पेड़ गाथा
धीरज ‘प्रीतो’
पेड़ों की गाथाएँ बताने वाले बहुत हैं
कल ही एक कवि बता रहा था
पेड़ों का भी वर्गीकरण कर दिया गया है
आज़ादी के पहले वाले पेड़ और
आज़ादी के बाद वाले पेड़
उसके अनुसार
आज़ादी के पहले वाले पेड़
वाक़ई पेड़ हुआ करते थे लंबे और चौड़े
इनका अपना परिवार हुआ करता था
उन पेड़ों में ख़ूब शाखाएँ,
शाखाओं पर घोसलें, घोसलें भी कई तरह के,
घोंसलों में चिड़िया, तोता, मैना, कबूतर, कौवा
इनकी छाया में गाय, भैंस, बकरी, इंसान, इंसानों के बच्चे
खेला कूदा करते थे
वहीं आज़ादी के बाद वाले पेड़
बौने होने लगे, वीरान होने लगे
ये जंगलों से निकल कर घरों में आ गए,
सड़क किनारे आ गए
इन पेड़ों का अपना परिवार विलुप्त हो गया
इन पेड़ों में अब पेड़ से ज़्यादा फ़र्नीचर दिखता है
तख़त, खाट दिखती है, सजावटी सामान दिखता है
इनमें सड़क दिखती है, महल दिखता है
कहीं कहीं सरकारी दफ़्तर दिखता है
अस्पताल दिखता है
शहरों के बीच वाला पार्क दिखता है
छत का बैठका, आँगन और द्वार दिखता है
बस इनमें नहीं दिखता है तो
एक पेड़ और उसका परिवार।
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