बहिश्त के अंगूर

01-07-2023

बहिश्त के अंगूर

सरोजिनी पाण्डेय (अंक: 232, जुलाई प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

मूल कहानी: ल'युवा सलमान्ना; चयन एवं पुनर्कथन: इतालो कैल्विनो
अंग्रेज़ी में अनूदित: जॉर्ज मार्टिन (द सलमाना ग्रेप्स); पुस्तक का नाम: इटालियन फ़ोकटेल्स
हिन्दी में अनुवाद: सरोजिनी पाण्डेय

 

बड़े पुराने जमाने की बात है, एक राजा था, जिसकी बेटी विवाह योग्य आयु की थी। राजकुमारी इतनी सुंदर थी कि उसकी सुंदरता के चर्चे दूर-दूर तक फैले थे।

उसी राज्य के पड़ोसी राजा के तीन बेटे थे और वे भी सयाने थे। तीनों ने रूपसी राजकुमारी की सुंदरता के क़िस्से सुने थे और तीनों ही उससे विवाह करने के इच्छुक थे। एक दिन हिम्मत करके वे राजकुमारी के पिता के सामने जा पहुँचे और अपनी-अपनी इच्छा प्रकट की और सुन्दरी राजा से कहा कि उन तीनों में से किसी एक को अपनी पुत्री के वर के रूप में चुन लें। राजकुमारी के पिता ने समझदारी से काम लेते हुए कहा, “जहाँ तक मेरे विचार की बात है, मेरे लिए तुम तीनों ही बराबर हो। मैं तुम में से किसी को भी दो से श्रेष्ठ नहीं मान सकता। मैं तुम्हारे बीच किसी प्रकार का मनमुटाव नहीं होने देना चाहता। मेरी राय है कि तुम तीनों छह महीने का समय ले लो और दुनिया की सैर को निकल जाओ। छह महीने के बाद जो राजकुमारी के लिए सबसे अच्छा उपहार लेकर आएगा, वही मेरा दामाद बनेगा।” इस बात पर तीनों शहजादे राज़ी हो गए। 

वे एक साथ ही राज्य से बाहर निकले और पहले चौराहे पर पहुँचकर तीनों अलग-अलग दिशा में जाने के लिए तैयार हो गए। यह तय किया गया कि छह महीने के बाद सभी इसी चौराहे के पास की सराय में वापस आकर मिलेंगे। 

सबसे बड़ा राजकुमार पाँच महीनों तक शहर-शहर, गाँव-गाँव भटकता रहा पर उसे ऐसी कोई चीज़ ना मिल पाई, जिससे वह तोहफ़े की तरह अपने साथ ले जा पाता। तभी छठे महीने की एक सुबह उसको एक फेरीवाले की आवाज़ सुनाई दी, “क़ालीन ले लो, बहुत उम्दा क़ालीन, क़ालीन ले लो!” क़ालीनवाले की आवाज़ सुनकर राजकुमार ने खिड़की के बाहर झाँका, उस पर नज़र पड़ते ही हाँक लगाने वाले ने पूछा, “क्या आप यह ख़ूबसूरत क़ालीन ख़रीदेंगे?” 

“नहीं, नहीं मुझे किसी क़ालीन की ज़रूरत नहीं है। हमारे महल में तो रसोई घर तक में भी क़ालीन बिछे हैं।” 

इस पर क़ालीन वाला बोला, “आपकी बात तो ठीक है पर आपके घर में जादुई क़ालीन तो नहीं होगा!” 

अब राजकुमार की उत्सुकता जागी, “ऐसा क्या ख़ास है इस क़ालीन में?” 

“आप जब इस क़ालीन पर क़दम रखते हैं तो यह उड़कर आपको आपकी मनचाही जगह पहुँचा सकता है, चाहे वह बहुत दूर ही क्यों न हो।”

यह सुनकर राजकुमार फूला न समाया। यह तो एकदम नायाब चीज़ है! इसका दाम तो बताइए?” 

“एक सौ सोने के सिक्के!”

“ठीक है!” कहते हुए राजकुमार ने सिक्के खनाखन गिन दिए। 

राजकुमार ने जैसे ही क़ालीन पर अपने पाँव रखे, वह जंगल, पहाड़, नदियाँ पार करती उसी सराय में जा पहुँचा जहाँ तीनों भाइयों ने मिलने का निश्चय किया था। अभी दोनों छोटे भाई वहाँ पहुँचे थे। 

मँझला भाई भी लगभग छह महीने इधर-उधर भटका। आसपास के कई देशों में ख़ूब चौकन्ना हो कर घूमता रहा, पर हाय रे भाग्य! समय पूरा होने वाला था और उसे अब तक मन मुताबिक़ कोई ऐसी चीज़ नहीं मिल पाई थी जिसे उपहार में दे कर वह राजकुमारी से विवाह करने का मौक़ा पा लेता। 

तभी एक दिन उसे एक आदमी मिला जिसके कंधे पर एक दूरबीन लटकी थी। उसने मँझले राजकुमार से पूछ भी लिया, “ऐ नौजवान, क्या एक अनोखी दूरबीन ख़रीदना चाहोगे?” 

