गाँव और शहर
धीरज ‘प्रीतो’
गाँव की टूटी फूटी पगडंडियाँ
गाँव वासियों से प्यार बहुत करती हैं
अगर ये टूटी फूटी न हों तो
गाँव वाले झट से शहर पहुँच जाएँगे
ऐसा नहीं है कि हमारा गाँव शहर से नफ़रत करता है
हाँ मगर शहर ज़रूर हमारे गाँव से नफ़रत करता है
तभी तो शहर गाँव वासियों के मन में लालच भरता है
उन्हें प्रतिबद्ध करता है कि
अपनी मिट्टी छोड़ कर चले आने को
ये भ्रम ना रहे कि शहर हमारी मिट्टी है
शहर हमारा फर्श है, कंक्रीट है, सड़क है
तभी तो आसमान के ज़रा से रोने भर से
शहर लबालब हो जाता है पर
मिट्टियाँ कहाँ होती हैं लबालब
गाँव से निकलते वक़्त
आँखें नम हो जाती हैं
और होनी भी चाहिएँ
यही नमी हमें शहर के चकाचौंध से बचाती है।
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