क्षितिज

01-07-2020

क्षितिज

राजीव डोगरा ’विमल’ (अंक: 159, जुलाई प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

जीवन क्षितिज के अंत में 
मिलूँगा फिर से तुमको,
देखना तुम
मैं कितना बदल सा गया हूँ
मिलकर तुमको।


जीवन क्षितिज के अंतिम 
छोर में देखना
मेरे ढलते जीवन की 
परछाई को,
कितनी बिखर सी गई है
मिलकर तुमको।


जीवन क्षितिज के अंत में 
देखना मेरी 
डगमगाती साँसों को,
कितना टूट सी गई है 
मिलकर तुमको।

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