उम्मीद

धीरज ‘प्रीतो’ (अंक: 267, दिसंबर द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

ढेर सारी प्यार भरी रातों के बीच 
जब अचानक तुम्हारी छुअन से वो सिहर उठे
हुआ क्या इस बीच तुम मंथन करना
कहाँ कुचला है तुमने उसके मासूम जज़्बातों को
कहाँ झुठला दिया तुमने इस जहाँ को उसकी आँखों में
कब बन गए फूल अंगारे
कब लग गए चाबुक तुम्हारी शरारतों को
जब याद आ जाए वो मनहूस क्षण
होना नतमस्तक और देखना उसकी आँखों में
करना एक नई शुरूआत 
कहना मुझे तुमसे मोहब्बत आज भी है
जबकि पता है, यह इलाज नहींं
परन्तु एक उम्मीद अवश्य है। 

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