मौन व्रत 

सरोजिनी पाण्डेय (अंक: 261, सितम्बर द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

मूल कहानी: मूटा पर सेट्टे एनी; चयन एवं पुनर्कथन: इतालो कैल्विनो
अंग्रेज़ी में अनूदित: जॉर्ज मार्टिन (साइलेंट फॉ़र सेवेन इयर्स); पुस्तक का नाम: इटालियन फ़ोकटेल्स; 
हिन्दी में अनुवाद: ‘मौन व्रत' सरोजिनी पाण्डेय

 

किसी समय की बात है, एक दंपती की तीन संतानें थीं, सबसे बड़ी बेटी और दो छोटे बेटे। पिता दिन भर काम के सिलसिले में घर से बाहर रहते और शाम को घर आते थे। एक शाम जब पिता के घर आने का समय हुआ तो दोनों बेटों ने माँ से कहा, “माँ हम पिताजी से मिलने जा रहे हैं!” माँ ने ख़ुशी से कह दिया, “हाँ-हाँ-चले जाओ!” बच्चे पास के जंगल में पहुँचे तो वहाँ खेलने लगे। कुछ देर बाद ही उन्हें अपने पिता आते दिखलाई पड़ गए। दोनों बेटे ‘पापा पापा’ कहते भाग कर पिता के पैरों से लिपट गए। पिता थके थे, वह कुछ ज़ोर से बोले, “हटो भागो, मुझे परेशान न करो।” लेकिन बेटों ने उनकी बात अनसुनी कर दी और पिता के पैरों से लिपटे ही रहे। दिन भर के थके माँदे पिता को ग़ुस्सा आ गया व। वे झुँझला कर बोले, “मेरे पैर छोड़ो नहीं तो तुम्हें शैतान उठा ले जाएगा!!” और भगवान की लीला देखो कि उसी समय शैतान उधर से निकल रहा था और पिता जब तक कुछ समझते दोनों लड़कों को वह उठा ले गया। जब वह घर पहुँचे तो माँ ने पति को अकेला आया देखकर बेटों के बारे में पूछा। पहले तो उन्होंने कहा कि उन्हें लड़कों के बारे में कुछ पता ही नहीं है। लेकिन जब माँ रोने लगी तो बच्चों को गाली और श्राप देने की बात बच्चों के ग़ायब हो जाने के साथ-साथ बता दी। घर में कोहराम मच गया। 

अगले दिन बहन ने अपने माता-पिता से कहा, “चाहे मुझे अपनी जान से भी हाथ धोना पड़े, मैं अपने भाइयों की तलाश में जाऊँगी।” 

माँ-बाप ने उसे बहुत समझाया, डराया, लेकिन वह टस से मस न हुई और थोड़ा बहुत खाना अपने साथ लेकर भाइयों की खोज में चल पड़ी। 

चलते-चलते वह एक महल के सामने पहुँची। जब वह अंदर पहुँची तो उसे एक आदमी दिखलाई पड़ा। उसके पास जाकर लड़की ने नम्रता से पूछा, “क्या आपने मेरे दो भाइयों को देखा है? जिन्हें शैतान उठा ले आया है!”

“मुझे नहीं मालूम कि मैंने उन्हें देखा है या नहीं। अंदर चौबीस बिस्तर लगे हैं, तुम इस दरवाज़े से भीतर जाकर ख़ुद ही देख लो कि वह वहाँ हैं या नहीं।” ऐसा कहते हुए उस आदमी ने एक लोहे के दरवाज़े की ओर इशारा कर दिया। लड़की दरवाज़े से भीतर गई तो उसने अपने दोनों छोटे भाइयों को बिस्तर पर लेटे देखा। वह ख़ुशी से उछल पड़ी, “तो तुम लोग ठीक-ठाक हो!” भाइयों ने कहा, “ज़रा ध्यान से देखो कि हम कितने ठीक हैं!” लड़की ने बिस्तर के नीचे देखा। वहाँ तो आग की लपटें थीं, जो उसके भाइयों को धीरे-धीरे झुलसा रही थीं, वे वहाँ से निकल भी नहीं सकते थे! 

वह सुबक उठी, “मैं तुम्हें इस दुर्गति से कैसे बचाऊँ? क्या करूँ?” 

