एक सँकरा पुल
सरोजिनी पाण्डेययह जगत प्रबल जल की धारा,
और जन्म मरण तट इसके हैं,
करना है पार इसे सबको
और जीवन सँकरा -सा पुल है,
जल का होता है वेग प्रबल,
यह मन में भय उपजाता है,
लख करके इसका रौद्र रूप,
अक़्सर मानव डर जाता है.
पर एक सूत्र है बहुत सरल
यदि सचमुच तुम उसको मानो,
होगा उस पार सहज जाना,
यदि बात मेरी तुम ना टालो,
नीचे मत देखो धारा को,
निज शीश उठाकर सतत चलो.
छोटे-छोटे डग भरकर के,
मंथर गति से बस बढ़े चलो,
भटकाव अगर मन में होगा
हट गया ध्यान यदि पग पर से
जीवन की वेगवती धारा,
तुमको भी बहा लेगी झट से,
गिर गए कभी यदि धारा में,
तो हाथ न कुछ भी आएगा,
पीड़ा से होंगे अंग शिथिल
फिर कौन पार पहुँचाएगा?
यदि पानी कुछ ऊपर आया,
वह चरण चूम बह जाएगा,
जीवन का परम लक्ष्य तुमको,
बस इसी भाँति मिल पाएगा।
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