पुराने साल का ग़म

01-11-2024

पुराने साल का ग़म

धीरज ‘प्रीतो’ (अंक: 264, नवम्बर प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

ऐसा नहीं है कि हम बहुत तन्हा हैं तुम्हारे बिन
और ऐसा भी नहीं है कि रोया करता हूँ मैं
हाँ कभी कभी तुम्हारी याद आती है
हाँ कभी कभी मन उदास रहता है
कभी कभार अकेले में हँस भी लेता हूँ
और बीच समाज में रो भी लेता हूँ
किन्तु ज़्यादातर ख़ुश ही रहता हूँ
मिज़ाज ही ऐसा है कि दुःख भाता नहीं
 
ये स्थिति थोड़ी ऊहापोह जैसी कह लो या
कहूँ तुम्हारी भाषा में चटपटी सी जान पड़ती है
 
सोचा था नए साल में सब कुछ नया कर लूँगा
पर क्या मालूम था कि तुम्हारी जैसी दिखने वाली एक लड़की
मुझे फिर से समय में पीछे ढकेल ले जायेगी
और सब कुछ वही पुराना पुराना हो जायेगा। 

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