सूर्य कुमारी

01-10-2022

सूर्य कुमारी

सरोजिनी पाण्डेय (अंक: 214, अक्टूबर प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

मूल कहानी: ला फ़िग्लिया डल् सोले; चयन एवं पुनर्कथन: इतालो कैल्विनो
अँग्रेज़ी में अनूदित: जॉर्ज मार्टिन (द डॉटर ऑफ़ द सन); पुस्तक का नाम: इटालियन फ़ोकटेल्स
हिन्दी में अनुवाद: सरोजिनी पाण्डेय

 

प्रिय पाठक, इस कथा को पढ़ते हुए आपको कर्ण के जन्म की कथा अवश्य याद आएगी। सूर्य प्रकृति का ऐसा घटक है जो आदिकाल से ही मानव-मन को प्रभावित करता आया है। महाभारत का कर्ण यदि जन्म से कवच-कुंडल से आवेष्ठित था, तो आज की इतालवी लोक कथा की नायिका भी विशिष्ट शक्ति प्राप्त है। आनंद लीजिए इस कथा का:

बहुत पुराने ज़माने की बात है, एक राजा था। उसके घर में कोई संतान नहीं हो रही थी। जब बुढ़ापा निकट आने लगा, तब ईश्वर की कृपा उन पर हुई और रानी गर्भवती हुई। राजा-रानी को, बहुत लंबी प्रतीक्षा के बाद मिलने वाली संतान के भविष्य को जानने की उत्सुकता हुई। राज्य के ज्ञानी, अनुभवी ज्योतिषियों को बुलाकर संतान का भविष्य पूछा गया। ज्योतिषियों ने गणना करके बताया कि आने वाली संतान कन्या होगी, और यह भी कि बीस वर्ष की होने से पहले ही सूर्य उस पर मोहित हो जाएगा और वह सूर्य की बेटी को जन्म भी देगी। अपनी संतान के बारे में ऐसी विचित्र भविष्यवाणी सुनकर राजा-रानी चिंतित हो गए। उनकी बेटी सूरज की बेटी को जन्म देगी लेकिन उसका विवाह ना हो सकेगा! अब भला आकाश में रहने वाले सूर्य से मानवी का विवाह कैसे सम्भव था! भाग्य के इस लेख से बचने के लिए एक बहुत ऊँचा, स्तंभनुमा महल बनवाया गया। उसकी खिड़कियाँ भी इस चतुराई से बनाई गईं कि धूप भीतर न आ सके। राजकुमारी का जन्म होने के बाद एक ऐसी धाय उसका लालन-पालन करने के लिए चुनी गई, जिसकी अपनी बेटी भी राजकुमारी के साथ ही जन्मी थी, ऐसा इसलिए कि राजकुमारी को दूध मिल सके। धाय और उसकी बेटी के साथ राजकुमारी उसी स्तम्भ महल में रहने के लिए भेज दी गई जहाँ उसे बीस वर्ष की आयु पूरी करने तक रहना था, जहाँ सूरज की किरण उसे छू तक न सके। 

समय रुकता नहीं है, धीरे-धीरे राजकुमारी उन्नीस बरस की हो गई, साथ ही धाय की बेटी भी। दोनों सहेलियाँ अक़्सर बाहर की दुनिया के बारे में सोचते हुए आपस में बातें करतीं और अटकलें लगातीं। एक दिन धाय माँ की बेटी ने कहा, “राजकुमारी, आओ हम अपनी सारी चौकियाँ, कुर्सियाँ एक के ऊपर एक रखकर ऊँची खिड़की से बाहर की दुनिया की एक झलक देखें!” राजकुमारी तुरंत राज़ी हो गई। चौकियाँ-कुर्सियाँ एक के ऊपर एक चढ़ाती हुईं वे खिड़की की चौखट तक पहुँच गयीं। बाहर की दुनिया में पेड़-पौधे-फूल, स्वच्छ नीलाकाश, उड़ते हुए पक्षी देखकर दोनों मंत्रमुग्ध हो गयीं। सूरज क्षितिज में ढलने वाला था, उसकी दृष्टि जब खिड़की की चौखट से झाँकती राजकुमारी के चेहरे पर गई तो वह उसका सुंदर मुखड़ा देख कर उस पर मोहित हो गया। उसने अपनी एक सुनहरी किरण, उपहार स्वरूप, चुपके से राजकुमारी की ओर भेज दी। और ग़ज़ब हो गया! सूरज की किरण शरीर पर पड़ते ही राजकुमारी गर्भवती हो गई। समय आने पर राजकुमारी ने सूरज की बेटी को जन्म दिया। धाय माँ ने राज-दंड के भय से यह बात किसी को नहीं बताई। नवजात कन्या शिशु को राजसी कपड़ों में लपेटकर सेम फली के खेत में फेंक आई। 

