एक रात तुम्हारी बाँहों में

01-06-2025

एक रात तुम्हारी बाँहों में

धीरज पाल (अंक: 278, जून प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

संभोग क्रिया के पश्चात
जब तुम निश्चिन्त हो
मेरे आलिंगन में सो रही थी
तब नींद को तकिए में दबा
मैं सोचता रहा पूरी रात
कि अगली सुबह 
मेरी देह पर
तुम्हारी देह का कितना नमक 
बचा रह जाएगा? 
 
क्या मेरे बाद तुम अपने
अधरों, स्तनों, नाभी और
योनि पर किए मेरे चुम्बन को
याद कर सिसकियाँ भरोगी? 
 
क्या तुम्हारी अंगुलियाँ
मेरे सीने पर रेंगने के लिए
व्याकुलता दिखाएँगी? 
 
इन सब के बीच सबसे अहम सवाल
मैं सोचता हूँ कि
हमारे रक्त समूह जो एक ही है (O+) 
क्या आपस में मिलकर 
दो जिस्म एक जान बन पाएँगे? 

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