बदलता हुआ वक़्त

01-09-2020

बदलता हुआ वक़्त

राजीव डोगरा ’विमल’ (अंक: 163, सितम्बर प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

वक़्त के पन्नों पर
सब कुछ बदल जाएगा
जो लिखा है नसीब में
वो भी मिल जाएगा।
सोचा न था जो कभी
वो भी कुछ-कुछ
खोकर मिल ही जाएगा।
सँभाल सकते हो तो
सँभाल लेना उस वक़्त को
जो खोने वाला है।
क्योंकि खोए हुए
वक़्त के साथ
अपने भी खो जाते हैं
और पराए भी
अपने बन जाते हैं।
मगर याद रखना
बदलते हुए
वक़्त के साथ
तुम भी बदल मत जाना,
पकड़ा है
जो हाथ हमारा
छोड़ कर किसी और के
न हो जाना। 

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