ठहराव एक विद्रोह

01-09-2025

ठहराव एक विद्रोह

धीरज पाल (अंक: 283, सितम्बर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

ठहर जाऊँ किसी पल कहीं
न चल पाऊँ तुम्हारे साथ साथ
भड़क जाऊँ तुम पर अनायास कभी
मुझे माफ़ कर देना
ज़िन्दगी की उहापोह से
ऊब चुका हूँ
यह कहना चाहता हूँ
मैं अब विश्राम चाहता हूँ
कार्य से, काम से, जंग से, अपने अंग से
बैरी काल से सतत् विद्रोह चाहता हूँ। 

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