क्रांति

15-09-2024

क्रांति

धीरज ‘प्रीतो’ (अंक: 261, सितम्बर द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

देश पर जब छा जाएगी मनहूसियत
लोकतंत्र को जब लटका दिया जायेगा तानाशाह के वृक्ष पर
जब नागरिक बनकर रह जाएँगे सिर्फ़ जनता
जब सम्मान, अधिकार, अभिव्यक्ति लगने लगेंगे कूड़े के ढेर
जब सिविल नौकरों की देह से उठने लगेगी गंध
जब आकाश को देखने के लिए लेनी होगी परमीशन
जब देश के क़ानूनों पर पैठ बना लेगा यमराज
जब हावी हो जाएगी भारतवर्ष पर धर्म की राजनीति
जब विद्यालयों से ज़्यादा दिखने लगेंगे मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर
तब, तब एक प्रश्न उठता है
हे मेरे ग़ुलाम मित्र क्या तुम दे सकोगे
जब मैंं माँगूँगा तुमसे तुम्हारा लहू
छिड़कने को भारतवर्ष की देह पर
ताकि जगा सकूँ एक और क्रांति। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में