पहले राही को ब्याही राजकुमारियाँ

15-02-2025

पहले राही को ब्याही राजकुमारियाँ

सरोजिनी पाण्डेय (अंक: 271, फरवरी द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

मूल कहानी: ले प्रिंसिपेस मैरिटेट अल प्रिमो शे पासा; चयन एवं पुनर्कथन: इतालो कैल्विनो; 

अंग्रेज़ी में अनूदित: जॉर्ज मार्टिन (द.प्रिंसेसेज़ वेड टु द फ़र्स्ट पासर्स-बाइ); पुस्तक का नाम: इटालियन फ़ोकटेल्स; हिन्दी में अनुवाद: ‘पहले राही को ब्याही राजकुमारियाँ’ सरोजिनी पाण्डेय

 

किसी समय की बात है, एक राजा की चार संतानें थीं, सबसे बड़ा बेटा, जो युवराज था और उसके बाद तीन बेटियाँ। जब राजा को लगा कि उसकी मृत्यु का समय निकट आ गया है, तब उसने अपने युवराज पुत्र को बुलाया और कहा, “बेटा मैं मर रहा हूँ, मैं तुमसे जो भी कहता हूँ उसे ध्यान से सुनो। उसे मेरी आख़िरी आज्ञा मानकर उसका पालन करना। जब तुम्हारी छोटी बहनें सयानी हो जाएँ और उनके विवाह का समय आए। तब तुम उन्हें किसी शुभ दिन छज्जे पर ले जाना और सामने की राह पर जो भी पहला राही दिखाई दे, उसके साथ बहन की शादी कर देना। इस बात की चिंता न करना कि वह किसान है, पढ़ा-लिखा विद्वान है या फिर कोई राजा, ज़मींदार या भिखारी!” ऐसी आज्ञा सुन कर युवराज कुछ परेशान तो हुआ लेकिन मृत्यु-शैया पर पड़े पिता से कुछ कहा न सका। कुछ ही दिनों बाद राजा स्वर्ग सिधार गया।

समय बीतते देर न लगी। जब सबसे बड़ी लड़की विवाह योग्य हो गई, तब एक शुभ दिन सुबह-सुबह राजकुमार अपनी बहन को लेकर छज्जे पर गया। थोड़ी देर बाद उसे रास्ते पर आता एक ग़रीब आदमी दिखाई दिया, जिसके पैरों में जूते तक न थे। राजकुमार ने आवाज़ लगाई, “मित्र तनिक रुको!”

“क्या बात है महाराज?” उस पथिक ने पूछा, “मुझे जल्दी जाने दीजिए, मेरे सूअर बाड़े में बंद हैं, मुझे जल्दी जाकर उन्हें चरने के लिए छोड़ना है।”

“आप मेरे पास आइए, मुझे आपसे कुछ ज़रूरी बात करनी है। मैं चाहता हूँ कि आप मेरी सबसे बड़ी बहन से शादी कर लें,” राजकुमार ने कहा।

बेचारा पथिक घबरा गया, “मुझ ग़रीब का मज़ाक़ ना उड़ाइए मालिक, मैं खटीक हूँ और सूअर पालता हूँ।”

“आपको मेरी बात माननी ही पड़ेगी क्योंकि मेरे स्वर्गीय पिताजी की यह आख़िरी इच्छा थी और आपके लिए यह राजा की आज्ञा है।”

कुछ दिनों में सबसे बड़ी राजकुमारी का विवाह उस खटीक से कर दिया गया और वे दोनों महल से चले गए।

दिन बीते। अब दूसरी राजकुमारी भी विवाह के योग्य हो गई। शुभ दिन का विचार कर, उसका बड़ा भाई उसे लेकर सुबह के समय छज्जे पर गया, जो पहला आदमी सामने की राह पर चलता दिखाई दिया उसे महल के भीतर बुलाया गया। अंदर आते ही वह बोला, “महाराज में ज़रा जल्दी में हूँ, मैंने जंगल में चिड़ियों को पकड़ने के लिए जाल बिछाया है। वहाँ जाकर मुझे देखना है कि चिड़ियाँ फँसी या नहीं।”

“कोई बात नहीं, आप बस भीतर आ जाइए, आपसे कुछ कहना है।”

जब वह अंदर आया तब राजकुमार ने सारी बातें बताकर उसके सामने बहन के विवाह का प्रस्ताव रखा। बहेलिया घबरा गया, बोला, “मैं तो एक साधारण बहेलिया हूँ, राज परिवार में भला कैसे शादी कर लूँ?” लेकिन राजकुमार ने पिता की आज्ञा का हवाला देकर उसे भी शादी के लिए राज़ी कर लिया और शादी के बाद बहन-बहनोई को सादर महल से विदा कर दिया।

