सीखते सिखाते हुए 

01-01-2025

सीखते सिखाते हुए 

धीरज ‘प्रीतो’ (अंक: 268, जनवरी प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

मैं सीखने पर आऊँ तो क्या कुछ नहीं सीख सकता
एकलव्य जैसा धनुष चलाना या कर्ण जैसा दान देना
मैं आसानी से सीख सकता हूँ कृष्ण सा प्रेम करना
मीरा सा इंतज़ार करना थोड़ा कष्ट सहकर सीख सकता हूँ
वियोग की पीड़ा को हँसी के पीछे छुपाना सीख लूँ राधा जैसा
क्रूरता चंगेज जैसी चुटकियों में
षड्यंत्र रचना चाणक्य से बेहतर, 
राज करना अशोक, अकबर से अति उत्तम 
बसा दूँ सिंधु जैसी सभ्यता मुस्कुराते हुए
मैं सब कुछ सीख लूँ बड़ी चपलता से 
बस कोई मुझे सुझाए और सिखाए। 

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