करतार

सरोजिनी पाण्डेय (अंक: 272, मार्च प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

मूल कहानी: केनेलोरा; चयन एवं पुनर्कथन: इतालो कैल्विनो; अंग्रेज़ी में अनूदित: जॉर्ज मार्टिन (कैनेलोरा); पुस्तक का नाम: इटालियन फ़ोकटेल्स; हिन्दी में अनुवाद: ‘करतार’ सरोजिनी पाण्डेय

 

एक बार एक निस्संतान राजा ने मुनादी करवा दी, “जो कोई भी राजा-रानी को संतान पाने का उपाय बता देगा, उसे राजा के बाद देश का सबसे धनवान आदमी बना दिया जाएगा। लेकिन जिसका बताया उपाय ग़लत रहा, उसका सिर धड़ से अलग कर दिया जाएगा।”

इस मुनादी को सुन बहुतों ने अपना भाग्य आज़माने की कोशिश की लेकिन सभी को जान से हाथ धोना पड़ा। अंत में एक निर्धन बूढ़ा, जिसकी लंबी दाढ़ी थी, चिथड़ों में लिपटा राजदरबार में आया और बोला, “महाराज, समुद्र से एक ड्रैगन पकड़वाइए और उसका दिल निकाल कर एक युवती से रंधवाइए। पकते हुए ड्रैगन के दिल की गंध सूँघकर वह युवती गर्भधारण कर लेगी। जब युवती मांस पका लेगी तो रानी को उसे खाना होगा। मांस को खाकर रानी भी गर्भवती हो जाएगी और दोनों बच्चों का जन्म एक ही समय में होगा।”

राजा को यह सब बहुत अजीब लगा लेकिन संतान की चाह इतनी बलवती थी कि उन्होंने सारे विधि-विधान पूरे किए। समुद्र से ड्रैगन पकड़वाया, गाँव की एक सुंदरी युवती को उसके दिल को पकाने का काम दिया गया। उसने व्यंजन के पकाने की गंध ज्यों ही सूँघी, वह पेट से हो गई। मांस खाने के बाद रानी ने भी गर्भधारण कर लिया। समय बीता, रानी और उस रसोई पकाने वाली ने एक दिन, एक ही समय में दो शिशुओं को जन्म दिया। दोनों हू-ब-हू एक जैसे दिखते थे, मानों जुड़वा भाई हों। उसी दिन एक और अजूबा हुआ, पलंग ने एक छोटा खटोला जना, बड़ी अलमारी ने एक छोटी अलमारी को जन्म दिया तिपाई ने एक छोटी तिपाई पैदा कर दी और बड़ी बंदूक ने एक छोटी बंदूक भी। रानी के बेटे का नाम रखा गया इंदर, रसोई पकाने वाली का बेटा करतार कहलाया। 

वे दोनों बच्चे जुड़वाँ भाइयों की तरह बड़े होने लगे। शुरू में तो रानी दोनों को एक जैसा प्यार देती रही लेकिन कुछ ही समय बाद यह बात उसे दुखी करने लगी कि उस रसोईदारिन का बेटा भी राजकुमार की तरह ही पल रहा है। उसे यह डर भी सताता कि कहीं ऐसा ना हो कि उस गाँव की युवती का बेटा करतार, इंदर से अधिक बुद्धिमान निकले और राज्य पर अपना हक़ समझे। अब उसने इंदर को समझाना शुरू किया कि करतार उसका भाई नहीं बल्कि भोजन बनाने वाली का बेटा है, इंदर को करतार से दूरी बनाकर रखनी चाहिए, आख़िर है तो वह नौकरानी का ही बेटा। लेकिन इंदर इस बात पर कोई ध्यान न देता, दोनों लड़के पहले की तरह ही प्रेम भाव से रहते रहे। अब रानी ने भी करतार के साथ सौतेला व्यवहार करना शुरू कर दिया। लेकिन इंदर अब उसका बचाव करने लगा और उसको और अधिक प्यार करने लगा। यह सब देखकर रानी ग़ुस्से में रहने लगी। 

