तुलसी

सरोजिनी पाण्डेय (अंक: 283, सितम्बर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

मूल कहानी: रोज़मारीना; चयन एवं पुनर्कथन: इतालो कैल्विनो; अंग्रेज़ी में अनूदित: जॉर्ज मार्टिन (रोजमेरी); 
पुस्तक का नाम: इटालियन फ़ोकटेल्स; हिन्दी में अनुवाद: ‘तुलसी’-सरोजिनी पाण्डेय

 

बहुत पुरानी बात है, एक राजा और रानी के कोई संतान नहीं थी। एक दिन रानी जब महल के बग़ीचे की सैर कर रही थी तो उन्होंने देखा कि एक तुलसी की बड़ी झाड़ी के नीचे छोटे-छोटे कई तुलसी के पौधे उगे हैं। रानी के दिल से एक आह निकली। वह बोली, “ज़रा देखो तो, एक तुलसी के पौधे के नीचे भी इतने सारे नन्हे-नन्हे पौधे निकल आए हैं, मानो वह बड़ी झाड़ी के बच्चे हों और मैं, एक रानी हूँ और मेरे पास कोई संतान नहीं है।”

ज़्यादा समय नहीं बीता, रानी गर्भवती हो गई। लेकिन यह क्या? उसे ना तो बेटा पैदा हुआ और ना बेटी, पैदा हुआ तो एक छोटा सा तुलसी का पौधा। रानी ने इस पौधे को एक बहुत ख़ूबसूरत गमले में लगा दिया और रोज़ इसे दूध से सींचने लगी। 

कुछ दिनों बाद राजा से मिलने उनका दूर के रिश्ते का भतीजा आया, जो कि संतोपुर का राजा था। उसने जब इस ख़ूबसूरत और नायाब गमले में एक तुलसी का स्वस्थ पौधा देखा तो उसने अपनी चाची से पूछा, “रानी चाची, यह क्या है? किस चीज़ का पौधा है?” 

रानी ने जवाब दिया, “प्यारे दूर के भतीजे, यह मेरी बेटी है। मैं इसे दिन में चार बार दूध से सींचती हूँ। देखो तो कैसा सुंदर पनप रहा है।”

अब उस दूर के भतीजे को यह पौधा इतना पसंद आया कि उसने इसे चुराने की सोची। रात को किसी से बिना बताए वह गमले के साथ ही पौधे को अपने साथ अपने जहाज़ में ले गया। उसने एक दुधारू बकरी ख़रीदी और नाव समुद्र में चला दी। पूरी यात्रा में बकरी का दूध चार बार पौधे में डाला जाता। अपने राज्य संतोपुर पहुँच कर उसने यह पौधा महल के बग़ीचे में लगवा दिया। 

इस नवयुवक राजपुरुष को बाँसुरी बजाने का शौक़ था। वह रोज़ बग़ीचे में जाता और बाँसुरी बजा-बजाकर तुलसी के पौधे के चारों ओर नाचता। जब वह मुरली बजाता हुआ तुलसी की झाड़ी के चारों ओर नाचता तब एक सुंदर युवती, जिसके बल ख़ूब लंबे और सुंदर थे, तुलसी की झाड़ियाँ से निकाल कर आती और इसके साथ नाचती थी। एक दिन राजपुरुष ने उससे पूछा, “तुम कहाँ से आती हो?” 

उसे उत्तर मिला, “इस तुलसी की झाड़ी से!” जब नाच ख़त्म हो जाता तो वह फिर तुलसी की झाड़ी में समा जाती। अब राजपुरुष दरबार के काम से ज्योंही फ़ुर्सत पाता बग़ीचे में आ जाता और बाँसुरी बजाता, तुलसी की झाड़ी से युवती निकलती, दोनों साथ-साथ नाचते, बातें करते, एक दूसरे का हाथ थामे बग़ीचे में चहलक़दमी भी करते। अभी यह प्रेम परवान ही चढ़ रहा था कि राजा के विरुद्ध युद्ध की घोषणा हो गई। राजपुरुष को भी युद्ध के लिए जाना पड़ा जाते-जाते उसने तुलसी के पौधे के पास जाकर कहा, “प्यारी तुलसी, जब तक मैं ना आऊँ तुम इस झाड़ी से बाहर मत निकालना। जब मैं वापस आऊँगा तो एक-एक करके तीन बार बाँसुरी बजाऊँगा तभी तुम बाहर आना।”

इसके बाद उसने एक माली को बुलाया और उससे कहा कि तुलसी के पौधे को रोज़ चार बार दूध से सींचा जाए, साथ ही साथ उसने माली को धमका भी दिया कि अगर उसके वापस लौटने तक तुलसी की झाड़ी को कुछ भी नुक़्सान हुआ तो उसका सिर धड़ से अलग कर दिया जाएगा। 

