गुनाह

धीरज ‘प्रीतो’ (अंक: 252, मई प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

मैंने जो किया
जो कर रहा हूँ, जो करूँगा
उससे तुम्हें तकलीफ़ होगी
प्रेम है ही ऐसा विषय
जो करता है वही आनंदित होता है
बाक़ियों के लिए तकलीफ़देह होता है
तुम मुझे आँख दिखाओगे और डराओगे
और तुम ये भी कहोगे मुझसे
तुम्हारे घर में माँ बहन नहीं है क्या
और तुम्हारा ये कहना
साबित करता है तुम्हें प्रेम के
विषय में कोई जानकारी नहीं है
 
मुझे पता है
इस युग में प्रेम करना गुनाह है
पकड़े गए सज़ा होगी
चोरी, मारपीट, हत्या, बलात्कार
आमबात है, इनसे बच सकते हो
 
मैं स्वीकार करता हूँ
बग़ैर किसी डर के
सब के सामने
ईश्वर को साक्षी मानकर कहता हूँ
मैंने किसी से बेहद प्रेम किया है
मैं चाहता हूँ मुझे मार दिया जाए
और बचा लिया जाए इस समाज की बुराइयाँ को और
इस युग को जिसे कलयुग का दर्जा प्राप्त है
उसे क़ायम रहने दिया जाए
 
मुझे याद है
हम बिछड़ते रहे हैं जन्मों जनम
परन्तु हम जुदा नहीं हुए है
हम फिर मिलेंगे अगले जनम
शायद तब हमारे
प्रेम को
रक्षण मिले किसी कृष्ण का। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में