असमंजस

धीरज ‘प्रीतो’ (अंक: 263, अक्टूबर द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

लड़की पक्ष
 
जब तुम काम पर जा रहे होते हो
मैं दरवाज़े पर खड़ी निहारा करती हूँ तुम्हें
 
तुम्हारे चले जाने पर
ये कुछ घंटे जो सिर्फ़ मेरे होते हैं
इनमें मैं निखार सकती हूँ अपना व्यक्तित्व, 
पढ़ सकती हूँ कुछ साहित्य या 
फिर अपने लिए तैयार कर लूँ एक बढ़िया सूट
अफ़सोस! तुम्हारे साथ-साथ चला जाता है
मेरा मन, मेरा प्रेम और मेरी आत्मा भी

तुम्हारे चले जाने और लौट आने के बीच
मैं ख़ुद में ख़ुद को ही ढूँढ़ा करती हूँ
 
सोचती हूँ, किसी दिन तुमसे कह दूँ कि
मुझे तुमसे बेइंतिहा मोहब्बत है, किन्तु, 
काम पर जाते बखत तुम—
मुझे यहीं मेरे पास छोड़ जाया करो
जिसमें मैं पूर्णतः मैं रहूँ। 
 
लड़का पक्ष
 
काम पर जाते समय
तुम्हें दरवाज़े पर खड़ा देख, 
चंद्रमा को धरती से देखने जैसा लगता है
तुम्हारे चेहरे की बेबसी, तुम्हारा ख़ालीपन
तुम्हारी मुस्कुराहट जैसे निमंत्रण हो
शाम को जल्दी घर लौट आने का
 
काम पर जाते समय
मेरे पैर सिर्फ़ मेरी देह को काम पर ले जाते हैं
मेरा प्यार, मेरा समर्पण, मेरी आत्मा, मेरा सब कुछ
यहीं दरवाज़े के भीतर तुम्हारे पास छूट जाता है
 
ऑफ़िस में बैठे-बैठे मुझे तुम्हारी याद सताती है
मैं बस घड़ी-घड़ी घड़ी ताका करता हूँ
 
सोचता हूँ किसी दिन कह दूँ
मुझे तुमसे अत्यधिक प्रेम है
तुम्हारे बग़ैर कुछ अच्छा नहीं लगता
फिर भी काम पर जाते समय
तुम मुझे पूरा-पूरा जाने दिया करो। 

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