इस राजपुरुष की तीन बहनें थी। इधर कुछ दिनों से वह इसलिए परेशान रहती थीं कि उनका भाई इस बग़ीचे में बहुत समय लगता है, बहनों के साथ बात करने, घूमने का उसके पास समय भी नहीं होता। 

जब भाई युद्ध पर चला गया तब वे तीनों भाई के कमरे में चली गईं। वहाँ उन्हें भाई की बाँसुरी मिली। बाँसुरी लेकर तीनों बग़ीचे में आ गईं। सबसे पहले बड़ी बहन ने बाँसुरी बजाने की कोशिश की। उससे बाँसुरी ठीक से न बजी। फिर दूसरी बहन ने उसको कुछ देर बजाया। फिर सबसे छोटी बहन को बाँसुरी दी और उसने भी बजायी। जब तुलसी ने यह तीन धुनें सुनी तो उसे लगा राजपुरुष युद्ध से लौट आया है और बाँसुरी पर तीन धुनें बजा कर उसे बुला रहा है। तुलसी झाड़ी से बाहर निकल आई। उसे देखकर बहनें बोलीं, “ओ हो! तो यह बात है! अब हम जान गए कि भाई को बग़ीचे से इतना प्यार क्यों है!” वे तीनों तुलसी से ईर्ष्या में जल उठीं। तीनों ने मिलकर तुलसी को पकड़ा और ख़ूब पीटा जब वह अधमरी हो गई तो उसे वहीं झाड़ियाँ में फेंक कर तीनों महल में चली गईं। 

अगले दिन जब माली तुलसी को सींचने बग़ीचे में पहुँचा तो उसने देखा कि तुलसी की झाड़ी तो मुरझा गई है, पत्तियों का रंग उड़ गया है और वह सूखने की कगार पर है। बेचारा डर गया, ‘हे राम अब क्या होगा! राजा जी लौटेंगे और मेरा सिर धड़ से अलग हो जाएगा!’ वह भागा-भागा अपने घर गया और पत्नी से बोल, “अलविदा मेरी प्यारी, मैं घर छोड़कर जा रहा हूँ। मेरे पीछे तुम तुलसी के पौधे को दूध से सींचती रहना। यदि जीवित बचा तो फिर आऊँगा।”

माली बेचारा जान बचाने के लिए भागता रहा, भागता रहा। आख़िरकार वह एक जंगल में पहुँचा तो रात पड़ने लगी थी। जंगली जानवरों का डर था। वह एक पेड़ पर चढ़ गया। 

आधी रात को पेड़ के नीचे एक अजगर और अजगरी आए। शायद वे वहीं, उसी पेड़ के खोखड़ में रहते थे। रात की ठंड और उनसे से बचने के लिए माली पेड़ की डाली से जा चिपका। उसे अजगरों की फुफकार सुनाई दे रही थी। इसी बीच उसे उनकी बातचीत भी सुनाई दी। अजगरी ने कहा, “कुछ नया सुनाओ ना!”

“नया क्या सुनना चाहती हो?” अजगर बोला

“क्या तुम्हारे पास नया सुनाने को कभी कुछ नहीं रहता?”

“सच बताऊँ तो आज तो मेरे पास नया सुनाने को कुछ है। राजा का ‘तुलसी का पौधा’ सूख गया है।” 

अजगरी ने पूछा, “क्या हुआ?” 

“राजा तो युद्ध पर गए हैं। उनकी बहनों ने बाँसुरी बजाकर तुलसी की झाड़ी से शापित तुलसी को बाहर बुला लिया और फिर उसे पीट-पीट कर अधमरा कर दिया है। यही वजह है कि तुलसी का पौधा मुरझा रहा है।”

“क्या उसे बचाने का कोई उपाय नहीं है?” 

“उपाय तो है!”

“तो बताओ ना!”

“क्या बताऊँ, यह उपाय हम दोनों के लिए घातक है! कोई सुन लेगा तो ग़ज़ब हो जाएगा, शायद झड़ियों को भी आँखें और कान हों?” 

अजगरी बोली, “अब सुनाओ भी, इस आधी रात को इस घने जंगल में भला कौन सुन रहा है?”