“अगर कोई हमारे लिए सात साल का मौन व्रत रख ले, इतने लम्बे समय तक एक शब्द भी न बोले तो हमें इस नर्क से छुटकारा मिल सकता है। लेकिन यह बहुत काम कठिन और असम्भव है।” एक भाई ने भर्राए गले से बताया। यह सुनकर उनकी बड़ी बहन सिर झुकाकर कमरे से बाहर निकल आयी। बाहर पहरे पर बैठे हुए आदमी ने उसे इशारे से पास बुलाना चाहा लेकिन वह हाथ जोड़कर कुछ बुदबुदाते हुए बाहर निकली और महल से बाहर चली गयी। 

अब वह घर भी नहीं लौटी। चलते-चलते वह एक घने जंगल में जा पहुँची और थककर एक पेड़ के नीचे सो गई। कुछ समय बाद उधर से एक राजा गुज़रा, जो जंगल में शिकार खेलने आया था। उसने एक सुंदर नवयुवती को पेड़ के नीचे सोया देखा तो उसके पास चला गया और उसे जगाया। राजा ने लड़की से पूछा कि वह इस घने जंगल में क्या कर रही है? इस पर लड़की ने इशारे से उसे समझाया कि उसका अपना कोई नहीं है और वह बोल भी नहीं सकती है। राजा ने पहले तो उसे केवल गूँगी और बहरी समझा था लेकिन जब उसने तेज़ आवाज़ से साथ चलने की बात पूछी तो युवती ने हाँ में सिर हिलाया। अब राजा समझ गया कि वह बहरी तो नहीं है, बस बोल नहीं सकती। वह उसे अपने साथ अपने महल में ले आया और माँ को बताया कि उसे जंगल से यह सुंदर, गूँगी लड़की मिली है, जिसे वह अपने साथ ले आया है और उससे शादी भी करेगा। 

 माँ ने कहा, “मैं ऐसा हरगिज़ नहीं होने दूँगी।”

“लेकिन यहाँ तो सिर्फ़ मेरा ही हुक्म चलता है, माँ! राजा कौन है?” 

और राजा ने उस युवती से शादी भी कर ली। 

सास बेहद दुष्ट और क्रूर थी, बहू पर ज़ुल्म बढ़ाने में उसने कोई कोर-कसर न रखी। लेकिन बहू चुपचाप सब ज़ुल्म सहती रही किसी से कुछ कह भी तो नहीं सकती थी, जब तब अपने झुलसते हुए भाइयों की याद उसे आ जाती थी और उसका चुप रहने का निश्चय और पक्का हो जाता था। 

कुछ समय बाद युवती गर्भवती हो गई। अब सास ने एक षड्यंत्र रचा। उसने अपने बेटे राजा के पास एक ऐसी चिट्ठी भिजवाई जिसमें यह लिखा था कि किसी दूर के शहर में उसका तख़्ता पलटने की साज़िश चल रही है। यह ख़बर पाकर राजा तुरंत दूसरे शहर में जाकर सारा माजरा समझने और निपटाने के लिए चल पड़ा। राजा के जाने के बाद युवती ने एक बेटे को जन्म दिया। अब राजमाता ने दाई के साथ मिलकर नवजात शिशु को एक बक्से में बंद करवा कर महल की छत पर फिंकवा दिया और अपने बेटे को ख़बर कर दी कि उसकी गूँगी रानी ने एक पिल्ले को जना है। 

युवती बेबसी में सब कुछ सहती रही एक शब्द भी मुँह से निकालते ही व्रत भंग जो हो जाता। चुपचाप सारे कष्ट वह सहती रही। उधर राजा का दूत राजाज्ञा लेकर लौटा कि कुछ पैसे-रुपए देकर गूँगी रानी को राज्य से निकाल दिया जाए, अब राजा उससे कोई सम्बन्ध नहीं रखना चाहता। अब तो सास को बहाना मिल गया उसने एक विश्वासपात्र सेवक को बुलाकर युवती रानी को समुद्र के किनारे ले जाकर मार डालने की आज्ञा दी। उससे कहा कि इस लड़की को मारकर इसका शव समुद्र में फेंक देना और इसके सारे कपड़े लाकर मुझे दे देना। जब नौकर रानी को लेकर समुद्र के पास पहुँचा तो उसने रानी से कहा, “रानी साहिबा आप सिर झुका लें। मुझे आपको मार देने की आज्ञा मिली है।” रानी ने आँसू छलकाते हुए अपने दोनों हाथ जोड़ लिए और घुटनों पर बैठकर सर झुका लिया। यह दृश्य देखकर सेवक का हृदय दया से भर आया। उसने सर झुका कर बैठी रानी के सारे बाल काट लिए कपड़े उतरवा कर अपने कपड़े उसके पहनने के लिए छोड़ दिए। रानी के सब कपड़े और बाल समेट लिए और लौट गया। बेचारी बिना लम्बे बालों वाली रानी सेवक के मर्दाने कपड़े पहनकर वहीं निर्जन समुद्र तट पर बैठी रही। 

