लम्बी दुम वाला चूहा

01-04-2022

लम्बी दुम वाला चूहा

सरोजिनी पाण्डेय (अंक: 202, अप्रैल प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

मूल कहानी: इल सोर्चेतो कोन ला कोदा के पुज़्ज़ा; चयन एवं पुनर्कथन: इतालो कैल्विनो
अँग्रेज़ी में अनूदित: जॉर्ज मार्टिन (द माउस विद द लॉग टेल); पुस्तक का नाम: इटालियन फ़ोकटेल्स
हिन्दी में अनुवाद: सरोजिनी पाण्डेय

 

प्रिय पाठक, लोक कथाएँ यदि बचपन में मनोरंजन का साधन होती हैं तो वयस्क होने पर ये कथाएँ हमें चिंतन करने पर विवश करती हैं। आज की कथा को आनंद ले कर पढ़िए और देखिए कि मुसीबत का सामना करने के लिए उनसे पीछा छुड़ाने की कोशिश नहीं बल्कि हिम्मत से उनका सामना करना चाहिए। 

एक समय की बात है एक राजा था, उसकी की एक बेटी थी जो अपूर्व सुंदरी थी। दूर-दूर से अनेक राजकुमारों की तरफ़ से विवाह के प्रस्ताव आते परन्तु सुंदरी राजकुमारी के पिता सभी प्रस्तावों को अस्वीकार करते जाते थे, कारण था कि हर रात जब वह नींद में होते, उन्हें एक आवाज़ सुनाई देती, “अपनी बेटी की शादी मत करना” और वह घबराकर उठ बैठते थे . . . बेचारी राजकुमारी जब-तब अपना चेहरा दर्पण में देखती और अपने से ही पूछती, “मेरी शादी क्यों नहीं होती? क्या मैं किसी से कम सुंदर हूँँ?” 

एक दिन जब सारा परिवार खाना खाने बैठा तो राजकुमारी ने अपने पिता से पूछ ही लिया, “पिताजी मेरा विवाह क्यों नहीं होता? क्या मैं बहुत असुंदर हूँँ? आप ध्यान से सुनिए अगर आपने दो दिनों में मेरी शादी पक्की नहीं की, तो मैं आत्महत्या कर लूँगी!” राजा साहब सोच में पड़ गए। कुछ देर बाद दिल पक्का करके बोले, “अगर तुम ऐसा ही चाहती हो तो सुनो, तुम सजधज कर तैयार हो जाओ, सुबह सवेरे दरवाज़ा खोलो और जो सबसे पहला मुसाफ़िर राह पर दिखाई दे उसके गले में वरमाला डाल दो। इससे ज़्यादा मुझसे और कुछ नहीं हो सकता तुम्हारे लिए।”

पिता का कहना मान कर राजकुमारी पौ फटने से पहले उठी, साज-शृंगार किया और द्वार खोला, और! उसे सबसे पहले रास्ते पर एक छोटा सा चूहा दिखाई पड़ा जिसकी दुम गजभर लंबी और भयानक बदबूदार भी थी। राजकुमारी को देखकर चूहा ठिठक गया और टकटकी लगाकर उसे देखने लगा। जब राजकुमारी ने चूहे की नज़रों को अपने ऊपर टिकी देखा तो चीख पड़ी, “पिताजी यह आपने क्या किया? पहला मुसाफ़िर तो चूहा है! क्या आप मेरी शादी चूहे से कर देंगे?” 

राजा कमरे में हाथ बाँधे खड़े थे, “हाँ बेटी, मैंने जैसा कहा था वैसा ही होगा मेरी बात टल नहीं सकती। जिसने तुम्हें सबसे पहले देखकर पसंद किया है, उसी से तुम्हारी शादी होगी।”

तुरंत ही शादी के समारोह की तैयारी होने लगी। दूर-दूर के राजाओं और सामंतों को निमंत्रण भेज दिए गए। बड़ी शान-शौकत से सारे मेहमान विवाह में सम्मिलित होने आए। सभी लोग भोजन करने बैठे, पर दूल्हे का तो पता ही ना था! कुछ देर में सबने खरोचों की आवाज़ें सुनीं जो दरवाज़े की ओर से आ रही थीं। द्वार पर लंबी, बदबूदार दुम वाला चूहा खड़ा था। मुस्तैद दरबान। ने द्वार खोलकर देखा और पूछा, “आप कौन हैं? और क्या चाहते हैं?” 

“मेरा नाम पुकारो और परिचय दो,” चूहे ने कहा, “मैं वही चूहा हूँँ जिसकी शादी राजकुमारी से होनी है।”

”चूहा जी ऽ ऽ!, जिनका ब्याह राजकुमारी से होना है!!” कहकर सेवक ने सलाम ठोक कर, चूहे का परिचय उपस्थित अतिथियों से कराया। 

“उन्हें आदर के साथ अंदर लाया जाए,” राजा बोले। 

उछल-कूद करता चूहा आया और राजकुमारी की बग़ल वाली कुर्सी पर बैठ गया। अपने साथ चूहे को बैठा देखकर राजकुमारी का मन घृणा और लज्जा से भर गया, उसका सिर झुक गया। राजकुमारी की दशा की अनदेखी कर चूहा उसके और निकट खिसक आया। जितना ही राजकुमारी दूर हटती, चूहा उसके और नज़दीक आता जाता। 

राजा ने सभी मेहमानों को पूरी कथा सुना दी। सारे मेहमानों ने अपनी हँसी दबाते हुए उनकी सनक का समर्थन किया,“बात बिलकुल दुरुस्त है चूहे को ही राजकुमारी का पति होना चाहिए!!”