जब सबसे छोटी बहन भी सयानी हो गई तब राजा को उसकी भी शादी की फ़िक्र हुई। सबसे छोटी बहन उसे बहुत प्यारी थी। अब उसके साथ भी पिता की आज्ञा का पालन करना आवश्यक था।

सबसे छोटी बहन को साथ ले फिर एक बार राजा छज्जे पर आया। इस बार जो सबसे पहला आदमी राह पर चला दिखाई दिया वह क़ब्र खोदने वाला था। इस बात से राजकुमार बहुत दुखी हुआ लेकिन स्वर्गवासी पिता की आज्ञा भी तो टाली नहीं जा सकती थी। भारी मन से राजा ने अपनी बहन का ब्याह उस क़ब्र खोदने वाले से कर दिया।

अपनी बहनों की ज़िम्मेदारी पूरी करके राजा महल में बहुत अकेला हो गया। एक दिन उसके मन में विचार आया कि वह अपने लिए भी वैसा ही करे जैसा पिता ने बेटियों के साथ करने की आज्ञा दी थी। इस मंशा से एक दिन सुबह ही सुबह राजा छज्जे में जा खड़ा हुआ। कुछ ही देर में राह पर एक बुड्ढी धोबिन सरपट आती हुई दिखाई पड़ी।

“दोस्त ओ दोस्त, ज़रा रुको, इधर अंदर आओ, तुमसे बहुत ज़रूरी काम है।”

“मुझसे तुम्हारा बात करना उतना ज़रूरी नहीं है, जितना मेरा नदी पर जाकर इन गंदे कपड़ों को धोना,” वह कुछ झल्लाकर बोली।

अब राजा भी थोड़ा गर्म हुआ, “मैं तुम्हें आज्ञा देता हूँ कि तुरंत भीतर महल में आओ!”

बेचारी धोबिन क्या करती, आँखें तरेरती हुई बोली, “मुझ बुढ़िया पर रोब जताने से तो अच्छा होता कि तुम सुंदरी 'पंखुरी' को खोजते!” यह कह कर धोबिन तेज़ी से बाहर चली गई। राजा भौचक्का रह गया। उसे लगा कि अचानक उसके शरीर में बिजली-सी दौड़ गई, इस बेचैनी के कारण वह गिरते-गिरते बचा। उसके मन में आया कि शायद उसे अपनी बहनों की याद आई है, लेकिन यह तो कुछ और ही था—उसके मन में अचानक ही ‘पंखुरी’ नाम वाली सुंदरी को देखने की तेज़ चाह जाग उठी थी। वह सोचने लगा ‘मेरी यह बेचैनी तो तभी मिटेगी जब मैं पंखुरी सुंदरी को पा लूँगा। अब मैं यह महल छोड़कर उसे खोजने जाऊँगा।’ और उसने महल छोड़ दिया। पंखुरी सुंदरी की खोज में उसने आधी दुनिया छान मारी, लेकिन किसी को उसके बारे में कुछ भी मालूम नहीं था, जिसका नाम धोबिन बताकर गई थी।

राजा कई साल से इधर-उधर भटक रहा था। तब एक दिन उसने अपने को एक बड़े मैदान में सूअरों से घिरा हुआ पाया, जहाँ एक के बाद एक सूअरों के झुंड दिखाई देते जाते थे। उनके बीच से बचता-बचाता चलकर वह एक बड़े महल के पास जा पहुँचा। उसने द्वार पर दस्तक दी, पूछा, “क्या कोई अंदर है? मुझे रात भर के लिए आसरा चाहिए।”

महल का द्वार खुला और सामने एक संभ्रांत स्त्री दिखाई दी। उसने आगे बढ़कर राजा के गले में बाँहे डाल दीं, “मेरे प्यारे भैया!”वह बोली। राजा ने भी अपनी बड़ी बहन को पहचान लिया, यह तो वही बहन थी जो खटीक को ब्याही गई थी।

थोड़ी ही देर में शान शौकत के साथ आता हुआ बहनोई भी दिखाई पड़ा। उन दोनों ने मिलकर राजा को पूरा महल घुमाया और दूसरी दोनों बहनों की कुशल क्षेम बताई। मौक़ा देखकर राजा ने बताया कि वह सुंदरी पंखुरी की खोज में अपने राज्य से बाहर भटक रहा है। बहन ने कहा, “हमने तो पंखुरी नाम की सुंदरी के बारे में कभी कुछ सुना नहीं है, हो सकता है दूसरी बहनें तुम्हारी कुछ मदद कर पाएँ।”

