प्रेम की सागर तुम

01-08-2024

प्रेम की सागर तुम

धीरज ‘प्रीतो’ (अंक: 258, अगस्त प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

तुम्हारा प्रेम सागर और
मेरा ठहरा हुआ पोखर
तुम दे सकती हो 
इस कलयुग को सतयुग सा प्रेम
जन्म सकती हो 
कुछ राम, कुछ कृष्ण, कुछ बुद्ध
बावजूद इसके
हो सकता है
तुम्हें अहिल्या-सा छला जाए
सीता-सा दुत्कारा जाए
किन्तु मैं पोखर-सा मटमैला प्रेमी
सदा, रहूँगा साथ तुम्हारे
अपनी एक एक बूँद में 
तुम्हारे अस्तित्व को सँभाले। 

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