कुछ ही समय बाद राजकुमारी बीस वर्ष की भी हो गई। राजा-रानी ने समझा कि उन्होंने ज्योतिषियों की भविष्यवाणी टाल दी है। उन्हें क्या मालूम कि होनी तो हो चुकी थी! उनकी नातिन और सूरज की बेटी सेम के खेत में फेंकी जा चुकी थी। 

अब भाग्य की बात! सेम के खेत के पास से शिकार खेलने आया एक दूसरे देश का राजा गुज़र रहा था। जब उसने शिशु के रोने की आवाज़ सुनी तो अपने सिपाहियों से खोज करने को कहा। क़ीमती कपड़ों में लिपटी, स्वस्थ, सुंदर, कन्या-शिशु को देखकर वह उसे अपने साथ ले गया। महल में इस बच्ची का लालन-पालन राजा के बेटों के साथ ही होने लगा, जो अभी छोटे ही थे। बच्चे साथ-साथ बड़े होने लगे। 

बचपन से एक साथ सयाना होने के कारण बड़ा राजकुमार राजा की बेटी से प्यार करने लगा। राजा को जब इस बात का एहसास हुआ, तो वह सावधान हो गए। अब खेत में फेंकी गई, बेनाम कुल-ख़ानदान की लड़की से राजपुत्र का विवाह होना तो असम्भव ही था न! तो उन्होंने लड़की को कहीं दूर भेज कर उसके रहने का प्रबंध कर दिया! राजा को यह तनिक सी भी ख़बर न थी कि वह सूरज की बेटी है और उसके पास अद्भुत दैवी शक्तियाँ हैं! 

जब लड़की दूर भेज दी गई तो राजा ने अपने बेटे की सगाई एक राज परिवार की लड़की से कर दी! शादी का निमंत्रण देने के लिए हल्दी की गाँठ और मेवा सब के पास भेजा गया! निमंत्रण का मेवा राजपुत्र की बचपन की मित्र सूरज की बेटी के पास भी भेजा गया। दरवाज़े पर राजा के दूतों के जूतों की आहट सुनकर जब सूर्य कुमारी बाहर निकली तो उसके कंधे पर सिर न था। 

“वह माफ़ करिएगा,” आवाज़ आई, “मैं बालों में कंघी कर रही थी, सिर वहीं छूट गया है। मैं अभी आई!” 

उसने दूतों को बिठाया और भीतर चली गई, सिर कंधे पर लगाकर, कुछ पलों में वह मुस्कुराती हुई आ गई। 

राजा के दूतों ने उसे राजकुमार के विवाह का निमंत्रण दिया तो वह सोच में पड़ गई कि उपहार में क्या दे? फिर कुछ सोचकर वह एक दूत को रसोई में ले गई और कहा, “मैं राजकुमार की शादी के लिए कुछ बनाकर भेजना चाहती हूँँ।” फिर बोली, “चूल्हे जल जा! घी कड़ाही में गरम हो जा!” और देखते ही देखते लकड़ी चूल्हे में लग गई, आग जल गई, चूल्हे पर घी कड़ाही में चढ़ कर गरम होने लगा। लड़की ने घी में आटा, शक्कर, मेवा डालकर हाथ से ही चला-चला कर गर्मागर्म ताज़ा हलवा बना दिया। एक चाँदी के थाल में हलवा सजा दिया और बोली, “शादी की पूजा में प्रसाद के लिए मेरी ओर से भेंट!”

निमंत्रण लेकर आया दूत साँस रोके आँखें फाड़े, धड़धड़ाते दिल से सब देख रहा था। जैसे ही लड़की ने उसे हलवे की थाली दी, वह सरपट भाग खड़ा हुआ और राजा के सामने पहुँच कर सारा क़िस्सा बयान कर दिया। यह सब हाल होने वाली दुलहन ने भी सुना और ईर्ष्या से जल-भुन कर बोली, “मैं भी यह सब कर सकती हूँ! अपने पिता के घर में मैं करती भी रही हूँँ!” 

राजकुमार ने कहा, “चलो आज हम सब भी देखें कि तुम यह सब कैसे करती हो?” 

भावी दुलहन ने रसोई में जाकर कई बार कहा, “चूल्हे जल जा! घी कड़ाही में चढ़ जा!” लेकिन कुछ ना हुआ। नौकरों ने ही चूल्हा जला दिया, कढ़ाई में घी भी चढ़ा दिया, पर जब दुलहन हाथ से हलवा बनाने के लिए आई तो गर्म घी की कड़ाही उलट गई और आग भभक उठी। होने वाली दुलहन के रेशमी कपड़ों में आग लग गई। जब तक आग बुझाई जाती, तब तक वह इतनी झुलस गई थी कि उसकी जान नहीं बच सकी!! 

