मूर्ख मैकू
सरोजिनी पाण्डेयमूल कहानी: गूफ़ा इ ल'ऑटर; चयन एवं पुनर्कथन: इतालो कैल्विनो
अँग्रेज़ी में अनूदित: जॉर्ज मार्टिन (गूफ़ा एंड द वाइन स्किन); पुस्तक का नाम: इटालियन फ़ोकटेल्स
हिन्दी में अनुवाद: सरोजिनी पाण्डेय
प्रिय पाठक,
पिछले कई अंकों से अनूदित ’लोक कथाएँ‘ आपको सुना रही हूँ, आप में से जो भारत में जन्मे और पले बढ़े हैं, उन्होंने अपने बचपन में मूर्ख शेखचिल्ली की कहानियाँ अवश्य सुनी होंगी, ’खिचड़ी खा चिड़ी, उड़ चिड़ी’ वाली कहानी तो बहुत ही रोचक है। आज की कहानी उसी के समानन्तर है। मूल संग्रहकर्ता ने स्वीकार किया है कि इस कथा का मूल अरब क्षेत्र के देशों से हो सकता है, जिन्हें सिसली में रूपांतरित किया गया हो। हमारे देश में भी ’शेखचिल्ली की प्रचलित कथाएँ‘ उन्हीं का रूपांतरण हो सकती हैं। इटली में रूपांतरण के कारण इसमें वहाँ की सामाजिक भौगोलिक और सांस्कृतिक परिस्थितियों का प्रभाव आपको दिखलाई देगा, जिसे मैंने भारतीय परिवेश में डालने का प्रयत्न किया है। तो कहानी का आनंद लीजिए—
एक समय की बात है एक स्त्री, जो विधवा थी, उसका एक ही बेटा था, नाम था—मैकू। मैकू आलसी और मूर्ख होने के साथ-साथ नटखट भी था और याददाश्त थोड़ी ढीली-सी थी। जब वह कुछ बड़ा हुआ तो माँ की लाख कोशिशों के बाद भी वह कोई काम धंधा न सीख सका। माँ चाहती थी कि वह कुछ काम करे और अपने पैरों पर खड़ा हो जाए, पर उसकी यह इच्छा पूरी न हो सकी। हारकर उसने मैकू को एक शराब खाने में सहायक का काम करने के लिए भेज दिया।
एक दिन मालिक ने मैकू से कहा, “मैकू समुद्र तक जाओ और इस मशक (चमड़े का थैला जिसमें शराब या पानी भरा जाता है) को अच्छी तरह धो कर ले आओ, अगर अच्छी ना हुई सफ़ाई, तो सच मानो तुम्हारी होगी ख़ूब पिटाई।” मैकू मशक लेकर समुद्र किनारे पहुँचा, उसको धोते-धोते उसने सारी सुबह निकाल दी। जब उसे संतोष हो गया कि मशक साफ़ हो गया है तो वह इस चिंता में पड़ गया कि वह किस से पूछे कि मशक अच्छी तरह साफ़ हो गई है या नहीं क्योंकि सारा समुद्र तट तो सूना पड़ा था और उसे पिटाई का डर था!
तभी उसकी नज़र एक नाव पर पड़ी जो कुछ ही समय पहले पानी में उतरी थी। मैकू ने झट अपना रुमाल निकाला और उसे ज़ोर-ज़ोर से हिलाते हुए चिल्लाने लगा, “ओ मल्लाहो! वापस आओ, ओ मल्लाहो! वापस आओ,” पोत के कप्तान ने जब यह देखा तो उसे लगा कि उन्हें वापस आने का संकेत दिया जा रहा है। उसने अपने नाविकों से कहा, “हमें वापस चलना होगा, शायद हम कुछ चीज़ें तट पर ही छोड़ आए हैं या फिर हमारे लिए कोई ज़रूरी संदेशा है।” वे एक डोंगी से तट पर वापस आ गए। वहाँ उन्होंने अकेले मैकू को देखा। कप्तान ने हैरान होकर पूछा, “आख़िर बात क्या है, जी!”
“श्रीमान, क्या आप कृपा कर यह बता देंगे कि यह मशक अच्छी तरह साफ़ हो गई है?” यह सुनकर कप्तान आग बबूला हो गया। उसने एक डंडा लिया और मैकू को रुई की तरह धुन दिया।
“मैं और क्या कहता श्रीमान?” मैकू ने हकलाते हुए पूछा।
“कहो—भगवान इन्हें रफ़्तार दो, भगवान इन्हें रफ़्तार दो—जिससे, हमने जो समय वापस आने में खोया है उसकी भरपाई हो जाए और हम नाव लेकर जल्दी समुद्र में निकल जाएँ!”
