद संगमरमर की मूर्ति बन गया। 

बहन हर समय छोटे भाई की अँगूठी ही देखती रहती थी। उसने देखा नगीना काला पड़ रहा है। वह ना तो परेशान हुई, ना घबराई। जल्दी से घुड़सवारी के मर्दाने कपड़े पहने, सबसे तेज़ चलने वाला घोड़ा लिया और चल पड़ी। 

वह भी पहाड़ की तलहटी में डेरा लगाए उसी संन्यासी के पास जा पहुँची जिसने भाइयों की सहायता की थी। 

संन्यासी ने बहन को भी सावधान किया, “बहुत सावधान रहने की ज़रूरत है बेटी! जैसे ही पाखी से बात करने को मुँह खोलोगी, मूर्ति बन जाओगी। तो मुँह मत खोलना, कोशिश करना कि पाखी का एक पर निकाल लो। उसे नाचने वाले पानी के फ़व्वारे के पानी से गीला करके मूर्तियों को उससे छूना।”

जब हरे पाखी ने लड़की को वीर पुरुष वेश में देखा तो उसके कंधे पर आ बैठा और बोला, “तो अब तुम भी आ गईं! तुम्हारा हाल भी अपने भाइयों जैसा ही होगा। देख रही हो ना इन दोनों को? अब तुमको मिलाकर तीन हो जाओगे! पिता लड़ाई के मैदान में। माँ जेल में दीवार के पीछे चिनी हुई, रोज़ अपनी बहनों से मुक्के खाती हुई।”

लड़की चुपचाप सुनती रही। आख़िरकार बोलते-बोलते पाखी थक गया। वह लड़की के कंधे से उड़ने ही वाला था कि लड़की ने लपक कर उस को पकड़ लिया। उसके डैंने में से एक पंख उखाड़ा और उसे फव्वारे के पानी में भिगोकर अपने दोनों भाइयों की को उससे सहला दिया। दोनों भाई ऐसे चैतन्य हुए मानो गहरी नींद से जागे हों। अब इन तीनों ने मिलकर बग़ीचे की सभी मूर्तियों को गीले पंख से सहलाया, देखते-देखते राजकुमारों, योद्धाओं, अमीरों का एक दस्ता ही बग़ीचे में खड़ा हो गया। अनोखा हरा पाखी चुपचाप पेड़ पर जा बैठा और पिंजरे में बंद कर लिया गया। सभी एक दल बनाकर पहाड़ के महल से नीचे चल पड़े और देखते ही देखते महल ग़ायब हो गया। नीचे पहुँचने पर जब तीनों अपने नए साथियों के संग अपने महल में पहुँचे तो राजा के महल से मौसियों ने भी यह नज़ारा देखा। 

नाचते पानी के फव्वारे और संगीत सुनाने वाले पेड़ के बग़ीचे में मानो जलसा हो रहा था, उनका कलेजा धक से रह गया। वहाँ तो छोटा-मोटा आनंद मेला-सा चल रहा था! अब राजा ने पूरे दल को ही अपने महल में भोज के लिए बुलाने का निश्चय किया। 

राजा के भोज में सभी लोग आए। बहन अनोखे हरे पाखी को अपने कंधे पर बिठाकर ले आई थी। जब सभी बैठ गए तब पाखी की आवाज़ गूँजी, “अभी एक की कमी है!” 

भवन में सन्नाटा हो गया

राजा ने ध्यान से सभी परिजनों पर नज़र दौड़ाई कि भला कौन नहीं आया? और उधर पाखी लगातार बोल रहा था, “अभी एक कम है, अभी एक कम है!” 

किसी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि अब किसे बुलाया जाए? सहसा तीनों नौजवान बोले, “महाराज क्या वह दीवारों में चिनी हुई, तहख़ाने की रानी तो नहीं है?” 

राजा ने तुरंत दीवार तुड़वाकर रानी को बाहर निकलवाया। नहला-धुला कर उसे राजसी पोशाक पहनाई गई और वह भी भोज में राजा के साथ बैठी। अब अनोखा हरा पाखी ख़ामोश था। 

उधर मौसियाँ जल भुनकर राख हुई जा रही थीं। सभी लोग अभी खाना शुरू ही करने वाले थे कि हरा पाखी बोल उठा, “जो मैं खाऊँ वही सब खाएँ वरना अपनी जान गँवाए!!” 

सभी ने वही कुछ खाया जिस पर पाखी चोंच चलाता था। सभी सुरक्षित रह गए। हुआ यह था कि ख़ानसामें की पत्नी ने भोजन में ज़हर मिला दिया था! 

खाना ख़त्म होने पर राजा ने कहा, “प्यारे हरे पाखी, अब कोई कथा सुनाओ—सबका मन बहलाओ!” 

अनोखा हरा पाखी उछलकर राजा के सामने जा बैठा। उसने तीनों युवाओं के सर उघाड़ दिए, तीनों की सुनहरी बाल की लटें रोशनी में जगमगाने लगीं, लड़की की बिंदिया भी झिलमिलाने लगी। अनोखे हरे पाखी के रानी की दुख भरी कथा सुनने के बाद राजा ने अपनी तीनों संतानों को गले लगा लिया। रानी से क्षमा माँगी और अपनी सालियों और बुढ़िया कुटनी मीना को बुलाया। फिर हरे पाखी से कहा, “ओ अनोखे हरे पाखी, तुमने सारी कथा सुनाई, अब तुम ही इनकी सज़ा भी सुनाओ!!”

“दोनों दुष्ट मौसियों को कोलतार का कोट पहनाओ, 
 फिर उसमें आग लगाओ, 
 बुढ़िया तो नौकरानी थी
 उसे खिड़की से ले जा लुढ़काओ।”

राजा ने वैसा ही किया जैसा कहा। 
कहा जाता है ना –“जैसा करोगे वैसा भरोगे।” 

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