कुछ समय बीत जाने पर राजा ने फिर अपने बेटे से शादी करने की ज़िद की। बड़ी ना-नुकुर के बाद राजकुमार शादी के लिए राज़ी हो गया। शादी की मिठाई लेकर फिर राजा के दूत हर परिजन के घर जाने लगे। राजकुमार की बचपन की साथी सूर्यकुमारी के पास भी मिठाई भेजी गई। जब हरकारे ने द्वार खटखटा दिया तो देखा कि दरवाज़े की कुंडी बाहर से लगी है! पर तभी दीवार में से सूर्यकुमारी बाहर आई। हरकारा बेचारा ठंडे पसीने से नहा गया। सूर्यकुमारी ने मिठाई का डब्बा ले लिया, दरवाज़े की कुण्डी खोली और हरकारे को बिठाकर अंदर गई, आवाज़ लगाई, “चूल्हे जल जा, घी की कड़ाही चढ़ जा, जब सब तैयार हो जाए तब मुझे आवाज़ लगा!” फिर सूर्य कुमारी बाहर आकर राजा-रानी, राजकुमार सबका हाल-चाल पूछने लगी। कुछ ही देर में भीतर से आवाज़ आई, “मालकिन हम तैयार हैं!” राजकुमारी भीतर गई और हरकारा पीछे-पीछे। उसने देखा की लड़की ने अपने दोनों हाथों की दसों अंगुलियाँ कड़ाही में डाल दीं और थोड़ी ही देर में सुनहरी, सुडौल, करारी दस इमरतियाँ तैयार कर दीं। थोड़ी ही देर में लड़की की उँगलियाँ फिर वापस आ गईं। उसने सुनहरे काग़ज़ में इमरतियों को लपेटकर, चाँदी के थाल में सजाकर, राजकुमार और उसकी दुलहन के लिए शादी का उपहार भेज दिया। 

राज दरबार में पहुँचकर हरकारे ने सारा हाल सुनाते हुए इमरतियों का थाल राजकुमार को थमा दिया। 

इस बार भी जब नई नवेली दुलहन ने यह सारा क़िस्सा सुना तो ईर्ष्या की आग में जलने लगी और बोली जो इमरतियाँ मैं बनाऊँगी उन्हें देखना!” चूल्हे ने आग जलवाई, कड़ाही में घी गर्म करवाया और जब दुलहन ने अपनी दस उँगलियाँ उस गर्म घी में डाली तो दर्द से चीख उठी। पीड़ा इतनी भयंकर थी कि तत्काल ही उसकी मृत्यु हो गई। 

अपने बेटे की दूसरी दुलहन की भी मौत होने से रानी माँ बहुत दुखी और नाराज़ हो गईं। उन्होंने दूत को ही फटकार लगाई कि झूठी-सच्ची कहानियाँ सुनाकर वही दुलहनों की मौत का कारण बन रहा है!!! 

एक बार फिर राजा-रानी की कोशिशों से राजकुमार के लिए तीसरी पत्नी खोजी गई और इस बार फिर दूत शगुन की मिठाई लेकर मित्रों-रिश्तेदारों के पास भेजे गए! दूत जब सूर्यकुमारी के घर पहुँचे तो वहाँ द्वार खटखटाने पर आवाज़ आई, “दरवाज़ा खुला है, मैं ज़रा ऊपर टहल रही हूंँ, आप अंदर आ जाइए!” दूत ने भीतर आकर देखा तो मुँह बायें देखता ही रह गया! सूरज की बेटी मकड़ी जैसी  छत और दीवारों पर चहलक़दमी कर रही थी। दूत को देखकर वह सरपट नीचे आ गई। जब उसे पता चला कि सेवक राजकुमार के तीसरे विवाह की मिठाई लेकर आया है, तो असमंजस में पड़ गई कि अब क्या उपहार भेजे? कुछ देर सोचने के बाद बोली, “चाकू ज़रा इधर तो आना!” चाकू उसके हाथ में आ गया। उसने चाकू अपने कान में घुसा दिया, कान से सुनहरे तारों से बुनी गई बारीक़ काम की किनारी निकलने लगी। ऐसा लग रहा था मानो किनारी सीधे उसके दिमाग़ से निकल रही हो। लड़की ने किनारी को लपेटकर गोला बनाया और रख दिया, फिर कान पर उँगली से दबाव देकर चाकू से बना सूराख़ मानो बंद कर दिया। किनारी उसने दुलहन के कपड़ों को सजाने के लिए महल भेज दी। जब सेवक दरबार में उपहार लेकर पहुँचा तो सभी लोग उस कलात्मक किनारी की सुंदरता देखकर हैरान रह गए। सभी ने उसको बनाने वाले के बारे में जानना चाहा। दूत रानी की फटकार के कारण कुछ कहना नहीं चाहता था, परन्तु जब राजकुमार ने भी किनारी के बारे में जानना चाहा तो डरते-डरते उसने सारी आँखों देखी घटना सुना दी। 