बड़ी देर बाद उसे एक जहाज़ आता दिखाई दिया। रानी के संकेत देने पर वह पास आया। उस जहाज़ में सैनिक थे जो कहीं लड़ने जा रहे थे। उसके कटे बाल और पुरुषों के कपड़े देखकर सैनिक उसे भी पुरुष ही समझ बैठे। रानी ने इशारों से समझाया कि उसकी नाव तूफ़ान में टूट कर बह गई और वह किसी तरह जान बचाकर वहाँ बैठा था। सैनिकों ने कहा, “ठीक है तुम बोल नहीं सकते तो कोई बात नहीं, लड़ाई में तो हमारी सहायता कर ही सकते हो न!” और रानी को साथ। लेकर जहाज़ चल पड़ा। 

जब सैनिक युद्ध के मैदान में उतरे तो युवती ने भी बहादुरी से उनका साथ दिया। सभी उसकी बहादुरी पर चकित थे। जब लड़ाई ख़त्म हो गई तो सैनिक बनी रानी ने अपने को छोड़ दिए जाने की प्रार्थना की। बहादुरी का इनाम देकर उसे सेना से आज़ाद कर दिया गया। 

एक नई जगह पहुँचकर पुरुषवेशी रानी फिर एकदम अकेली हो गई थी। वह समझ नहीं पा रही थी कि कहाँ जाए? क्या करे? रात में उसने एक खंडहर घर देखा और उसमें घुस गई। जब रात कुछ गहराई तो उसे पैरों की आहट सुनाई देने लगी। उसने चुपके-चुपके इधर-उधर देखा तो उसे तेरह लुटेरे दिखाई पड़े जो पिछवाड़े के रास्ते बाहर जा रहे थे। वह चुपचाप सब देखती रही। जब वे चले गए, तब वह खंडहर घर के उस भाग में गई जहाँ से लुटेरे निकले थे। वहाँ उसने देखा कि खाने-पीने का सामान तेरह जगह ऐसे सजा कर रखा हुआ हो मानो दावत होने वाली हो। उसने सभी थालियाँ में से थोड़ा-थोड़ा खाना लेकर इस तरह खाया कि लुटेरों को इस बात का पता न चले कि। खाना खाया गया है लेकिन यहाँ उससे एक भूल हुई कि वह अपना चम्मच एक थाली में छोड़ आई। पेट भर खाकर वह फिर अपनी छुपने वाली जगह में चली गयी। 

आधी रात के बाद लुटेरे वापस लौटे। एक लुटेरे की नज़र थाली में पड़े चम्मच पर पड़ गई। वह बोल उठा “वह देखो ज़रूर यहाँ कोई घुसा था!”

दूसरा लुटेरा बोला, “अब ऐसा करते हैं कि हममें से एक यहीं पर रुक कर पहरा दे और सब लोग काम पर चले जाएँ।”

और उन्होंने ऐसा ही किया। 

जब छुपी लड़की को लगा कि सारे लुटेरे चले गए हैं तब वह फिर बाहर निकल आई। उसे देखते ही पहरे पर रुका हुआ लुटेरा बोल उठा, “अरे दुष्ट तनिक ठहरो, मैं तुम्हारी अच्छी तरह ख़बर लेता हूँ।”

लड़की डर गई लेकिन। उसको अपने मौनव्रत की याद थी। उसने इशारों से इस लुटेरे को समझा दिया कि वह गूँगी है और रास्ता भटक कर यहाँ आ पँहुची है। 

लुटेरे को दया आ गई उसने उसे तसल्ली दी और साथ ही खाना-दाना भी दिया। जब सारे लुटेरे लौटे तो उन्होंने सारी बात सुनी-गुनी। लुटेरों के सरदार ने उससे कहा, “अब तुम यहाँ आ ही गए हो तो तुम्हें हमारे साथ ही रहना होगा (वह आदमियों के वेश में थी न!) तुम्हें हमारा ठिकाना मालूम हो गया है, यदि भागने की कोशिश करोगे तो तुम्हें मार दिया जाएगा।”

