रग-रग में कब बस गया

01-10-2025

रग-रग में कब बस गया

मधु शर्मा (अंक: 285, अक्टूबर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

रग-रग में कब बस गया पता चला नहीं, 
दूर-दूर तक खोजा मगर वो मिला नहीं। 
 
चल-चल के पाँव में चाहे पड़ गये छाले, 
पल-पल साथ तुम्हारा, कोई गिला नहीं। 
 
घूँट-घूँट पिलाये तो बात भी बने, साक़ी, 
नस-नस नशे में चूर हो गई यूँ पिला नहीं। 
 
हँस-हँस के रुख़सत किया है जब से उसे, 
छुप-छुप रोएँ, मिला प्यार का सिला नहीं। 
 
ज़ार-ज़ार रोते बेघर बच्चों को देख कर भी, 
ज़र्रे-ज़र्रे में रहने वाले का दिल पिघला नहीं। 
 
दर-दर की ठोकरें खाईं दरगाहों में मंदिरों में, 
उठ-उठ के गिरते रहे मगर बुत वो हिला नहीं। 
 
डर-डर के मिलते हैं यार-दोस्त मेरे मुझसे, 
घर-घर चर्चा मेरी, नया ये सिलसिला नहीं।

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