आंतरिक दर्द

01-04-2021

आंतरिक दर्द

राजीव डोगरा ’विमल’ (अंक: 178, अप्रैल प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

मैं कभी-कभी 

निःशब्द हो जाता हूँ। 

समझ नहीं आता 

क्या लिखूँ, 

और किसके बारे में लिखूँ ।

 

जिनको देखकर

शब्दों के जाल बुनता था, 

वो ही आज मुझे

निःशब्द कर चले गए।

 

जिनको सोच कर

मेरा अंतर्मन नए-नए

भावों को उद्वेलित करता था।

वो ही आज मुझे

भावों से हीन करके चले गए।

 

जिनके लिए मैं

समझदार बनता था,

वो ही आज मुझे 

नासमझ मान कर

कही दूर चले गए।

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
नज़्म
बाल साहित्य कविता
सामाजिक आलेख
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में