अब तक की जीवनगाथा

15-10-2024

अब तक की जीवनगाथा

धीरज ‘प्रीतो’ (अंक: 263, अक्टूबर द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

मेरी देह ने धारण की है
अभी नई नई जवानी
ख़ून गर्म है
दिमाग़ असंतुलित और
हृदय स्पंदन स्टैथोस्कोप को मुँह चिढ़ाता है
 
आँखों से ताड़ लेता हूँ अच्छा और बुरा
परन्तु मन इख़्तिलाफ़ नहीं करता
इसलिए पाँचों इंद्रियाँ लिप्त रहती है
दोनों कार्यों में
 
सैर सपाटा, मारपीट, गाली गलौच, हुड़दंग बाज़ी, 
खेलकूद और प्रतियोगिता में प्रथम न सही लेकिन
औवल श्रेणी में ज़रूर आता हूँ
 
हाँ ज़रा लेन देन, हिसाब किताब में फिसड्डी हूँ
किसको कितना सुख दिया, 
किससे कितना दुःख भोग रहा हूँ
कोई आँकड़ा नहीं मिल पाता
 
जीवन इन्हीं रत्नों का नाम होता
ख़ूब कटती ज़िन्दगी
पर साब! मरद नसीब में काँटे लेकर जन्मता है
और एक दिन ये काँटे चुभ ही जाते हैं
 
पिता जी के गुज़र जाने पर ये काँटा चुभ ही गया
रफ़्तार थम गई, अल्हड़पन फुर्र हो गया
रोम रोम दुत्कार से भर गया
कमीज़ के जेब रुपिया रुपिया का हुंकार भरने लगे
पैर फिटन हो गए
हाथ लपक लेना चाहते थे
दर्जनों रोज़गार
 
ज़िन्दगी से लड़ते झगड़ते
बेरोज़गारी की आग में झुलसा जा रहा हूँ
अंग भंग हो गए, अस्थिपंजर ढीले
 
ओ मेरी प्यारी अम्मा, किसी दिन लीप दो मुझे
और नया कर दो। 

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