स्त्री तेरे कितने रंग
धीरज ‘प्रीतो’
जब कुछ नहीं था दुनिया में
था दुनिया का रक्त/लाल रंग
फिर एक स्त्री आई दुनिया में
जिसके न जाने कितने रंग
कभी साँवला, कभी कलूटा, कभी सफ़ेद,
कभी गुलाबी ये सब उसके ऊपरी रंग
असल रंग तो भीतर छुपा है
जिनमें इन्द्रधनुष से गहरे सात रंग
पहला रंग ममता का है, दूजा रंग बेटी और बहना का है
तीसरा रंग है सखी सहेली, चौथे रंग में प्रेमिका भोली
पाँचवाँ रंग पत्नी का है, छठा रंग में बहू अनोखी
सातवाँ रंग मर्दानी है, काली, चंडी, अभिमानी है
इतने पर भी बाज़ न आए,
मर्दों ने इनके नए रंग बतलाए
कभी वेश्या, कभी बेवफ़ा, कभी है कुलटा नारी ये
रंग बिरंगे चेहरे इनके, मर्दों ने ख़ूब सजाए
इतर इन सब बातों के, मुझको बस यही है कहना
नारी ही संसार का रंग है जिनसे रँगा ये सारा जग है।
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