एक दिन दोनों लड़के खेलने के लिए मिट्टी की गोलियाँ बनाकर आग में तपा रहे थे। इंदर थोड़ी देर के लिए उठकर कहीं चला गया, रानी आग के पास गई और एक गर्म तपती हुई गोली करतार के चेहरे पर फेंकी। गोली उसकी भौंह को छूती हुई निकल गयी और माथे पर जले का निशान उभर आया। रानी अभी दूसरी गोली चिमटे से उठने ही वाली थी कि इंदर आ गया। रानी इस तरह वहाँ से हट गई मानो कुछ हुआ ही ना हो। 

करतार के घाव में दर्द हो रहा था लेकिन उसने अपना घाव बालों से ढक लिया और इंदर को इसकी भनक भी न लगने दी, चुपचाप गोलियाँ बनाता रहा। 

कुछ दिनों बाद उसने कहा, “इंदर भाई मैं घर छोड़कर अपना भाग्य परखने के लिए परदेस जाना चाहता हूँ।”

इंदर हैरान होते हुए बोला, “क्यों भाई? क्या तुम यहाँ ख़ुश नहीं हो?” 

आँखों में आँसू भर करतार ने माथे से बाल हटाकर इंदर को दिखाते हुए कहा, “क़िस्मत को यह मंज़ूर नहीं कि हम दोनों यहाँ साथ-साथ रहें।”

इंदर ने करतार को रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन सब बेकार। 

करतार ने बड़ी बंदूक की जनी छोटी बंदूक ली, जो ड्रैगन का दिल पकाने के समय पैदा हुई थी, बाहर निकाल कर वह इंदर से बोला, “तुमसे अलग होते हुए बहुत दुख हो रहा है। आओ, मैं जाते-जाते तुम्हें अपनी एक निशानी दूँगा।”

ऐसा कहकर उसने अपनी तलवार ज़मीन में गाड़ी और फिर बाहर खींच ली, वहाँ पानी का एक सोता फूट पड़ा। उसने दूसरी बार फिर तलवार ज़मीन में घोंप कर निकाली और वहाँ एक सावनी का पेड़ निकल आया। 

“जब तुम देखो कि सोते का पानी गंदला हो गया है और सावनी का पेड़ सूख गया है,” करतार बोल रहा था, “तब समझ लेना कि मुझ पर मुसीबत आई है।” उसके बाद दोनों आपस में गले मिले और आँखों में आँसू लिए करतार विदा हो गया। जाते हुए वह घोड़े पर सवार था, कंधे पर बंदूक थी और हाथों में अपने कुत्ते की ज़ंजीर पकड़े था। 

कुछ दूर जाने के बाद वह एक चौराहे पर आ पहुँचा। वहाँ से एक सड़क तो जंगल की तरफ़ जा रही थी, दूसरी देश के दूसरे हिस्सों में। बीच चौराहे पर एक फुलवारी थी जिसमें दो माली आपस में लड़ रहे थे। वे एक दूसरे पर मुक्के-लातें चला रहे थे। करतार ने फुलवारी में जाकर उनके झगड़े का कारण पूछा। 
“यहाँ काम करते हुए मुझे दो सिक्के मिले,” एक माली ने कहा, “अब मेरा यह साथी उनमें से एक सिक्का माँग रहा है क्योंकि वह भी यहाँ मेरे साथ काम कर रहा था, जबकि सिक्के उसे नहीं मुझे मिले हैं। सिक्कों को पहले मैंने देखा था।”

दूसरा माली बोला, “सिक्के पहले मैंने देख थे या शायद हम दोनों ने एक साथ ही सिक्के देखे हों।”