मँझले राजकुमार ने सामने वाले को ऊपर से नीचे तक देखा और बोला, “मैं शिकार का शौक़ीन हूँ, मेरे पास अच्छी से अच्छी दूरबीन है। मुझे माफ़ करो।”

इस पर दूरबीन वाले ने फिर कहा, “मैं शर्त लगा कर कहता हूँँ कि ऐसी अनोखी जादुई दूरबीन तुमने देखी तो क्या, सुनी भी न होगी।” 

“अच्छा, भला इसमें कौन-सा अनोखापन है?” 

“इस दूरबीन से तुम सौ मील दूर तक देख सकते हो, यहाँ तक कि दीवारों के आर-पार भी!”

अब मँझला राजकुमार चहक कर बोला, “अरे वाह! भला इस दूरबीन का दाम क्या लोगे?” 

“सौ सोने के सिक्के, न एक कम न एक ज़्यादा।”

और मँझले ने सौ मोहरें। देकर वह दूरबीन तुरंत ख़रीद ली। 

दूरबीन लेकर दूसरा राजकुमार भी नियत सराय में पहुँच गया। अब दो भाई मिलकर सबसे छोटे की राह देखने लगे। 

इधर सबसे छोटे राजकुमार को छह महीने की मियाद के आख़िरी दिन तक भी कोई अनुपम उपहार न मिल सका था। वह टूटे मन से सराय की ओर चला जा रहा था। तभी उसे एक फल बेचने वाला मिला जो सिर पर टोकरी में फल रखे आवाज़ लगा रहा था, “अंगूर ले लो अंगूर, बहिश्त के अंगूर, अलबेले-अनोखे बहिश्त के अंगूर!”

छोटे राजकुमार ने कभी बहिश्त के अंगूरों का नाम तक नहीं सुना था, देखना, छूना और खाना तो दूर की बात थी। 

उसने फल वाले से पूछा, “भैया, यह कहाँ के अंगूर बेच रहे हो तुम?” 

फल वाला बोला, “इनको बहिश्त के अंगूर ही कहा जाता है। यह इस संसार के सबसे अच्छे अंगूर है। इसके अलावा इनमें एक और बहुत बड़ी ख़ूबी है।”

राजकुमार ने पूछा, “ऐसी कौन सी ख़ूबी है इन अंगूरों में?” 

फलवाला बोला, “अगर इस अंगूर का एक दाना भी किसी मरते हुए आदमी के मुँह में डाल दिया जाए तो वह बच सकता है!”

राजकुमार हैरान हुआ, “तुम भी क्या बात करते हो जी! फिर भी चलो मैं ले ही लेता हूँ। ज़रा भाव तो बताओ!”

“यह अंगूर वज़न से नहीं, नग के हिसाब से बेचे जाते हैं। मैं आपको सीधा दाम बताऊँगा, सौ सोने के सिक्के का एक अंगूर का दाना! आगे कोई मोलभाव नहीं।” 

राजकुमार ने देखा कि उसके पास मुश्किल से तीन सौ मुहरें ही बची थीं। सारे पैसे देकर उसने तीन अंगूर के दाने ख़रीद लिए, उन्हें बड़े जतन से रूई में लपेटकर एक डिबिया में रख लिया और अपने भाइयों से मिलने के लिए सराय की ओर चल पड़ा। सराय में तीनों भाई प्रेम से एक दूसरे के गले मिले। कुशलक्षेम के बाद सब ने एक दूसरे के उपहारों के बारे में जानना चाहा। 

सबसे बड़ा बोला, “मैं तो बस एक क़ालीन लाया हूँ।”

मँझला बोला, “मैंने एक दूरबीन ख़रीदी है, और कुछ नहीं।” 

सबसे छोटे ने कहा, “मैं तो नन्हें-नन्हें फल ही लेकर चल रहा हूँ।”

थोड़ी देर बाद एक भाई बोला, “घर छोड़े बहुत दिन हो गए। वहाँ पता नहीं सब कैसे होंगे! बड़ी याद आ रही है सबकी!”

