घुप्प अँधेरा
धीरज ‘प्रीतो’
कमरे में घुप्प अँधेरा था
न था ख़्याल कोई मन में
दिमाग़ में तेरी तस्वीर थी
मैं फिर भी था अकेला ख़ुद में
न जलता था एक भी दिया कमरे में
थी लगी आग मगर भयंकर मेरे तन में
ख़ाली मन का ख़ाली दर्पण
तेरा ही अक्स दिखलाता है
है अँधियारा कमरे में
फिर भी तू साफ़ नज़र आता है
तख़त के घुन अक़्सर मुझसे बतियाते हैं
कभी मेरा उपहास कभी मेरी प्रसंशा
के गीत गाते है
होकर प्रभावित इनसे
मैं भी कुछ ग़ज़लें तुम पर लिख देता हूँ
कोने में बैठी छिपकली को
रो रो कर मैं सुनाता हूँ
इतना कुछ करके भी
मैं अपने मन को न बहला पता हूँ
करता हूँ कोशिश हँसने की
नाकाम रुदन ही कर पाता हूँ
शांत है मौसम शांत समंदर
शांत है मन का हर कोना फिर भी
मेरा हृदय न जाने किस
तूफ़ान से घबराता है
है पढ़ लिया शायद इसने
दिमाग़ में उपजे मेरे अंत को
इसलिए हृदय मेरा आज
मेरे पंखे से लड़ जाता है
है समझता मुझको
है रोना तुमको तो रो लो मगर
न करो हमारा काम तमाम
तेरे कमरे में भी उजाला आयेगा
निकल इस कमरे से जब तू जाएगा॥
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
-
- अंत कहाँ पर करूँ
- अकेलापन
- अदृश्य दरवाज़े
- असल प्रयागराज
- आँखों की भाषा
- आईना
- आख़िरी कर्त्तव्य
- उपनिवेश
- उम्मीद एक वादे पर
- एक लड़का
- कर्ण
- क्या राष्ट्र सच्चा है?
- गड़ा मुर्दा
- गाँव और शहर
- गिद्ध
- गुनाह
- घुप्प अँधेरा
- छह फ़ुट की क़ब्र
- जागती वेश्याएँ
- तीन भाइयों का दुखड़ा
- नदी
- पदार्थ की चौथी अवस्था
- पुतली
- पेड़ गाथा
- प्रियजनो
- प्रेम अमर रहे
- प्रेम और ईश्वर
- बच कर रहना
- बताओ मैं कौन हूँ?
- बदहाली
- बह जाने दो
- बहनो
- बहनो
- बारिश
- बीहड़
- बुद्ध
- बेबसी
- भाग्यशाली
- माँ
- माँगलिक
- मुझे माफ़ कर दो
- मेरा वुजूद
- मेरी कविताओं में क्या है
- मेरी बहन
- मैं आवाज़ हूँ
- मैं तप करूँगा
- मैं भी इंसान हूँ
- मैं स्त्री हूँ
- मैं ख़ुद की हीनता से जन्मा मृत हूँ
- मज़दूर हूँ
- ये दुनिया एक चैंबर है
- राम, तुम मत आना
- लड़ते लड़ते
- शब्द
- शादी का मकड़जाल
- षड्यंत्र
- सूरज डूब गया है
- स्कूल बैग
- स्त्रियाँ
- स्त्री तेरे कितने रंग
- होली—याद है तुम्हें
- ग़रीबी
- विडियो
-
- ऑडियो
-