करतार ने अपनी जेब से चार सिक्के निकाले और दोनों को दो-दो सिक्के दे दिए। मालियों का झगड़ा बंद हो गया। वे करतार के आगे हाथ जोड़कर खड़े हो गए। करतार जंगल वाले रास्ते पर आगे बढ़ गया लेकिन तभी जिस माली के पास चार सिक्के हो गए थे, वह चिल्लाया, “नौजवान, जिधर तुम जा रहे हो उधर से तुम जंगल के बाहर कभी नहीं निकल पाओगे। अच्छा होगा कि तुम दूसरी राह पकड़ लो।”

करतार ने तुरंत अपना रास्ता बदल लिया और माली को धन्यवाद कहा। 

चलते-चलते जब वह बहुत दूर निकल आया तो उसने देखा कि कुछ नटखट लड़के एक साँप को मार-मार कर परेशान कर रहे हैं, यहाँ तक कि उन्होंने उस साँप की पूँछ की नोक काट डाली थी और पूँछ के टुकड़े का तड़पना और रेंगना देखकर ख़ुश हो रहे थे। करतार ने उन्हें डाँट कर ऐसा करने से रोका। बेचारा पुँछकट्टा साँप जान बचाकर रेंगता हुआ कहीं चला गया। करतार अब एक बहुत घने जंगल में जा पहुँचा था, वहाँ बहुत सर्दी थी, चारों ओर से जंगली जानवरों की आवाज़ रह-रहकर सुनाई दे रही थीं। बेचारे करतार का तो कलेजा ही काँपने लगा। अचानक न जाने कहाँ से हाथ में दीपक लिए एक युवती प्रकट हुई और करतार का हाथ पकड़ कर उसे अपने संग ले चली। 

“डरे हुए जवान,” वह बोली, “मेरे साथ मेरे घर चलो, वहाँ तुम्हें गर्माहट और आराम मिलेगा।” 

करतार को लगा कि वह सपना देख रहा है। उसके मुँह से एक शब्द भी न निकला, वह मंत्र-मुग्ध-सा उस युवती के पीछे चल पड़ा। घर के अंदर पहुँचकर वह बोली, “तुम्हें याद है? कुछ नटखट लड़कों से तुमने एक साँप को बचाया था। मैं वही साँप हूँ यह देखो मेरी छोटी अंगुली, इसकी एक पोर कटी हुई है। जब उन दुष्ट लड़कों ने मेरी दुम काटी थी तब यह कट गई। अब मैंने भी तुम्हारी जान उसी तरह बचा दी है जैसे तुमने मेरी बचायी थी!”

करतार तो ख़ुशी से उछल पड़ा! अब उस परी ने उसके आगे अंगीठी लाकर रखी, खाना लायी, जो दोनों ने साथ मिलकर खाया। रात हो गयी थी, परी करतार को बिस्तर देकर ख़ुद भी सोने चली गई। अगली सुबह करतार को विदा करते हुए वह बोली, “जाओ प्यारे नौजवान, अभी तुम्हारे भाग्य में और दुख झेलना लिखा है, लेकिन एक दिन ऐसा भी आएगा जब हम दोनों साथ-साथ ख़ुशी से रहेंगे।”

करतार को उसकी बात पूरी तरह समझ में नहीं आयी। वह अपनी आगे की यात्रा पर निकल पड़ा। युवती से विदा लेते समय उसकी आँखों में आँसू थे। 

आगे बढ़ते-बढ़ते जंगल में, पेड़ों के झुरमुट के बीच, उसे एक हिरनी दिखाई दी जिसके सींग सुनहले थे। करतार ने अपनी बंदूक से निशाना साधा लेकिन हिरनी भाग गई। करतार हिरनी के पीछे भागा। अभी वह हिरनी का पीछा कर ही रहा था कि भयंकर तूफ़ान आ गया, घनघोर वर्षा होने लगी, ओले पड़ने लगे। करतार ने एक गुफा में शरण ली और तूफ़ान के थमने का इंतज़ार करने लगा। ऐसे समय उसे एक पतली आवाज़ बाहर से आती सुनाई दी, “ओ भले मानुष, क्या तुम दया करके इस तूफ़ान से बचने के लिए मुझे भी गुफा में आने दोगे?” 