लेकिन कुछ ही देर में दबी-छुपी हँसी ठहाकों में बदल गई। चूहा सन्न रह गया। उसने राजा को एक ओर ले जाकर धीरे से उनके कान में कहा, “महाराज अपने मेहमानों को सावधान कर दें कि वे मेरा अपमान न करें। यदि वे नहीं माने तो इसका अंजाम सभी को भुगतना होगा।” चूहे ने अपनी बात इतनी गंभीरता से कही कि राजा प्रभावित हो गए। उन्होंने हाथ जोड़कर सभी से निवेदन किया कि वे वर का आदर करें और उसका मज़ाक न उड़ायें। 

भोजन परोसा गया। परन्तु कुर्सी पर बैठा चूहा खाने की थाली तक नहीं पहुँच पाया। उसकी कुर्सी पर एक गद्दी और रखी गई पर फिर भी वह मेज़ पर रखे भोजन तक नहीं पहुँचा। तब वह कूदकर मेज़ के बीचों-बीच जा बैठा। 

“किसी को कोई एतराज है?” चूहे ने चारों ओर नज़र डालकर दृढ़ता से पूछा। 

“नहीं, बिल्कुल नहीं,” राजा ने कहा। 

परन्तु मेहमानों में एक नकचढ़ी महिला भी थी, उसने जब चूहे को अपनी थाली का खाना सूँघते और उसकी लंबी, बदबूदार दुम को पास की दूसरी थाली तक रेंगते देखा तो अपने पर क़ाबू न रख पाई। सारे मेहमानों का ध्यान अपनी ओर खींचते हुए ज़ोर से बोली, “क्या आप सब ने ऐसा नज़ारा पहले कभी देखा है? मैं तो कभी सोच भी नहीं सकती कि राजा के घर यह सब देखना पड़ेगा।”

यह सुनते ही चूहे ने अपनी नुकीली मूछें तान लीं और थूथनी उठाकर एक बार उस महिला की ओर घूर कर देखा और फिर अपनी लंबी दुम फटकारते हुए ज़बरदस्त कूद-फाँद करने लगा। वह कभी किसी की दाढ़ी कुतर लेता, कभी किसी की टोपी नीचे गिरा देता। उसकी बदबूदार दुम जिस चीज़ से टकराती वह ग़ायब हो जाती। पूरियाँ, सब्ज़ी, कटोरी, थाली, चम्मच गिलास और धीरे-धीरे सभी मेहमान भी ग़ायब होने लगे। मेज़, कुर्सी, दरबान यहाँ तक कि महल भी नदारद हो गया, बचा तो केवल सुनसान-वीरान-रेगिस्तान!!! 

इस वीराने, निर्जन सुनसान में अपने को निपट अकेला पाकर बेचारी राजकुमारी बिलख-बिलख कर रोने लगी। आँसू की धार बहती जाती और वह विलाप करती जाती:

“मेरे प्यारे चूहे! कहाँ गए मुझे छोड़ कर, 
नफ़रत ग़ायब हो गई है, जान छिड़कती हूँँ तुम पर!“

ऐसा बोलते हुए वह चल पड़ी, कहाँ? किधर? इस सबसे बेख़बर, जिधर ले चले पाँव, बस उसी डगर! 

कुछ दूर जाने पर उसे एक साधु मिला उसने पूछा, “ऐसे बियाबान में तुम क्या कर रही हो बेटी? क्या तुम्हें सिंह को और राक्षसों का डर नहीं सताता?” 

“आप मुझसे ऐसी बातें न करें!” राजकुमारी बोली:

“मैं खोजती हूँँ अपना प्यारा मूषक
 मेरी सारी नफ़रत प्यार में गई है बदल!” 

”मैं तुम्हारी कोई सहायता नहीं कर सकता कन्या!” साधु ने कहा, “चलती जाओ, हो सकता है तुम मुझ से भी अधिक सयाने किसी साधु को पा जाओ, जो तुम्हें कुछ समझा सके, तुम्हारी मदद कर सके।”

राजकुमारी चलती रही साथ-साथ बोलती भी जाती थी:

“मेरे प्यारे चूहे कहाँ गए मुझे छोड़कर,
नफ़रत ग़ायब हो गई, अब जान छिड़कती हूँँ तुम पर!”

और बहुत, बहुत देर तक चलने के बाद सचमुच उसे एक दूसरा साधु मिल गया। उसने उसे समझाया—ज़मीन में अपने बराबर का एक गड्ढा करो और उसमें घुस जाओ फिर देखो क्या होता है!! 

