अंत कहाँ पर करूँ
धीरज ‘प्रीतो’
कहाँ से शुरू करूँ लिखना
मैं गाथा तबाही की
मुग़लों के आक्रमण से
अँग्रेज़ों के आगमन से या
प्रथम विश्वयुद्ध से या
बँटवारे से या
आज़ादी की प्राप्ति से
प्रश्न उतना कठिन नहीं है
शुरूआत है, कहीं से भी की जा सकती है
कठिन यह है कि अंत कहाँ पर करूँगा?
पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण में उठती नफ़रत पर,
हिमालय के दरकने से मरती ज़िंदगियों पर,
भाई को भाई से पृथक करती सीमाओं पर,
देवालयों को दूषित करती मानसिकता पर,
भविष्य मालिका की भविष्यवाणी पर या
आख़िर ये ख़तम होगी मेरी ही मौत पर
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
-
- अंत कहाँ पर करूँ
- अकेलापन
- अदृश्य दरवाज़े
- असल प्रयागराज
- आँखों की भाषा
- आईना
- आख़िरी कर्त्तव्य
- उपनिवेश
- उम्मीद एक वादे पर
- एक लड़का
- कर्ण
- क्या राष्ट्र सच्चा है?
- गड़ा मुर्दा
- गाँव और शहर
- गिद्ध
- गुनाह
- घुप्प अँधेरा
- छह फ़ुट की क़ब्र
- जागती वेश्याएँ
- तीन भाइयों का दुखड़ा
- नदी
- पदार्थ की चौथी अवस्था
- पुतली
- पेड़ गाथा
- प्रियजनो
- प्रेम अमर रहे
- प्रेम और ईश्वर
- बच कर रहना
- बताओ मैं कौन हूँ?
- बदहाली
- बह जाने दो
- बहनो
- बहनो
- बारिश
- बीहड़
- बुद्ध
- बेबसी
- भाग्यशाली
- माँ
- माँगलिक
- मुझे माफ़ कर दो
- मेरा वुजूद
- मेरी कविताओं में क्या है
- मेरी बहन
- मैं आवाज़ हूँ
- मैं तप करूँगा
- मैं भी इंसान हूँ
- मैं स्त्री हूँ
- मैं ख़ुद की हीनता से जन्मा मृत हूँ
- मज़दूर हूँ
- ये दुनिया एक चैंबर है
- राम, तुम मत आना
- लड़ते लड़ते
- शब्द
- शादी का मकड़जाल
- षड्यंत्र
- सूरज डूब गया है
- स्कूल बैग
- स्त्रियाँ
- स्त्री तेरे कितने रंग
- होली—याद है तुम्हें
- ग़रीबी
- विडियो
-
- ऑडियो
-