शृंगार

धीरज ‘प्रीतो’ (अंक: 261, सितम्बर द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

तुमने देखा है 
शृंगार करती हुई एक स्त्री को? 
मैंने देखा है
और पाया कि
जब कोई स्त्री शृंगार करती है तो
उसके चूड़ियों की खन खन से संगीत बनता है
उसके माथे की बिंदी सूरज को ताक़त देती है
उसके होंठों के रंग से इंद्रधनुष सजता है
कान के झुमके देते है ग्रहों को शुभ नक्षत्र 
घने घुँघराले बालों से निशा पोषित होती है
जब वो सज सँवर इठलाते हुए मुस्कुरा दे
तो फ़ैल जाती है एक ख़ुश्बू, एक रोशनी
शृंगार करती हुई स्त्रियाँ वीरांगनाएँ होती हैं
और शृंगार एक युद्ध
जिसमें निपुण होती है वो स्त्रियाँ
जो प्रेम में होती हैं। 

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