विदा के समय खटीक बहनोई ने राजा को सूअर के तीन बाल देते हुए कहा, “अगर कभी मुसीबत आए तो यह इन बालों में से एक बाल को ज़मीन पर फेंकना, हो सकता है तुम्हारी मुसीबत टल जाए।”

सूअर के बाल लेकर राजा ने बहन के घर से विदा ली।

लंबी दूरी तय करने के बाद उसने अपने को एक ऐसे जंगल में पाया, जहाँ हर पेड़ की हर टहनी पर चिड़ियाँ बैठी चहक रही थीं। जब वे फुदक-फुदक कर इस डाल से उस डाली पर उड़कर जातीं तो आकाश भी ढक जाता। उनकी चहक की गूँज में और दूसरी हर आवाज़ ग़ायब हो जा रही थी। इसी जंगल के बीच में एक महल था जो राजा की मँझली बहन का था, जिसका पति उस समय ग़रीब, फटेहाल बहेलिया था, भाग्य और मेहनत के बल पर वह अब ज़मींदार बन गया था।

इन लोगों ने भी राजा की भरपूर मेहमान-नवाज़ी की। जब राजा ने पंखुरी सुंदरी की बात की, तो इन्होंने भी बताया कि उन्होंने ऐसी किसी सुंदरी की कोई बात कभी नहीं सुनी थी।

इस बहन ने भाई को तीसरी सबसे छोटी बहन के घर जाने को कहा। जाते समय मँझले बहनोई ने अपने साले को चिड़ियों के तीन पंख दिए और बता दिया कि एक पंख ज़मीन पर फेंके जाने पर मुसीबत में उसकी रक्षा करेगा।

राजा फिर अपनी खोज में आगे बढ़ चला। लंबी यात्रा के बाद वह ऐसी जगह पहुँचा, जहाँ क़ब्रें ही क़ब्रें दिखाई दे रही थीं। जैसे-जैसे वह आगे बढ़ रहा था, क़ब्रों की संख्या भी बढ़ती जा रही थी। आगे चलते हुए राजा ऐसी जगह आ पहुँचा जहाँ क़ब्रों के सिवा कुछ और दिखाई ही नहीं देता था। इन्हीं क़ब्रों के बीच उस बहन की हवेली दिखाई दी जो क़ब्र खोदने वाले को ब्याह दी गई थी। इन लोगों ने भी राजा की ख़ूब आवभगत की। चलते समय राजा को उसके बहनोई ने किसी कंकाल से निकली एक छोटी हड्डी दी जो कठिनाई के समय राजा के काम आ सकती थी इस छोटी बहन को पंखुरी सुंदरी के बारे में जानकारी भी थी। उसने अपने भाई को वह राह समझा कर बता दी जिस पर चलकर एक ऐसी बुढ़िया के पास पहुँचा जा सकता था, मुसीबत के समय जिसकी सहायता राजा की बहन ने की थी। उस बूढ़ी स्त्री को पंखुरी सुंदरी का पता भी मालूम था, वह दयाल थी, उसकी बहन की एहसानमंद भी।

राजा चलते चलते आख़िर उस स्त्री का घर पा गया। संयोग से उस नगर के राजा के महल के सामने ही वृद्धा का घर था। हमारे राजा का स्वागत बड़े प्रेम से किया गया।

अगली सुबह राजा ने वृद्धा के मकान की खिड़की के सामने के महल की खिड़की पर, सुंदरी पंखुरी को चेहरे पर झीना घूँघट डाले, सूरज को निहारते, देखा। उस फूलों से कोमल परम सुंदरी को देख हमारा राजा तो बेहोश ही हो जाता अगर उसे मेज़बान ने उसे थाम न लिया होता।

“श्रीमान आप इस सुंदरी से विवाह करने की बात सोचिएगा भी मत,” वृद्धा ने राजा को समझाया, “पंखुड़ी का पिता, इस नगर का राजा, बड़ा दुष्ट है। वह अपनी बेटी से विवाह के इच्छुक लोगों के सामने ऐसी असंभव शर्तें रखता है जिन्हें पूरा नहीं किया जा सकता। असफल होने वाले का सिर कटवा दिया जाता है।”

लेकिन हमारे राजा के सिर पर तो पंखुरी के साथ ब्याह का जुनून ही सवार था। वह नगर के राजा के पास पंखुरी का हाथ माँगने जा ही पहुँचा।

अब पंखुरी के पिता ने उसे एक ऐसे कमरे में बंद करवा दिया, जिसमें मनों के हिसाब से सेब और नाशपाती भरे थे। जिधर देखो उधर टोकरों में बस फल ही फल दिखाई दे रहे थे। शर्त यह थी कि एक रात में टोकरों में भरे वे सब फल बंदी राजा को खा लेने थे। यदि वह ऐसा न कर सका तो अगली सुबह उसका सिर धड़ से अलग कर दिया जाएगा।