“ठीक है तो तुम्हें यह भेद बताता हूँ। अगर कोई मेरे फन का विष निकाल ले और तुम्हारा ख़ून निकाल ले और दोनों को मिलाकर इस लेप से तुलसी के पौधे को यह लेप लगा दे तो तुलसी का पौधा तो पूरा मर जाएगा लेकिन वह लड़की सही सलामत स्वस्थ होकर बच जाएगी।”

पेड़ की डाली से चिपका हुआ ऊपर बैठा माली सब सुन रहा था। सब सुनकर उसका तो कलेजा मुँह को आ गया। जैसे ही अजगर और अजगरी की फुफकार हल्की हुई, लगा वे सो गए, तो माली ऊपर से उतरा उसने उनके सिर पर दो-दो मुक्के मार कर दोनों को स्वर्ग पहुँचा दिया और फिर नाग अजगर के विष की थैली और अजगरी का ख़ून लेकर घर की तरफ़ तेज क़दमों से चल पड़ा। घर पहुँच कर उसने अपनी पत्नी से कहा, “उठो, जल्दी करो! देखो मैं दवा लाया हूँ।”

उसने एक बरतन में अजगरी का ख़ून और अजगर का विष मिलाया और तुलसी के पौधे की एक-एक पत्ती पर लगा दिया। जैसे-जैसे यह विष मिला ख़ून झाड़ी पर लगता जाता था वह सूखती जाती थी। धीरे-धीरे उस झाड़ी के नीचे घायल तुलसी नाम वाली लड़की ज़मीन पर लेटी हुई दिखाई दी। माली उसे घर के अंदर ले आया और साफ़ बिस्तर पर सुला कर गर्म दूध पीने को दिया। 

लड़ाई ख़त्म हुई। राजा घर वापस आए और अपनी बाँसुरी लेकर सीधे बग़ीचे में जा पहुँचे। वहाँ उन्होंने तीन धुनें बजायीं। कोई बाहर ना आया। फिर तीन धुनें और बजाईं। लेकिन कुछ ना हुआ। अब वह दौड़कर तुलसी की झाड़ी के पास गया और उसने सूखी हुई झाड़ी देखी, जिस पर एक भी पत्ता नहीं था। 

वह ग़ुस्से से पागल होकर माली के घर की दौड़ा, “दुष्ट माली, अब तुम्हारी जान कोई नहीं बचा सकता!”

“मालिक, शांत हो जाइए-शांत हो जाइए और चुपचाप घर के अंदर चलिए, मैं आपको कुछ दिखाऊँगा।”

“अब तुम क्या तो मुझे दिखाओगे और क्या तो मैं देखूँगा, अब तो तुम्हारा सिर धरती पर लोटेगा!”

“आप भीतर तो चलिए उसके बाद आपकी जो इच्छा हो करिएगा।”

राजा घर के भीतर पहुँचा। वहाँ उसने देखा बिस्तर पर तुलसी लेटी है। अभी उसकी कमज़ोरी गई नहीं है। तुलसी ने आँसू भरी आँखों से राजपुरुष को देखा और कहा, “तुम्हारी बहनों ने तो मुझे मार ही डाला था! लेकिन इस बहादुर माली ने मेरा जीवन बचाया है!”

तुलसी को सही सलामत पाकर राजपुरुष की ख़ुशी का ठिकाना ना रहा। उसका मन माली के एहसान से भर उठा। जब तुलसी पूरी स्वस्थ हो गई तब राजपुरुष ने उससे विवाह करने का प्रस्ताव रखा। उसने अपने चाचा-चाची जी को पत्र लिखा, “आपका जो तुलसी का पौधा मैं चुरा लाया था, वह वास्तव में आपकी बेटी है और मैं उससे विवाह करने की सोच रहा हूँ। आप उसमें सादर आमंत्रित हैं।”

पत्र पाकर, तुलसी के पौधे की चोरी के बाद से गहरे दुख में डूबे राजा-रानी तो मानो जी उठे। उन्हें उसे पौधे के मिलने की कोई आशा नहीं रह गई थी। जब वे संताेपुर के परकोटे के द्वार पर पहुँचे तो उन्हें तोपों की सलामी दी गई। 

राजपुरुष का विवाह तुलसी से हो गया। संतोपुर में ख़ुशियाँ छा गई और सारी प्रजा ने कई दिनों तक दावत उड़ाई। 

राजघराने के विवाह से जनता को
मिलता ही और क्या है! 
करने को कई दिन तक
धूमधाम की बातें, 
उड़ानें को एकाध 
लम्बी-चौड़ी दावतें। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

यात्रा वृत्तांत
सांस्कृतिक आलेख
अनूदित लोक कथा
अनूदित कविता
कविता
ललित निबन्ध
सामाजिक आलेख
दोहे
चिन्तन
सांस्कृतिक कथा
आप-बीती
यात्रा-संस्मरण
काम की बात
स्मृति लेख
लोक कथा
लघुकथा
कविता-ताँका
ऐतिहासिक
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में