लड़की बेचारी क्या करती? उसे मानना ही था। लुटेरे उसे कभी अकेला न छोड़ते थे कोई न कोई लुटेरा उसके साथ ही रुकता था। 

कुछ दिन बाद लुटेरों के सरदार ने बताया की दो दिन बाद वे लोग कोई बड़ा हाथ मारने जा रहे हैं। वे एक राजा के महल पर डाका डालने वाले हैं और वहाँ सबको ही चलना होगा, नए शामिल हुए लड़के को भी। 

जब लड़की ने उस राजा का नाम और पता सुना जहाँ डाका डालना था तो वह समझ गई कि यह राजा और कोई नहीं उसका पति ही है। उसने ख़तरे की सूचना देते हुए किसी तरह एक चिट्ठी तुरंत वहाँ भेज दी। ख़तरे की जानकारी मिलने पर महल में सुरक्षा का पूरा प्रबंध कर लिया गया। जब लुटेरे महल के मुख्य द्वार पर पहुँचे तो द्वार पर मोर्चा बँधा था। किसी तरह अंदर पहुँचे तो वहाँ अँधेरा था और इधर-उधर सिपाही-पहरेदार मुस्तैद थे। कई डाकू-लुटेरे मारे गए, जो बच गए वे जान बचा कर ताबड़तोड़ भागे। पुरुष वेशधारी रानी वहीं रुक गई लेकिन उसको इस रूप में भला पहचानता कौन था? हथकड़ी-बेड़ियाँ लगाकर उसे जेल में डाल दिया गया। वह बेचारी अपनी कोठरी के झरोखे से अपने लिए बनाए जा रहे फाँसी के तख़्ते को देखती रहती। उसके मौन व्रत के सात साल भी अब एक दिन बाद ही पूरे होने वाले थे। रो-धोकर इशारों ही इशारों में युवती ने अपनी फाँसी का दिन एक दिन बढ़वाने की भीख माँगी राजा ने भी दया दिखलाते हुए उसे एक दिन की मोहलत दे दी। उस दिन वह फाँसी के तख़्ते की ओर ले जायी जाने लगी। एक सीढ़ी चढ़ने के बाद उसने एक घंटे की मोहलत और माँगी वह मिल भी गई जब एक घंटे के बाद वह तख़्ते की ओर। फिर बढ़ने लगी, तभी दो योद्धा वहाँ आ पहुँचे और राजा से कुछ कहने की आज्ञा। माँगी। 

“बोलो क्या कहना चाहते हो?” राजा ने पूछा। 

“वह आदमी (रानी ही डाकू के वेश में थी) फाँसी पर क्यों चढ़ाया जा रहा है?” 

उन्हें डाके की सारी बात बता दी गई। 

अब दोनों योद्धाओं ने कहा, “क्षमा करें राजा जी, यह डाकू नहीं बल्कि हमारी बहन है!” ऐसा कहकर उन्होंने अपनी बहन की सारी कहानी सुना दी कि क्यों उसने सात वर्ष का मौन व्रत धारण किया था। 

फिर वे अपनी बहन से बोले, “दीदी अब तुम बोलो। हम सुरक्षित हैं, हम स्वतंत्र हैं!”

रानी की हथकड़ियाँ और बेड़ियाँ खोल दी गईं। उसने फाँसी होती देखने आई सारी जनता के सामने कहना शुरू किया, “मैं राजा की ब्याहता पत्नी हूँ। मेरी दुष्ट और निर्दय सास ने मेरा बच्चा मरवा दिया और मेरे पति को यह ख़बर भेज दी कि मैंने पिल्ला जना है। महल की छत पर एक छोटे बक्से में इस बात का सबूत है कि मैंने पिल्ला जना था या बच्चा!”

उसी समय सेवक दौड़ाए गए। महल की छत से बक्सा मँगवाया गया और जब बक्सा खोला गया तो उसमें एक शिशु का कंकाल था!!! सारी जनता चिल्ला उठी, “इस बहादुर और दयालु रानी के बदले उस बुढ़िया और दाई को बाँधो, जेल में डालो, मारोऽऽमारोऽऽऽ!”

और हुआ भी, वही दोनों दुष्ट स्त्रियाँ काल कोठरी में डाल दी गईं और युवती फिर से महल में रानी बनी। उसके दोनों भाई राजा के ख़ास दरबारी बना दिए गए। 

॥जैसे बहन को मौन व्रत का फल मिला वैसे ही सबके व्रत फलें॥

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