छह फ़ुट की क़ब्र
धीरज ‘प्रीतो’
ये कैसा ज़ुल्म हो रहा है मेरे साथ
जब तक जीवित था, रहता था,
एक ऊँचे, लंबे और चौड़े मकान में
लेकिन अब मरने के बाद
छह फ़ुट में भर दिया गया हूँ
ऊपर बस मिट्टी ही मिट्टी दिखती है
न हिल डुल सकता हूँ, न साँस ले सकता हूँ
मुझे मरने के बाद भी मारा जा रहा है
मेरे राम, बरसात का पानी भी
मुझ तक आते आते सूख जाता है
मेरी क़ब्र पर एक पौधा तक नहीं लगाया
धूप सीधी मेरे चेहरे पर आती है
न संगीत सुनाई देता है न किसी बच्चे की किलकारी
न किसी के रोने की आवाज़ ही सुनाई देती है
अरे कम से कम अल्लाह हू अकबर या
जय श्री राम ही सुनाई दे
तो मालूम चले कि बाहरी दुनिया अभी भी जीवित है
जैसे बार बार खोदी जाती है सड़क
किसी श्रमिक को लगा दो, मेरी क़ब्र ही खोदता रहे
मुझे भी कोई खटपट सुनाई पड़े
कोई गंध या कोई ख़ुश्बू ही इसी बहाने मेरी नाक पर पड़े
चलो कुछ नहीं तो बस इतना कर दो
“मैं प्रेम के अभाव में मर गया” —
मेरी क़ब्र पर इतना लिखवा दो, वगरना
मेरे प्रियजनों सब सचेत हो जाओ
मैं करूँगा विद्रोह मुर्दों संग मिलकर।
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