तब मँझले ने अपनी दूरबीन का रुख़ अपने राज्य की राजधानी की ओर कर दिया। उसने देखा कि सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा है वह मन ही मन बहुत ख़ुश हो गया। अब उसने चुपके से दूरबीन की नली उस और घुमा दी जहाँ रूपसी राजकुमारी रहती थी। उधर नज़र जाते ही वह चीख पड़ा। उसका चीखना सुनकर दोनों भाई घबरा गए और उसके पास बढ़ आये, “क्या बात है? क्या हुआ?” दोनों ने पूछा। 

“मैं उस राजकुमारी का महल देख पा रहा हूँ जिससे हम तीनों शादी करना चाहते हैं। वहाँ सड़कों पर गाड़ियाँ भरी हैं, लोग रो रहे हैं और महल के अंदर तो बुरा हाल है। राजकुमारी के पलंग के पास डॉक्टरों, हकीमों का जमघट है। यहाँ तक कि पुरोहित भी वहाँ दिखाई पड़ रहा है। राजकुमारी पलंग में कमज़ोर, दुबली, पीली, बेसुध पड़ी है, ऐसा लगता है कि मौत की छाया उस पर पड़ गई है! भाइयो जल्दी करो, ऐसा लगता है वह बचेगी नहीं!”

सबसे छोटा बोला, “वहाँ पहुँचना नामुमकिन है। वह यहाँ से कम से कम पचास मील दूर है।”

“घबराओ मत,” सबसे बड़ा भाई बोला, “हम वहाँ ज़रूर समय पर पहुँच जाएँगे। तुम दोनों भी मेरी क़ालीन पर आ जाओ!” 

तीनों भाई क़ालीन पर चढ़े और क़ालीन उड़ चला हवा में। 

और फिर देखते ही देखते राजकुमारी के कमरे की खिड़की से होता हुआ, उसके पलंग के पास जा उतरा। वहाँ वह ऐसा ही लग रहा था मानो एकदम साधारण क़ालीन है और यह तीनों भाई उस पर खड़े हैं। 

सबसे छोटे राजकुमार ने अब तक अपनी डिबिया से अंगूर निकाल कर उनके ऊपर से रूई भी हटा दी थी। उसने जल्दी से बहिश्त के अंगूर का एक दाना राजकुमारी के मुँह में डाला। अंगूर जैसे ही उसके गले से नीचे उतरा राजकुमारी ने आँखें खोल दीं। तभी राजकुमार ने उसके मुँह में दूसरा अंगूर का दाना रख दिया। उसके भीतर जाते ही राजकुमारी के चेहरे की रंगत लौट आई, अब छोटे राजकुमार ने बिना देर किए तीसरा अंगूर का दाना भी उसे खिला दिया। और अब वह पलंग में उठ कर बैठ गई। दासियों ने उसे घेर लिया और उसे सजाने-सँवारने लगीं। राजकुमारी एकदम तंदुरुस्त हो गई थी। 

राजा और रानी तो मानो जी उठे। सारे नगर में ख़ुशी की लहर दौड़ गई। 

सहसा सबसे छोटा राजकुमार बोल उठा, “तो मैं जीत गया! अब राजकुमारी मेरी ही दुलहन बनेगी, अगर मैं अंगूर न खिलाता तो वह अब तक मर चुकी होती।”

“तुम चुप रहो, “मँझला राजकुमार बोल उठा, “अगर मैं दूरबीन से न देखता तो राजकुमारी की बीमारी का पता ही नहीं चलता, इसलिए राजकुमारी तो मेरी ही दुलहन बनेगी!”

“शांत हो जाओ भाइयो! “अब बड़ा राजकुमार आगे बढ़ कर बोला, अगर मेरा क़ालीन ना होता तो दूरबीन और बहिश्त के अंगूर क्या कमाल कर लेते? अगर हम यहाँ पहुँच ही न पाते तो क्या राजकुमारी बच जाती? इसलिए राजकुमारी को ब्याहने का हक़ तो सिर्फ़ मेरा है।”

राजकुमारी के पिता ने देखा कि भाइयों के बीच होनेवाले जिस मनमुटाव को बचाने के लिए उसने उपहार की शर्त रखी थी, उसी मनमुटाव के कारण तीनों भाई एक दूसरे के की जान लेने पर उतारू थे। इस संकट से बचने के लिए राजा ने अपनी बेटी का विवाह उस युवक से घोषित कर दिया जो राजकुमारी से प्रेम करता था और राजा से विवाह के लिए निवेदन भी कर चुका था। 

तीनों राजकुमार छह महीने बाद अपने पिता के राज्य में अपना सा मुँह लेकर वापस लौट गए। 

 कहानी ख़त्म, पैसा हज़म! 

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