दुखियारी राजकुमारी के पास ज़मीन खोदने के लिए कोई औज़ार तो था नहीं, सो उसने अपने जूड़े का पिन निकाला और जी-जान लगाकर ज़मीन खोदने लगी। मेहनत तो बहुत लगी पर धीरे-धीरे उसने अपने घुसने लायक़ एक गड्ढा ज़मीन में बना ही लिया। वह उस गड्ढे में अभी घुसी ही थी कि वह अचानक एक बड़ी और अँधेरी सी गुफा में पहुँच गई। ’जो भी होगा देखा जाएगा’ ऐसा सोचकर वह आगे बढ़ने लगी। गुफा मकड़ी के जालों से भरी थी, उन जालों को वह जितना ही हटाती उतना ही वे उससे और लिपटती जाती थीं। लगभग पूरा दिन इसी तरह चलते-चलते बीत गया। फिर अचानक उसने पानी की हिलोरों की आवाज़ सुनी, वह दूने उत्साह से आगे बढ़ चली। और तब उसने अपने को एक झील के किनारे खड़ा पाया। उसने एक पैर धीरे से पानी में डाला, पर पानी गहरा था। वह उस पार नहीं जा सकती थी! जिस गुफा से होकर वह आई थी, उसका मुख भी बंद हो गया! अब राजकुमारी न तो आगे जा सकती थी और ना ही पीछे। हिम्मत बटोर कर और आँखें मींचकर वह एक बार फिर बोली, “मेरे प्यारे चूहे कहाँ गए मुझे छोड़कर . . .” तभी उसे लगा कि झील का पानी अचानक ऊपर बढ़ने लगा है। बचने का का कोई उपाय ना देखकर वह पानी में कूद गई। जब वह पानी में कूदी तो उसे लगा वह डूबी नहीं है, उसने आँखें खोलीं—और यह क्या? वह तो एक बड़े महल में थी! 

वह चलने लगी, पहला कमरा शीशे का था, दूसरा मख़मल का और तीसरा सीपियों से बना था। महल देखते-देखते वह गाती भी जाती थी, “मेरे प्यारे चूहे कहाँ गए मुझे छोड़कर, नफ़रत सारी ख़त्म हो गई, जान छिड़कती हूँँ तुम पर!”

घूमते-घूमते वह एक ऐसे कमरे में पहुँची जहाँ मेज़ पर स्वादिष्ट भोजन रखा था। उसने न जाने कितने दिनों से भरपेट खाना नहीं खाया था, तो उसने जी भर कर भोजन किया और फिर शयन-कक्ष में जाकर सो गई। अचानक उसकी नींद खुली, उसने चूहे के चलने और फुदकने की आवाज़ सुनी। लेटे ही लेटे उसने आँखें फाड़ कर देखने की कोशिश की पर चारों ओर घुप्प अँधेरे के सिवाय कुछ नहीं था, वह चूहे के पंजों की आहट अपने आसपास और अपने बिस्तर पर भी सुनती रही। पलंग पर वह सोंठ बनी पड़ी रही। 

तीन दिन तक यही सब चलता रहा। दिनभर राजकुमारी महल में घूमती-फिरती, खाना खाती और रात में बिस्तर के एक कोने में चुपचाप पड़ी रहकर चूहे की आवाजाही, उछल-कूद और चूँ-चूँ सुनती रहती, न उठती, न बोलती। उसकी आवाज़ मानो गुम हो गई थी। 

तीसरी रात को जब उसने चूहे की चूँ चूँ चूँ सुनी तो बड़ी हिम्मत जुटाकर आख़िरकार बोल ही उठी: 

“मेरे प्यारे चूहे कहाँ गए मुझे छोड़कर 
नफ़रत सारी ख़त्म हो गई, जान छिड़कती हूँ तुम पर!”

“चिराग़ जलाओ,” एक स्वर सुनाई दिया। राजकुमारी ने तुरंत दीपक जला दिया लेकिन उसे चूहा कहीं भी दिखाई नहीं पड़ा, दिखाई दिया तो बस एक सुंदर सजीला नौजवान।

“मैं वही लंबी, बदबूदार दुम वाला चूहा हूँँ,” उस नौजवान ने कहा, “मैं शापित था। एक सुंदर युवती के सच्चे प्रेम के बिना मेरा श्राप कभी नहीं मिटता। तुमने मेरे लिए बहुत दुख झेले हैं। मैं तुम्हारा उपकार कभी नहीं भूल सकता।” 

अब तो राजकुमारी की ख़ुशी का कोई पारावार न था! दोनों ने गुफा छोड़ दी और जल्दी ही शादी भी कर ली। 

“दोनों प्राणी ब्याह रचाकर सुख से लगे रहने, सुनकर मेरी यह कहानी तुम क्यों कान लगे खुजलाने?” 

और लोगों का क्या हुआ? यह मुझसे न पूछना, आज की कहानी में मिलेगा बस इतना!! 

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