एक लड़का
धीरज ‘प्रीतो’
उसका अपना एक कमरा है
उसका अपना एक दरवाज़ा
उसकी अपनी एक खिड़की
उसका अपना एक पिंजरा
मैं समझता था
वो लड़का आज़ाद है
उसका अपना एक भूतकाल है
उसका अपना एक दुख
उसकी अपनी एक ज़िम्मेदारी
उसका अपना एक मुखौटा
मैं समझता था
वो बस एक ख़ुशमिज़ाज लड़का है
उसका अपना एक गाँव है
उसका अपना एक परिवार
उसकी अपनी एक ज़िन्दगी
उसकी अपनी एक जद्दोजेहद
मैं समझता था
वो लड़का घुमक्कड़ है।
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