करतार ने देखा बाहर एक साँप था। उसने सोचा कि साँप की मदद करने से तो उसका भला ही हुआ था इसलिए उसने कहा, “क्यों नहीं? तुम भीतर आ जाओ।”

साँप बोला, “मुझे तुम्हारे कुत्ते से डर लगता है, वह मुझे कटेगा, क्या तुम उसे बाँध दोगे?” करतार ने तुरंत कुत्ते को ज़ंजीर से बाँध दिया। 

“लेकिन तुम्हारा घोड़ा अपने सुमों से मुझे कुचल सकता है!” साँप ने फिर कहा! 

अब करतार ने घोड़े के आगे और पीछे के दो-दो पैर साथ बाँध दिए। 

“तुम्हारी बंदूक भरी हुई है, वह ग़लती से चल गई तो मेरा क्या होगा?” साँप ने फिर अपना डर जताया। दयालु करतार ने बंदूक की गोलियाँ निकाल कर साँप का डर ख़त्म किया। 

“ठीक है, अब तो तुम बेखौफ़ हो कर अंदर आ जाओ!” साँप भीतर घुस आया और आते ही एक दैत्य में बदल गया। बेचारा करतार बिना कुत्ते, बिना गोली की बंदूक और बँधे पैरों वाले घोड़े के कारण असहाय था। दैत्य ने एक हाथ से करतार को सिर के बालों से पकड़ा और दूसरे हाथ से एक क़ब्र का मुँह खोल, उसे उसी क़ब्र में ज़िन्दा ही दफ़न कर दिया। 

उधर राजा के महल में बेचारा इंदर बेचैन रहता था। हर दिन वह बग़ीचे में जाता और पानी के सोते और सावनी के पेड़ को देख, भाई की याद करके रोता। तभी एक दिन उसने देखा कि सावनी का पेड़ मुरझा रहा है और सोते से मटमैला पानी निकल रहा है। 

“हे भगवान यह क्या हुआ?” इंदर घबराया, “लगता है मेरे भाई करतार पर कोई विपदा आयी है। मैं तुरंत इसकी खोज में जाऊँगा, शायद कहीं वह मिल जाए और मैं उसकी मदद कर पाऊँ।”

राजा और रानी इंदर को रोक नहीं पाए। उसने अपनी बंदूक उठायी, घोड़े पर सवार हुआ और कुत्ते को अपने आगे दौड़ाता करतार की खोज में निकल पड़ा। 

चलते-चलते इंदर भी उसी चौराहे पर जा पहुँचा (यह लोककथा है यहाँ तो ऐसा होना ही था!), जहाँ करतार ने चार सिक्के देकर दो मालियों के बीच सुलह-सफ़ाई करवाई थी। इंदर को देखते ही वह माली, जिसे चार सिक्के मिले थे, तेज़ी से उसके पास आया और बोला, “आप यहाँ फिर? क्या आपको याद है कि कभी आपने मुझे चार सिक्के दिए थे और मैंने आपको बताया था कि कौन सी राह ख़तरनाक है? याद आया?” 

“बिल्कुल याद है!” इंदर ने कहा। उसे ख़ुशी हुई कि उसे ख़तरनाक रास्ते की बात मालूम हो गई। उसने माली को चार सिक्के और दे दिए और आसान राह पर चल पड़ा। 

वह उस जगह भी पहुँच गया जहाँ करतार को कटी छिगुंली (छोटी उँगली) वाली परी मिली थी। इंदर को देखते ही कटी उँगली वाली सुंदर परी बोली, “मेरे पति के प्यारे मित्र आपका स्वागत है।”

“लेकिन आप हैं कौन?” इंदर हैरानी से बोला। 

“मैं वह परी हूँ जिसका ब्याह करतार से होना है।”

“तब तो तुम मुझे जल्दी बताओ कि करतार ज़िन्दा तो है? अगर ज़िन्दा है तो किस हाल में और कहाँ है?” 