मुसीबत में पड़े राजा को सूअर के बालों की याद आ गई। उसने एक बाल ज़मीन पर फेंक दिया। अचानक सूअरों के केंकने का स्वर सुनाई दिया और पल भर में ही सैकड़ो सूअर उस कमरे में भर गए। पलक झपकते-झपकते उन्होंने वहाँ रखे सारे सेब-नाशपाती खा लिए यहाँ तक कि उनके छिलके और बीजों का भी कहीं पता निशान नहीं दिखाई पड़ता था . . . फिर सूअर जैसे प्रकट हुए थे वैसे ही अंतर्धान भी हो गए। राजा चैन से सो गया।

अगली सुबह जब मालखाने का दरवाज़ा खोला गया तो वहाँ हमारे राजा के सिवाय कुछ ना था।

“वाह, वाह, वाह,” पंखुरी के पिता ने कहा, “तुम्हारे साथ मेरी बेटी की शादी ज़रूर होगी, लेकिन उसके पहले तुम्हें एक और शर्त पूरी करनी है। आज रात को तुम्हें मेरी बेटी को सुलाना होगा। उसे दुनिया की सबसे सुरीली, मीठा गाने वाली चिड़ियों की आवाज़ सुनकर ही नींद आती है। अगर तुम ऐसा ना कर सके तो तुम्हारा सिर क़लम कर दिया जाएगा।”

रात को उन दोनों को एक ऐसे कमरे में भेज दिया गया जहाँ कोई चिड़िया तो क्या, मक्खी-मच्छर भी नहीं आ सकते थे। अब बेचारा राजा क्या करता? अचानक उसे अपने मँझले, बहेलिए बहनोई के दिए हुए पंखों की याद आ गई। उसने एक पंख निकाल कर फ़र्श पर रख दिया, देखते ही देखते कमरे में न जाने कहाँ से नन्हीं-नन्हीं बुलबुल, कोयल, पपीहे आ गए, वे रोशनदान, फ़ानूस, परदों पर बैठकर मीठी आवाज़ में चहकने लगे। कुछ ही देर में पंखुरी सुंदरी होंठों पर मीठी मुस्कान लिए गहरी नींद में सो गई।

अगली सुबह पंखुरी के पिता ने हमारे राजा को बधाइयाँ दीं और उन्हें अपना दमाद मान लिया। लेकिन साथ ही बेटी को विदा करने की एक और शर्त रख दी, “मैंने तुम्हें अपनी बेटी दे दी है। अब तुम पति-पत्नी बन गए हो। लेकिन मेरी बेटी तुम्हारे साथ रहने के लिए तभी जाएगी, जब कल तक तुम दोनों मिलकर एक बच्चा पैदा कर लोगे। उस बच्चे को “माँ-पिताजी” बोलना भी आना चाहिए। अगर ऐसा नहीं हो पाया तब तुम दोनों का ही सिर कटवा दिया जाएगा।”

“हमारे पास कल तक का तो समय है न, ससुर जी,” और पंखुरी का हाथ थाम कर हमारा राजा वहाँ से चला गया।

अगली सुबह उठकर उसने सँभाल कर रखी गई अपने सबसे छोटे बहनोई की दी हुई हड्डी निकाली, अपनी इच्छा मन में रखकर उसने बड़े हौले से हड्डी को फ़र्श पर रख दिया।

और—कमाल हो गया!!! वह हड्डी ग़ायब हो गई और उसकी जगह एक छोटा बालक खड़ा दिखाई पड़ने लगा, जो हाथ में एक सुनहरा सेब पकड़े हुए था और “माँ ऽ ऽ, पिताजी ऽ ऽ ” बोलता हुआ इन दोनों की ओर आ रहा था। जब पंखुरी के पिता कमरे में वहाँ का हाल-चाल लेने आए तो बालक दौड़कर उनकी ओर चला गया और सेब को मुकुट के ऊपर रखने का हठ करने लगा। राजा ने बालक को गोद में लेकर चूम लिया। नवविवाहितों को आशीष दिया और अपना मुकुट उतार कर दामाद के सिर पर रख दिया। अब हमारे राजा के पास दो ताज थे।

विवाह समारोह धूमधाम से मनाया गया। हमारे राजा की तीनों बहनें और तीनों बहनोई, खटीक, बहेलिया और क़ब्र खोदने वाला विशेष अतिथि थे।

जैसे हमारे इस राजा की इच्छा पूरी हुई ईश्वर सबकी मनोकामना पूरी करें।

“इस बार की कहानी यहीं है ख़त्म
आगे फिर-फिर मिलते रहेंगे हम”

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