प्रेम का महीना और मेरा दुर्भाग्य

01-09-2024

प्रेम का महीना और मेरा दुर्भाग्य

धीरज ‘प्रीतो’ (अंक: 260, सितम्बर प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

जैसे बिन माली पुष्प कहीं के नहीं होते
वैसे तुम्हारे बिन अब मैं भी कहीं का नहीं रहा
और ऊपर से ये कुलच्छनी फरवरी
मुँह चिढ़ाने के लिए साल के शुरूआत में ही आ जाती है
जबकि इसे मालूम है! 
मेरी प्राणेश्वरी जा चुकी है मुझे छोड़ कर
पिछले दिसंबर में
हाय! कितनी निर्लज्ज है ये फरवरी
अभी अठ्ठाइस की हो तो ऐसा हाल, 
तीस की होती न जाने क्या गुल खिलाती
हे फरवरी, तुम अपना पता देकर मुझे कहीं चली जाओ
जब मेरा महबूब आयेगा, मैं तुझे बुलावा भेजूँगा। 

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