आग

धीरज ‘प्रीतो’ (अंक: 267, दिसंबर द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

वो छोटी सी आग जो कहीं जल रही है
तुम्हें दिख रही है? 
तुम देख पा रहे हो उस आग से कितनी 
जीवन शाखाएँ निकल रही है? और
कितनी ज़िंदगियाँ राख हो रही हैं? 
कहीं कोई जुगनू बन रहा होगा उस आग से
तो कहीं कोई सूरज बन दहक रहा होगा
किसी के लहू में बह रहा होगा 
किसी के दिल में सुलग रहा होगा
वो आग जो एक परमाणु से उपजी थी
जिसे देखा था प्रथम होमो सेपियंस ने
वही आग चिताओं को जला रही है
वही आग रास्ता दिखा रही है
देखो, आग हमारा भविष्य बना रही है। 

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