बताओ मैं कौन हूँ?
धीरज ‘प्रीतो’
कुछ बूँद छिड़क कर आँसुओं के
ख़ुद को ताज़ा बनाए रखता हूँ
कोई आयेगा लेने हमें भी
यही सोच कर ख़ुद को
अनाथालय में सजाए रखता हूँ
तो बताओ मैं कौन हूँ?
मैं अपने माँ बाप का कौन हूँ
जिन्होंने पैदा होते ही छोड़ा मुझे
मैं समाज का कौन हूँ
जो मुझे देखते तक नहीं
मैं सरकार का कौन हूँ
जिनको हमारी फ़िक्र ही नहीं
बताओ मुझे मेरा घर कहाँ है
मेरे भाई बहन कहाँ है
क्या मैं किसी का पाप हूँ
क्या मैं नाजायज़ हूँ
या मैं सदा के लिए लावारिस हूँ
मैं जब भी सोचता हूँ इन बातों को
क्यों मैं अपनी सोच तक ही सीमित रह जाता हूँ
क्यों मैं किसी को नज़र नहीं आता
क्या मैं भूत हूँ
क्या मैं अदृश्य हूँ
मैं जो भी हूँ
मैं जैसा भी हूँ
मैं भी इंसान हूँ
मुझे मेरा हक़ चाहिए
मेरे गरिमामयी जीवन जीने का हक़
मुझे हक़ चाहिए अनाथ न कहे जाने का
मैं शुक्रिया करता हूँ
अनाथालय का
यहाँ वाले अपने माँ बाप का
यहाँ के अपने भाई बहनों का
यहाँ के अपने दोस्तो का
पर ध्यान रहे मुझे मेरा हक़ चाहिए।
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