मन है

धीरज पाल (अंक: 276, मई प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

मन है
तुम से बात करने का
झगड़ा करने का
सदियों तक तुम से रूठ जाने का मन है
 
मन है साइकिल पर भारत भ्रमण करने का
पहाड़ों पर रात बिताने का मन है
बर्फ़ का घर बनाने
एक जंगल रोपने का मन है
 
मन है माँ के पैर दबाऊँ
पिता की पुण्यतिथि पर नृत्य करने का मन है
रिश्तेदारों को चिढ़ाने का
पड़ोसियों को आईना दिखाने का मन है
 
मन है वोट न करने का
सरकारें गिराने का मन है
परशुराम बन 
नेताओं का वध करने का मन है
 
मन है सरहदों पर तेज़ाब अढोलने का
धर्मों की क़ब्रें सजाने का मन है
परमाणु बमों को पानी में भिगोने का
इंसानियत बचा लेने का मन है
 
मन है हिंदी हो जाने का
भाषा जैसा अमर हो जाने का मन है
कोई मुझे पढ़ सके 
किताब हो जाने का मन है। 
 
मन है कुंभकरण सा सोने का
अश्वत्थामा सा भटकने का मन है 
गंगा तीरे बस जाने का
मर जाने का मन है। 

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