बोध

धीरज पाल (अंक: 276, मई प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

इस अतुल संसार हेतु
दीप प्रज्ज्वलित करने की कोई मंशा नहीं मेरी
न ही धर्मों की रूपरेखा बदलने की लालसा मुझ में
 
अभी सम्पूर्ण समय स्वयं के परीक्षण में 
समेट रहा हूँ
 
मैं पहचानता हूँ स्वयं को
नफ़रत के बग़ैर मुझ से जागा नहीं जाता 
और किसी से प्रेम किए बग़ैर नींद नहीं आती 
मैं पुरुषवादी धारणाओं का पुरुष नहीं 
न ही ‘मिसाजनी’ और न ही रूढ़िवादी हूँ 
मैं कुछ कुछ इनके मध्य का हूँ 
कोशिश करते इन धारणाओं से दूर जाने 
बुद्ध हो जाने के लिए। 

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