यह नई नवेली दुलहन भी कम ईर्ष्यालु न थी। उसने भी डींग मारी, “मेरे दहेज़ में आए अपने सब कपड़ों में इसी तरह की लेस बनाकर मैंने लगाई है।” राजकुमार बोला, “चलो चाकू लो और हमें भी दिखाओ कि ऐसी किनारी कैसे बनती है।” ज़बान का तीर तो निकल चुका था! बेचारी क्या करती? ईश्वर को याद कर चाकू उठाया और एक कान में घुसा दिया पर वह सूर्यकुमारी तो थी नहीं!!! लेस के स्थान पर ख़ून का फ़व्वारा फूट पड़ा और देखते-देखते बिचारी स्वर्ग सिधार गई। 

जैसे-जैसे राजकुमार की दुलहनें मरती जा रही थीं उसका प्यार सूरज की बेटी के लिए गहरा और गहरा होता जा रहा था। धीरे-धीरे राजकुमार बीमार रहने लगा। किसी वैद्य-हकीम के पास इस प्रेम-रोग की दवा न थी। जब कोई इलाज कारगर ना हुआ तो राजा ने एक सयानी ओझाइन के पास बुलावा भेजा। उसने आकर जब राजकुमार का हाल देखा तो सारा मामला समझ गई। उसने बताया कि राजकुमार को उस जौ की लपसी खिलानी पड़ेगी जो केवल एक घंटे के अंदर उगाया, कटा, और पकाया गया हो!! 

राजा की परेशानी का तो कोई ओर छोर न रहा!! ऐसा जौ किसी ने देखा तो क्या कभी सुना भी न था। जब कुछ और न सूझा तो राजा को उस लड़की की याद आई जो राजकुमार के लिए अनसुने, अनदेखे, अनोखे उपहार भेज रही थी। उसके पास दूत भेजे गए। 

“हाँ, मैं ऐसे जौ की लपसी तैयार कर सकती हूंँ जो एक घंटे में बोया, उगाया, काटा और पकाया गया हो। लेकिन मेरी एक शर्त है, वह लपसी मैं अपने हाथों से ही बीमार को दूँगी!”

मरता क्या न करता! सूर्यकुमारी की शर्त मंज़ूर कर ली गई। जब सूरज की बेटी ने लपसी तैयार करके राजकुमार को खिलाई तो उसका बकबका स्वाद पाकर राजकुमार ने मुँह बिचकाया और लपसी तुरन्त थूक दी। लपसी छिटक कर सूर्यकुमारी की आँख में जा पड़ी। 
 वह बिफर कर बोली, “सूरज की बेटी और राजा की नतिनी के साथ ऐसा कुटिल व्यवहार? 
उसकी आँखों पर लपसी की बौछार!”

राजा अपने बेटे के बिछौने के पास ही खड़ा था, चौंककर बोला, “क्या बोलीं तुम? क्या तुम सूरज की बेटी हो?” 

“जी, हाँ ऽ ऽ ऽ”

“क्या किसी राजा की नतिनी हो?” 

”जी, हाँ ऽ ऽ ऽ!” 

“और हम हमेशा तुम्हें फेंकी गई, अनाथ बच्ची समझते रहे!! तुम तो हमारे बेटे की दुलहन बनने लायक़ हो!”

“बिल्कुल हूंँ, बिल्कुल हूंँ!”

राजकुमार तो मानो नवजीवन ही पा गया। वह अच्छा हो गया। उसकी शादी सूर्यकुमारी से हो गई। 

लेकिन अफ़सोस . . .! शादी के साथ ही सूर्यकुमारी की सारी दैवीय, अद्भुत, परम शक्तियाँ चली गईं। वह बन गई मानवी बिल्कुल हमारे आपके जैसी! 

“इस बार बस इतना ही, 
 आगे सुनिएगा फिर कभी”

1 टिप्पणियाँ

  • सुन्दर कथा। अनुवादित होते हुए भी मूल कहानी का आनंद आया। शानदार

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

अनूदित लोक कथा
कविता
यात्रा-संस्मरण
ललित निबन्ध
काम की बात
वृत्तांत
स्मृति लेख
सांस्कृतिक आलेख
लोक कथा
आप-बीती
लघुकथा
कविता-ताँका
सामाजिक आलेख
ऐतिहासिक
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में