दिव्य दृष्टि

01-04-2021

दिव्य दृष्टि

राजीव डोगरा ’विमल’ (अंक: 178, अप्रैल प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

मैं जहाँ देखता हूँ

मुझे तुम ही नज़र आती हो,

कभी दुर्गा बन

सिंह पर सवार

हँसती मुस्कुराती हुई,

तो कभी महाकाल के

वक्ष स्थल पर पाँव रख

महाकाली बन

अट्टहास करती हुई।

कभी सुना है तुझे

मंदिर की गूँजती घण्टियों  में

हूँ हूँ का नाद करते हुए।

कभी महसूस किया है

तुमको बहती हल्की

नम हवाओं में

संपूर्ण विश्व का

ध्यान करते हुए।

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