परी की आँखों में आँसू आ गए, बोली, “जल्दी करो क्योंकि बेचारा करतार बड़े ख़तरे में है। वह ज़िन्दा ही एक क़ब्र में बंद है। हाँ, बस तुम मायावी साँप से सावधान रहना।” इतना कहकर परी ग़ायब हो गई। इंदर हिम्मत से आगे बढ़ा और घने जंगल में जा पहुँचा। वहाँ उसने भी सुनहरी सींग वाली हिरनी का पीछा किया, तूफ़ान में भी फँसा और गुफा में बचाव के लिए घुस भी गया। 

और जैसा कि होना ही था, साँप भी रेंगता हुआ अंदर आने के लिए पूछने लगा। इंदर ने उसे अंदर आने के लिए कहा। फिर जैसा कि साँप चाहता था उसने कुत्ते और घोड़े को तो बाँध दिया लेकिन जब बंदूक को ख़ाली करने की बात आई तब इंदर को परी की चेतावनी याद आ गई कि साँप मायावी हो सकता है। वह बोला, “ठीक है तुम यही चाहते हो न कि मैं बंदूक की गोलियाँ निकाल दूँ? तो यही सही!”

इतना कहते हुए उसने निशान साधा और साँप पर दो गोलियाँ धाँए-धाँए चला दीं। देखता क्या है कि एक दैत्य उसके पैरों के पास मरा पड़ा है और उसके सिर के दो घावों से ख़ून के फव्वारे छूट रहे हैं। तभी उसने ज़मीन के नीचे से आती आवाज़ें भी सुनीं, “बचाओ, बचाओ, ओ धर्मात्मा! हमें बचाओ” इंदर ने क़ब्र के ऊपर का पत्थर हटाया तो करतार बाहर निकाला। 

उसके पीछे राजकुमारों, रईसों की पूरी जमात भी निकली जो न जाने कब से ज़मीन के अंदर फेंकी गई सूखी रोटी और पानी पीकर किसी तरह ज़िन्दा थे। 

करतार और इंदर एक दूसरे से लिपट गए। उसके बाद इन दोनों भाइयों के पीछे क़ैद किए गए धनिकों का क़ाफ़िला भी चल पड़ा। 

सबसे पहले वे कटी उँगली वाली परी की तलाश कर रहे थे। थोड़ा चलने पर ही वह परी उन्हें अपनी और आती दिखाई दी, उसके पीछे और अनेक सुंदर परियाँ चली आ रही थीं, लेकिन उस कटी उँगली वाली की बराबरी की कोई न थी! 

जब वे पास आए तो परी ने करतार का हाथ पकड़ कर उसे घोड़े से उतारा और बोली, “अब तुम्हारे दुख के दिन पूरे हुए। तुमने मेरे प्राण बचाए थे। मैं तुमसे ही शादी करूँगी और सारी ज़िन्दगी तुम्हारे साथ रहूँगी।”

कटी उँगली वाली परी के साथ जो और परियों आई थीं उन्होंने भी दूसरे राजकुमारों और रईसों को अपनी पसंद से चुन लिया। जिनके जोड़े बन गए, वे जोड़े और जो दूसरे लोग थे वह सब इंदर का एहसान मानते अपने-अपने शहर और देश को चले गए। 

इसके आगे और क्या सुनेंगे?

क़िस्सा यहीं ख़त्म 
पैसा हुआ हज़म! 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

दोहे
अनूदित लोक कथा
चिन्तन
ललित निबन्ध
कविता
सांस्कृतिक कथा
आप-बीती
सांस्कृतिक आलेख
यात्रा-संस्मरण
काम की बात
यात्रा वृत्तांत
स्मृति लेख
लोक कथा
लघुकथा
कविता-ताँका
सामाजिक आलेख
ऐतिहासिक
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में