मैकू ने मशक उठाया, अपनी घायल पीठ पर लादा और “भगवान इन्हें रफ़्तार दो, भगवान इन्हें रफ़्तार दो!” बोलता हुआ खेतों से होकर आगे बढ़ा।
अभी वह कुछ ही आगे बढ़ा था कि उसे एक शिकारी मिला, जो दो ख़रगोशों पर निशाना साध रहा था। मैकू अपनी धुन में चिल्लाता ही जा रहा था, “हे भगवान, इन्हें रफ़्तार दो" यह आवाज़ सुनकर दोनों ख़रगोश उछल कर भाग गए।
“ओ शैतान लड़के, बस तेरी ही कमी रह गई थी!” शिकारी चिल्लाया और अपनी बंदूक के कुंदे से उसके सिर पर दे मारा। बेचारा मैकू बिलबिला गया बोला, “मुझे कहना था क्या! मेरी ग़लती है क्या!”
“प्रभु, उन्हें मरने दो, कहते चलो,” शिकारी बोला।
अपनी घायल पीठ पर मशक लादे, सिर सहलाते मैकू रटने लगा, “प्रभु, इन्हें मरने दो!”
अब सोचो ज़रा! आगे मैकू को कौन मिला?
दो आदमी जो आपस में गाली-गलौज करते हुए आपस में लड़ने और मरने-मारने पर उतारू थे!!
“भगवान इन्हें मरने दो" चिल्लाता हुआ जब मैकू उधर से गुज़रा तो वे दोनों आपसी ग़ुस्सा छोड़ कर उस पर पिल पड़े, “सूअर की औलाद! तू हमारे झगड़े की आग में घी डाल रहा है?” मैकू ने किसी तरह अपनी सिसकी रोकते हुए पूछा, “मैं बोलूँ तो क्या बोलूँ?”
“हम बताते हैं कि तुम क्या कहो, तुम्हें कहना चाहिए, प्रभु इनको अलग करो!”
“ठीक है, प्रभु इन्हें अलग करो, प्रभु इन्हें अलग करो!” कहता हुआ मैकू अपने रास्ते फिर चल पड़ा।
’अब सुनो आगे, क्या था मैकू के भागे*!!’ (भाग्य*)
जिस राह पर मैकू जा रहा था, उसी रास्ते एक दूल्हा अपनी दुलहन को विदा कराकर पहली बार अपने साथ ले जा रहा था। जब उसने मैकू को ’प्रभु इनको अलग करो, प्रभु प्रभु इनको अलग करो’ कहते हुए सुना तो क्रोध से लाल हो गया। उसने अपना जूता उतारा और दे दनादन मैकू पर बरसा दिया, “पापी आदमी, अभी तो मेरी गृहस्थी बसी भी नहीं और तू हमें अलग होने का श्राप रहा है!!” जूतों की मार खाकर पहले से घायल मैकू बेहोश होकर गिर पड़ा। जब लोग उसे उठाने गए और उसने आँखें खोलीं तो उन्होंने उससे पूछा, “नए नए ब्याहे जोड़े से ऐसी अपशगुनी बात तुम बोल भी कैसे पाए?”
“और मैं क्या बोलता भाई? तुम्हीं बता दो!"
“तुम्हें कहना चाहिए था, भगवान इन्हें ऐसे ही ख़ुश रखना, भगवान इन्हें ऐसी ही ख़ुशी देना!”
मैकू ने मशक उठाया, पीठ पर चढ़ाया और “भगवान इन्हें ऐसी ही ख़ुशी दो, भगवान इन्हें ऐसी ही ख़ुशी दो“ कहता हुआ शराबखाने की ओर बढ़ चला।
पर भाग्य का खेल! वह एक ऐसे मकान के सामने से गुज़रा, जहाँ लोग एक अर्थी उठाने को तैयार खड़े थे, घर के लोगों में रोना-पीटना मचा था। जब लोगों ने मैकू को “भगवान इन्हें ऐसी ख़ुशी दो" बोलते सुना तो वे दौड़ पड़े और उसे लात घूँसों से मार-मार कर अधमरा कर दिया। अब बेचारे को समझ में आया कि सबसे भला चुप रहना है!!
वह चुपचाप चलते हुए शराबखाने पहुँच गया। अब तक रात घिरने लगी थी। मालिक ने सिर्फ़ एक मशक को धोने में सारा दिन बर्बाद करने के कारण दो-चार थप्पड़ मैकू को लगाए और धक्के मार-मार कर बाहर निकाल दिया।
मैकू सुधरा कि नहीं, यह हम फिर सोचेंगे कभी!
आज के लिए विदा!!!
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